बुधवार, 28 सितंबर 2011

नारी को कितना सहना होता,सिर्फ नारी ही जानती


घर से बाहर निकलती,
मिठाई पर मक्खियाँ भिनकती
वैसे ही मनचलों की नज़रें
उसे घूरती
खाने को लपलपाती रहती
कहीं से सीटी बजती,
कभी कोई फब्ती सुनाई देती
हवास के दीवानों से बचती बचाती
सहमती हुयी,,किसी तरह बस पकडती
बस में भी बहुत कुछ सहती

उसके पास बैठे, उम्मीद में
हर निगाह गिद्ध सी द्रष्टि से देखती
कोई कोहनी शरीर को छूती
किसी हाथ की नापाक हरकत होती
वो निरंतर खून का घूँट पीती
किसी तरह बर्दाश्त करती
उसे नारी क्यूं बनाया
परमात्मा से सवाल करती
सकुशल गंतव्य पर पहुँचने की
दुआ करती
निरंतर आशंकित सहमती
जीवन जीती जाती
खुश किस्मत अपने को मानती
जब तक किसी गिद्ध के चंगुल में
ना फंसती
नारी को कितना सहना होता
सिर्फ नारी ही जानती
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" "GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com

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