रविवार, 4 सितंबर 2011

छुट्टे नहीं हैं(लघु हास्य कथा)

चौक से स्टेशन का ऑटो पकड़ा
सामान बहुत था,किसी तरह बैठ गया
स्टेशन पहुंचा ,ऑटो का किराया तेरह रूपये हुआ
मैंने पंद्रह रूपये दिए
ऑटो वाला बोला छुट्टे नहीं हैं
दो रूपये का नुक्सान बर्दाश्त नहीं था
सो कहा आगे लेलो छुट्टे करवा लो
दो सौ कदम आगे बढे
किराया चौदह रूपये हो गया पर छुट्टा नहीं मिला
फिर वही समस्या
अब एक रुपया भी पास खुल्ला नहीं था
क्या करता ,थोड़ा और आगे चलने को कहा
किराया सोलह रूपये हो गया,दिमाग परेशान हो गया
जो नुकसान होना था हो गया
स्टेशन तक सामान के साथ जाना संभव नहीं था
सो उसे लौटने को कहा
वो बोला बाबूजी सर्कल से मोड़ना पडेगा
मरता क्या ना करता ,हाँ में सर हिलाया
घूम कर स्टेशन पहुंचा
किराया बढ़ कर इक्कीस रूपये हो गया
सर भन्ना गया
निरंतर होशयारी में दस का पत्ता साफ़ हो गया
समस्या फिर वही छुट्टा नहीं है,
कह कर ऑटो वाला मुस्कराया
कहने लगा बाबूजी इसी को कहते हैं
चौबेजी छब्बे जी बन ने गए दूबेजी रह गए
मैं खीसें निपोरने लगा
मन मसोस कर पच्चीस रूपये दे कर ,पीछा छुडाया
अब कसम खाली
बिना छुट्टे पैसों के घर से नहीं निकलूंगा
छुट्टे नहीं होंगे ,तो दिमाग नहीं लगाऊंगा
दो चार रूपये ,दान धर्म समझ कर दे दूंगा

डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:-rajtela1@gmail.com°www.nirantarajmer.com
www.nirantarkahraha.blogspot.com

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