गुरुवार, 8 सितंबर 2011

सपने जब टूटने ही हैं


सपने जब टूटने ही हैं
क्यों ना
दिन रात मन पसंद
सपने ही देखूं
स्वछन्द आकाश में
उड़ता फिरूं
समुद्र की गहराईओं में
गोता लगाऊँ
पहाड़ों पर बादलों से
अठखेलियाँ करूँ
जंगल की हरयाली को
शेर चीतों के साथ देखूं
ब्रम्हांड के
हर ग्रह को देखूं
जो बिछड़ गए रोज़
उनसे मिलूँ
जिन्हें चाहता उनसे
दूर ना हूँ
निरंतर हँसू सबको
हँसाता रहूँ
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:-
rajtelav@gmail.com
www.nirantarajmer.com
www.nirantarkahraha.blogspot.com

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