गुरुवार, 1 सितंबर 2011

पहले परिवार आरक्षण बिल

महिला आरक्षण बिल को ले कर जितनी उठापटकमचती रही है, इससे तो अच्छा है कि उसके पहले सरकार परिवार आरक्षण बिल लाने का प्रयास करे। हालांकि कतिपय क्षेत्रों में यह अघोषित कानून पहले से ही लागू है लेकिन कानून बन जाने के बाद विभिन्न परिवारों का शिकंजा और मजबूत हो जायेगा। इस विषय में सरकार अगर कोई बिल ले कर संसद में आयेगी तो उसे न केवल कांग्रेस का भरपूर समर्थन मिलेगा, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी, द्रविड मुनेत्र कडगम सहित अधिकांश क्षेत्रीय दलों का हार्दिक समर्थन प्राप्त होगा। प्रमुख विरोधी दल भाजपा के मातृ संगठन संघ के आगे तो पहले से ही 'परिवारÓ शब्द जुड़ा हुआ है, इसलिए उन्हें भी इस बिल से कोई आपत्ती नही होगी। कर्नाटक में पिछले दिनों घटित घटनाओं से सिद्ध हो गया कि वहां भी खान यानि माइनिंग बंधुओं का कोई गॉड फादर नहीं तो गॉड मदर तो है ही। लालू यादव तो इस बिल का दिल खोल कर सममर्थन करेंगे। यह उन्हीं की महिमा है कि जब उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा तो उन्होंने रसोई से निकाल कर अपनी धर्मपत्नी को मुख्यमंत्री बनवा दिया। डीएमके के करुणानिधी और मुलायमसिंह जी का उदाहरण तो सबके सामने है, कुछ कहने की जरूरत ही नही है।
यह बिल एक ऐसा बिल होगा, जिस पर वामपंथियों के अलावा सभी राजनीतिक दलों की सहमति बन सकती है, जिस प्रकार सांसदों एवं विधायकों के वेतन भत्तों को सर्वसम्मति से चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर पारित कर दिया जाता है। यह परिवार आरक्षण बिल पास होने की आशा हैं, करते रहे वामपंथी अपना विरोध।
आप चिकित्सा का क्षेत्र ले लें, यहां आपको जगह-जगह 'खानदानी दवाखानाÓ, 'पारिवारिक फार्मेसीÓ इत्यादि सैकड़ों संस्थान देखने को मिल जायेंगे। इन वारिसाना झोलाछाप डॉक्टरों का दावा है कि कोई सी भी बीमारी हो, इनके पास सबका शर्तिया इलाज है। यौन समस्याओं में तो इनकी मास्टरी है। इनकी परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, इसलिए इस क्षेत्र में परिवार आरक्षण बिल को व्यापक समर्थन मिलेगा।
मुगलकाल से ही हम देखते आ रहे है कि संगीत की दुनियां में विभिन्न शैली के नृत्यों के घराने, परिवार आदि बने हुए हैं, उदाहरणार्थ जयपुर घराना, लखनऊ घराना इत्यादि, जहां उनका एक छत्र राज्य है। परिवार आरक्षण से इन्हें भी कोई एतराज नही होगा। फिल्मों में तो इस बात को बहुत तवज्जो मिलती है कि तथाकथित कलाकार किस परिवार का है? यहां कई परिवार छाए हुए हैं। एक परिवार की तो चौथी-पांचवी पीढ़ी फिल्मों में है। परिवार का होने का सबसे बडा फायदा यह है कि शुरू में अभिनय नहीं भी आता हो तो क्या फर्क पड़ता है? जिस देश मे प्रधानमंत्री तक 'अप्रैन्टिसÓ हो सकते हों, वहां अप्रैन्टिस अभिनेता या अभिनेत्री बनना कोई मुश्किल काम नहीं है। इसलिए परिवार आरक्षण बिल को फिल्म क्षेत्र में भरपूर समर्थन मिलेगा। अधिकांश पेशेवर लोग अपने-अपने लाडलों को उसी पेशे में डालने की कोशिश करते हैं, जिसे वे पहले से ही अपनाए हुए होते हैं। उनके पास पेशे संबंधी दाव पेच या ट्रेड सीक्रेट होते हैं, जिन्हें वह परिवार के लोगों को सिखा देते हैं। कहने का तात्पर्य यह कि वहां तो पहले से ही परिवार आरक्षण चालू है। इस बिल को व्यापारियों का भी व्यापक समर्थन मिलेगा। व्यापारी का लड़का व्यापारी बन सकता है, चाहे उसमें व्यापार बुद्धि हो न हो। सिर्फ बदली हुई परिस्थितियों में उन्हें हिन्दू उत्तराधिकार कानून के अनुसार अपनी फर्म अथवा दुकान के साइन बोर्ड में कुछ बदलाव करना पड़ेगा, मसलन चौपड़ा ब्रदर्स की जगह अब बोर्ड पर चौपडा ब्रदर्स एन्ड सिस्टर्स लिखवाना होगा। शर्मा एन्ड सन्स की बजाय अब शर्मा डॉटर एन्ड सन्स करना होगा। कुछ मार्केट एसोसिएशन में कई सालों से पदाधिकारी जमे बैठे हैं, चाहे कुछ काम हो अथवा नहीं हो, परिवार आरक्षण बिल से उन्हें भी फायदा पहुंचेगा. इस बिल को पारित करवाने में कहीं भी सीटें बढ़वाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी। परिवार के सदस्यों को किसी भी मलाईदार जगह पर फिट किया जा सकता है। परिवार आरक्षण बिल का एक लाभ विभिन्न खेल संघों के पदाधिकारियों को होगा क्योंकि उधोगपति, सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस एवं विभिन्न ब्रान्ड के नेता इन खेल संघों, एसोसियेशनों, फैडरेशनों पर कुंडली मारे बैठे हैं, उन्हें खेलों के उत्थान एवं खिलाडिय़ों की खेल क्षमता बढ़ाने की कोई चिन्ता नहीं है। वे तो अपना या अपने परिवार का एकाधिकार चाहते हैं। खेल मंत्रालय इनके सामने लाचार है। इनका विचार है कि इस बिल के पास हो जाने से उनकी गद्दी पक्की हो जायेगी।
कतिपय क्षेत्रों में तथाकथित सामाजिक पंचायतों, खेपों एवं फतवे जारी करने वाली संस्थाओं में पहले से ही परिवारवाद की गहरी छाया है। यहां कुछ लोग समाज के पुश्तैनी चौधरी बने हुए हैं, जिन्होंने धर्म अथवा जाति के नाम पर फैसले सुना-सुना कर इन संस्थाओं को कानूनी अदालतों का विकल्प बना दिया है। ये लोग नौजवान पीढ़ी को बता रहे हैं कि किससे प्यार करो किससे मत करो, किससे शादी करो किससे मत करो, हालत यह है कि इनमें से कुछ लोग तो जब चाहे किसी भी महिला को गांवों में डायन तक घोषित कर देते हैं। इस बिल से इनको भी लाभ मिलेगा।
अत: महिला आरक्षण के पहले परिवार आरक्षण कानून बनाना उचित होगा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में यह तो होना ही चाहिए, है ना?
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333

2 टिप्‍पणियां:

  1. भाई साहब बिना कानून के सब हो रहा है न.
    यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
    अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://no-bharat-ratna-to-sachin.blogspot.com/

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