सोमवार, 12 सितंबर 2011

उनका मुस्काराना हुआ, इक नज़्म का जन्म हुआ


उनका

मुस्काराना हुआ

इक नज़्म का

जन्म हुआ

ख्याल

उड़ान भरने लगे

लफ्ज़ अपने आप

जहनमें आने लगे

अरमान

कुलांचें भरने लगे

कलम बिना रुके

निरंतर चलती रही

उनकी ख़ूबसूरती

ख्यालों में उतर आयी

उनकी तारीफ़ में लिखी

नज़्म वजूद में आयी

दिल की ख्वाइश

अब आम हो गयी


क्यों हार से घबराता है ?

क्यों हार से घबराता है ?

व्यथित हो कर रोता है

ये भी ता ध्यान कर

सूर्य भी चमक अपनी

खोता

शाम तक मंद होता

फिर अस्त होता

आकाश पर रात भर

चाँद का आधिपत्य होता

भोर होते होते चाँद भी

थक कर पस्त होता

नए चमकते सूर्य को

स्थान देता

हार जीत जीवन का मर्म

क्यों ह्रदय से लगाता है ?

बहुत रो लिया

बहुत कर लिया विश्राम

अब उठ खडा हो जा

कर्म अपना करता चल

इक दिन तूँ भी सफल होगा

भाग्य तेरा भी उदय होगा

सूर्य सा चमकेगा

हिम्मत ना हार

जीवन जैसा भी आये

गले लगाता चल

निरंतर आगे बढ़ता चल

बिना रुके तूँ चलता चलचाहिए
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:-
rajtelav@gmail.com
www.nirantarajmer.com
www.nirantarkahraha.blogspot.com

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