रविवार, 25 सितंबर 2011

ऐसे थे हमारे हैड साहब !

हमारे दफतर के बडे बाबूजी यानि हैड साहब यथा नाम तथा गुण थे. हैड
साहब नौकरी लगने के दिनों से ही हर काम में अपनी दिमागी कसरत किया
करते थे. अकसर सरकारी कार्यालय की परम्परा के अनुसार नए नए लगे
बाबूओं को रिसिप्ट-डिस्पैच-पत्र भेजने व प्राप्त करने-के कार्य में लगाया जाता हैं,
इसलिए जब हैड साहब को, हालांकि तब वह हैड नही थे, इस काम में लगाया
गया तो उन्होंने यहां भी अपना दिल दिमाग एक कर दिया. ष्यहां तक कि
उसका असर उनके घर पर भी पडने लग.
एक बार वह किसी के निमंत्रण पर सांयकाल का भोजन करने कही गए,
जाते वक्त घरवाली से कह गए कि तुम खाना खा लेना. जब वह वापस लौटे तो
घरवाली भी खाने के काम से निपट चुकी थी. हैड साहब जब सोने की तैयारी
कर रहे थे, तभी उनका कोई मित्र बाहर से उनके घर आ गया. हैड साहब ने
औपचारिकतावष उससे खाने का आग्रह किया और इस बाबत अपनी बीबी से
बात की. जब उन्हें मालूम हुआ कि बीबी ने कोई रोटी बचाकर नही रखी है तो
वे काफी नाराज हुए. उन्होंने चिल्ला चिल्लाकर सारा पास पडौस इकटठा कर
लिया. उनका कहना था कि जैसे ऑफिस में पत्रों की ‘ओसी’ -ऑफिस कॉपी
अर्थात बचा हुआ पत्र- रखी जाती है तो घर में भी रोटियों की ‘ओसी’ रखी
जानी चाहिए ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आएंरिसीप्ट-
डिस्पैच के बाद उन्हें कार्यालय की लेखा षाखाके बजट बनाने के
काम में लगाया गया था. उन्ही दिनों एक अन्य सैक्षन के ऑफीसर ने इन्हें
बुलाकर पूछा कि तुम क्या काम करते हो ? इस पर इन्होंने तत्काल अपनी बुद्धि
का परिचय देते हुए उत्तर दिया कि सर ! मुझे ‘बुडजट’-बजट- बनाने का कार्य
दिया गया हैं. ऑफीसर ‘बुडजट’ षब्द सुनकर पहले तो थोडा अचकाया लेकिन
बाद में उसे जब बात समझ आई तो वह मुस्कराए बिना नही रह सका और
बोला कि अच्छा-अच्छा आप ‘बुडजट’ बनाते हैं.
पहले नौकरी, फिर षादी की सीढी दर सीढी चढते हुए जब उन्हें पुत्र रत्न
की प्राप्ति हुई तो उन्होंने बडे जोष-खरोष से अपने साथियों को दोपहर के खाने
पर न्यौता दिया. प्रत्येक को निमंत्रण देते हुए कहा कि कल दोपहर हमारे यहां
‘डिनर’ हैं आपको जरूर आना हैं. इधर दोस्तों ने भी जवाब दिया ‘आएंगे भई,
जरूर आएंगे. कल आपके यहां ‘दोपेपहर के डिनर’ पर अवष्य आएंगे’.
नौकरी के ही षुरूआती दिनों की बात है, एक बार एक ऑफीसर को
किसी सरकारी आदेष की प्रति देखनी थी. उन्होंने अपने हैड साहब को बुलाकर
कहा कि आप 5 मई 1969 का सर्कुलर लेकर आओ. अब हैड साहब सारे
कार्यालय में इधर उधर खूब घूम लिए लेकिन उन्हें ऐसा कोई भी पत्र नही मिला
जो, उनकी समझ से, सर्कुलर-गोलाकार- हो, सारे सरकारी कागज पत्र
आयताकार थे. आखिर हार थककर उन्होंने अपनी षंका अपने एक साथी से
जाहिर की कि फाइलों में तो सभी पत्र आयताकार है, सर्कुलर तो एक भी पत्र
नही है, जबकि साहब 5 मई का सर्कुलर मांग रहे है. उनके साथी ने मुस्कराते
हुए उन्हें समझाया कि सरकार के किसी आदेष विषेष को जो सब कार्यालयों
को भेजा जाता है उसे सर्कुलर कहते हैं.
एक बार हैडसाहब को बस द्वारा नजदीक ही किसी जगह जाना था.जब
उस जगह बस पहुंची, तभी वहां उतरने के लिए वे अपनी सीट से उठे. उसी
समय उनके ऑफीसर जिन्हें अचानक किसी काम से कही जाना था बस में घुसेऑफीसर
ने ज्योंही उन्हें सीट से उठते हुए देखा तो षिष्टाचारवष कन्धा
पकडकर बैठा दिया कि अरे-अरे बैठो-बैठो. आग्रह के बावजूद ऑफीसर खडे
रहे. थोडी देर बाद बस अगले स्टॉप पर पहुंची तो हैड साहब फिर उतरने के
लिए अपनी सीट से उठे, लेकिन इस बार फिर ऑफीसर ने उन्हें फिर सीट पर
बैठा दिया. जब बस रवाना हुई तो उन्होंने हैड साहब से पूछा कि ‘आप कहां
जा रहे है ?’
इस पर हैड साहब ने बताया कि ‘मुझे तो पिछले स्टॉप पर ही उतरना
था, आपने मुझे जबरदस्ती वापस बैठा दिया’.
उन दिनों हैड साहब की पोस्टिंग विभाग के मुख्यालय में थी औेर विभाग
में आमूलचूल परिवर्तन होने वाले थे. विभाग बोर्ड के रूप में बदलनेवाला था. जो
भी मुख्यालय में आता बोर्ड की ही चर्चा करता और पूछता कि बोर्ड कब तक
बन जायगा. संयोग से उन्ही दिनों मुख्यालय में भंवरलाल नामक कारपेंटर भी
काम कर रहा था. उसे चीफ इंजीनियर के कमरे में टांगने हेतु लकडी का एक
बोर्ड बनाने हेतु कहा गया था. एक रोज बाहर से एक अधिकारी आया और
बोर्ड के बारे में पूछने लगाा कि बोर्ड कब तक बनेगा ? इस पर हैड साहब ने
बताया कि पिछवाडे भंवरलाल से जाकर पूछ लो कि बोर्ड कब तक बन जाएगाहैड
साहब अपने ऑफीसरों के आदेषों का पालन करने में बडे पाबंद थे
ओैर अक्षर-अक्षर उनका पालन करते थे. एक बार उनके ऑफीसर ने उन्हें
किसी दूसरें स्थान से टं्ककॉल पर कहा कि मैं बस से आ रहा हंू या तो मैं
सांयकाल 6.00 बजे पहुंचूंगा या रात 9.00 बजे, इसलिए ड्ाईवर को बस
स्टैन्ड भेज देना वह देख लेगा. हैडसाहब ने ड्ाईवर को बुलाकर आदेष दिया कि
तुम्हें साहब को लेने बस स्टैन्ड जाना हैे तथा साहबने सांय 6.00 बजे अथवा
रात्रि 9.00 बजे आने को कहा हैं. दोनो ही समय जाकर देखना हेैं. ड्ाईवर
द्वारा यह कहने पर कि मैं 6.00 बजे साहब को लेने पहुंच जाउॅगा और साहब
आ गए तो ठीक वर्ना 9 बजे जाकर देख लूंगा तो हैड साहब ने उससे कहा कि
6.00 बजे भी जाना हेै और 9.00 बजे भी. चाहे साहब 6.00 बजे आएं
चाहे न आएं, साहब का आदेष हैंसमय
के साथ साथ हैडसाहब का काम बढने लगा. वह अक्सर
मिलने-जुलने वालों से कहा करते थे कि ‘मैं आजकल बहुत बूषी-बिजी-हूं’.
इंगलिष में ‘व्यस्त’ माने ‘बिजी’ इस तरह लिखा जाता है कि कम पढा लिखा
व्यक्ति उसे ‘बिजी’ की जगह ‘बूषी’ पढ सकता हैंउन्ही
दिनों उनके मातहत एक बाबू को कार्यालय में मच्छर दिखाई दिए,
उसने अपनी षिकायत लिखकर हैडसाहब को भिजवादी. हैडसाहब ने जब यह
नोटषीट देखी तो उस पर कई प्रष्न पूछ डाले. मसलन मच्छर एक था या कई
कई थे ? वे आज ही दिखाई दिए या पहले भी दिखाई दिए थे ? वे गजेटेड थे
या नान गजेटेड थे ? सीधी भर्ती वाले थे या प्रमोटी थे ? वे कही से ट्ांसफर
होकर तो यहां नही आए ? उनकी ज्वायनिंग रिर्पोट कहां है ? इत्यादि इत्यादि
कई प्रष्न उन्होंने पूछ डाले और मसला फाइलों में ही दबकर रह गयाइसी
तरह एक बार कार्यालय के रिकार्डकीपर को कार्यालय में एक चूहा
दिखाई दिया. उसने पहले तो मौखिक रूप् से हैड साहब को बताया लेकिन उनके
द्वारा जाकर दिए जाने पर रिकार्डकीपर ने उन्हें लिखकर दिया कि रिकार्ड में एक
चूहा दिखाई दिया हैं. अगर वह ऑफिस का रिकार्ड खा गया तो उसकी समस्त
जिमेवारी आपकी, यानि हैड साहब की, होगीहैड
साहब ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उन्होंने ऑफीसर को
नोटषीट पर लिखकर भेजा कि कार्यालय के रिकार्ड में एक चूहा देखा गया है,
हो सकता है कि वहां चूहों ने कोई अवैध कॉलोनी बना ली हो अतः इस बारें में
नगर परि द तथा यूआइटी को तत्काल कार्यवाही के लिए लिखना उचित होगाहैड
साहब ने सोचा कि एक बार वहां से जवाब आ जाए तो आगे कार्यवाही
करें. इधर दूसरें ही रोज सफाई करते हुए रामू सफाई वाले को रिकार्डरूम में
चूहा दिखई दिया तो उसने अपनी झाडू से तत्काल उसे ठन्डा कर दियाकायर्
ालय की चाहरदिवारी पर प्रवेष हेतु एक बडा गेट एवं उसके साथ ही
एक छोटा गेट भी था. अकसर बडे गेट से वाहन एवं छोटे गेट से पैेदल लोग
प्रवेष किया करते थे. एक बार की बात है कि छोटे गेट की चाबी चौकीदार से
खोगई इसलिए वह उसे खोल नही पाया सिर्फ बडा गेट ही खुला था. जब हैड
साहब कार्यालय आए तो रोज की तरह उन्होंने छोटेगेट से प्रवेष करना चाहा
लेकिन वह बन्द था. उन्होंने चौकीदार को बुलाया और गेट नही खुलने का
कारण जानना चाहा जब चौकीदार ने उन्हें बताया तो उन्होंने कहा कि अब
लोग अंदर कैसे आएंगे ?
इस तरह के सैकडों किस्सें लिए हैड साहब कुछ ही दिनों पूर्व रिटायर हुए हैंई.
षिव षंकर गोयल
फलेट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स
सोसायटी, प्लाट न. 12, सैक्टर न.10,
द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें