शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

कबाड़ी को बेच दो ( हास्य कविता)



हँसमुखजी की पत्नी
उनके तकिया कलाम से बहुत दुखी थी
हर बात पर कहते “कबाड़ी को बेच दो”
अगर शिकायत करती
बच्चे शैतानी बहुत करते हैं
जवाब में कहते थे ,
कबाड़ी को बेच दो”
आज अखबार नहीं आया
जवाब होता अखबार वाले को
कबाड़ी को बेच दो
एक दिन हँसमुखजी दफ्तर में
काम के बोझ से परेशान होकर आये
आते ही पत्नी से बोले
काम से दिमाग खराब हो गया है
एक कप चाय पिला दो
जली भुनी पत्नी
मौके की तलाश में थी
फ़ौरन बोली ,कबाड़ी को बेच दो
हँसमुखजी का पौरुष जाग गया
असली रूप उजागर हुआ
भन्नाते हुए बोले बेच दूंगा ,
बहुत होशियार बनती हो
यह भी बता दो, नया कहाँ मिलेगा
पत्नी लोहा लेने के लिए पूरी तरह तैयार थी
फ़ौरन अग्नी बाण दाग दिया
नया खरीद भी लोगे
तो तुम्हारे थर्ड क्लास शरीर में आते ही
अच्छा खासा दिमाग भी खराब हो जाएगा
तुम्हें तो कोई कबाड़ी भी नहीं खरीदेगा
गलती से खरीद भी लिया तो
धंधा चौपट करवाएगा
कबाड़ की कीमत तो होती है
तुम्हें लेने के लिए
तो पैसे भी मांगेगा

कल रात उनसे गुफ्तगू हो गयी ना जान पहचान थी
ना मुलाक़ात थी
फिर भी कल रात
उनसे गुफ्तगू हो गयी
ज़िन्दगी में
नयी शुरुआत हुयी
उनका अचानक
मिलना
नियामत हो गयी
हँस, हँस कर
उनसे बात हुयी
कुछ मन की
कुछ दिल की
सांझा हुयी
निरंतर ठहरी हुयी
ज़िन्दगी में हलचल
हुयी
दिल को खुशी
मन को तृप्ति हुयी
कल रात उनसे
गुफ्तगू हो गयी


बादल किस के ,आकाश किस का बादल किस के
आकाश किस का
वायु अग्नी पर नहीं
आधिपत्य किसी का
पंछी देश देश में
विचरण करते
वर्षा आज यहाँ कल
वहां बरसती
फिर झगडा किस
बात का
धरती के टुकड़े के लिए
सेनाएँ क्यों आपस में
लडती
निरंतर मार काट
दुनिया में होती
मनुष्य के अहम् ,
और स्वार्थ की
कोई सीमा नहीं होती
उसे संतुष्टी
कभी नहीं मिलती

सपने , सपने ही रह जाते सपने
हर रात को आते
नए पुराने चेहरे
दिखते
कुछ हँसाते कुछ
रुलाते
कुछ धुंधले हो
जाते
कुछ सुबह तक
याद रहते
मन को तडपाते
दिल को रुलाते
निरंतर जहन में
रहते
फिर दिख जाएँ
उम्मीद में रात का
इंतज़ार करते
दिल दुखाने को
सपने
सपने ही रह जाते

डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com

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