गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

पेट दर्द और खिचडी

कहानी बहुत पुरानी है लेकिन संयोगवष कुछ समकालीन घटनाओं से जुड
जाने के कारण आज भी प्रासंगिक बन गई हैं, किस्सा यों है कि
एक ग्रामीण था, उसके पेट में दर्द हो गया. वह काफी दूर चलकर एक
वैद्यजी के पास गया. वैद्यजी ने उसकी नब्ज इत्यादि देखकर उससे कहा कि घर
जाकर सुबह-षाम पानी के साथ दवाई की एक एक पुडियां ले लेना और खिचडी
खाना सब ठीक हो जायेगा. उसने खिचडी का नाम पहली बार सुना था, कही
भूल न जाउ इसलिए वह ‘खिचडी-खिचडी’ रटता हुआ वापस अपने घर की
तरफ चल दिया. रटने के चक्कर में वह खिचडी की जगह ‘खा चिडी, खा
चिडी’ बोलने लगा. थोडी देर बाद रास्ता भूलकर वह कॉमनवैल्थ के खेलगांव की
तरफ निकल गया. वहां उसे कुछ सत्ताधारी मिल गए. जब उन्होंने सुना तो उन्हें
लगा कि एक अदना सा आदमी हमारे पर व्यंग्य कस रहा है तो उन्होंने उसे
पकड लिया और ‘ठिकाने’ पर लेजाकर अपने आदमियों से उसे इतना पिटवाया
कि पुलीसवाले भी चौकी पर किसी को क्या मारते होंगे ? उनमें से कुछतो
मारने-कूटने, मकान खाली करवाने अथवा लोन की गााडी छीनने में बहुत
एक्सपर्ट थे और इस विषय में राजधानी स्थित यमराजकी एक फ्रेंचाइजी से तीन
माह की ट्ेनिंग लिए हुए थेवह
लोग उसे यातनाएं भी दे रहे थे साथ ही पूछते जा रहे थे कि बता,
तेरी हिम्मत कैसे हुई जो तू कॉमनवैल्थ गेम्स की मजाक उडायें ? क्या तुझे पता
नही कि कॉमनवैल्थ तो हमारी 150 सालकी गुलामीकी ऐतिहासिक विरासत है,
हमारी षान है. रही बात खाने की तो यहां खाने को हम ही क्या कम है जो तू
चिडियों को और खाने का न्यौता दे रहा है, आज हम तेरे को नही छोडेंगेइतने
में ही उस इन्चार्ज के पास उनके बॉस का एसएमएस आ गया, उसने
मॉबाइल पर ही घटना की जानकारी अपने बॉस को दी और कहा कि सर ! वैसे
तो यह चिडियों को खाने के लिए कह रहा है, सीधे-सीधे हमें नही कह रहा है,
इस पर उनके बॉस ने डांट लगाई और कहा कि तुम नही जानते, जबसे फिल्म
‘हम आपके है कौनैन’ में कुडियों को दाना डालने का गाना ‘हाय राम ! कुडियों
को डाले दाना’ चला है कुडियों और चिडियों में क्या फर्क रह गया हैं ? अतः
अच्छी तरह पूछताछ करो. परन्तु जब कुछ हासिल नही हुआ तो अंत में बहुत
हाथा-जोडी करने पर वह उसे छोडने को राजी हुए और कहा कि यहां से ‘उड
चिडी’ ‘उड चिडी’ बोलते हुए दूर निकल जाओ, वर्ना तुम्हारी खैर नही हैंवह
व्यक्ति ‘उड चिडी’ ‘उड चिडी’ करता हुआ आगे बढा ही था कि एक
कबूतरबाजी यानि फर्जी तरीकों से विदेष भेजनेवाली कम्पनी के नुमान्दों ने उसे
पकड लिया. उन्हें ‘उड चिडी’ षब्द कोड भाषा का षब्द लगा. वह उसे अपने
अडडे पर लेगए और उससे पूछा कि तुझे कैसे मालुम हुआ कि हम लोग
‘कबूतरबाजी’ में लगे हुए है और हमारे द्वारा कुछ ‘कबूतर’ विदेष के लिए उडने
ही वाले हैं. सघन पूछताछ के बावजूद जब कोई नतीजा नही निकला तो गैंग के
मुखिया ने मॉबाइल पर किसी से बात की और कुछ निर्देष लेने के बाद उस
आदमी से कहा कि तुम अगर ‘आ जाल में ं फंसंस’ 2 बोलते जाओ तो हम तुम्हें
छोड सकते है. मरता क्या न करता, वह बेचारा ‘आ जाल में फंस’ ‘आ जाल
में ं फंसंस’ बोलता बोलता वहां से निकल लियापरन्तु
रास्ता भूल जाने के कारण ऐसी जगह पहुंच गया जहां
माओवादियों के तथाकथित हमदर्द छिपे बैठे थे. यह लोग थोथी सैद्धान्तिक
बहसबाजी में लगे हुए थे. उन्होंने जब इस आदमी की रट ‘आ जाल में फंसंस’
‘आ जाल में फंसंस’ सुनी तो एक-दो तो उसे गोली मारने का ‘क्रंातिकारी’ कदम
उठाने की सोचने लगे लेकिन उनके सलाहकारों ने उन्हें रोका और उस आदमी
से पूछताछ षुरू करदी. लेकिन फिर भी जब कोई नतीजा नही निकला तो
उन्होंने उसे छोड दिया लेकिन आगे के लिए ‘ऐसेसा ही हो’ बोलने की हिदायत
दी. साथही यह भी कहा कि ‘ऐसेसा ही हो’े’ बोलते हुए अपने घर नही जाओगे तो
तुम्हें भी अगवा कर लिया जायगावह
आदमी यहां से भी छूटा लेकिन आज उसके भाग्य में कुछ और ही
लिखा था. जैसेही वह कुछ दूर गया उसे मधु कोडा के आदमियों ने पकड लियाउन्होंने
यह समझा कि यह षख्स जेल में बंद उनके मालिक के उपर व्यंग्य कर
रहा है और बार बार कह रहा है ‘ऐसेसा ही’ ऐसेसा ही हो’ यह हम कैसे सहन
कर सकते है ? उन्होंने भी उसे डराया-धमकाया और कहा कि जब यहां से
जाओ तो बोलो ‘ऐसा कभी नही हो’ वर्ना ऐसे गायब कर दिए जाओगे जैसे
रिष्वत मिलने पर सबूत गायब होते हैंवह
व्यक्ति ‘ऐसेसा कभी ना हो’ ‘ऐसेसा कभी ना हो’ कहता हुआ सत्ता के
गलियारे के एक बहुत बडे बंगले के बाहर से गुजर रहा था जिसके लॉन में कई
लोग इस चर्चा में मषगूल थे कि किस तरह ‘युवराज’ को गद्धीनषीन किया जाय
ताकि हमारा जंम सफल हो जाय. जब उन्होंने यह सुना कि कोई आदमी ‘ऐसेसा
ना हो’ ‘ऐसा ना हो’ कहता हुआ जा रहा है तो वह काफी नाराज हुए क्योंकि
यह जष्न का समय था और पीने-पिलाने के साथ साथ कुछ लोग तली भुनी
चीजें भी खा रहे थे, उन्होंने उसे धमकाया कि ‘ऐसेसा कभी ना हो’े’ की जगह
‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ बोलते हुए जाओवह
अभागा वहां से भी नया नारा ‘भूनूनकर खा’ लेकर चल दिया लेकिन
एक बार फिर रास्ता भटक गया और निठारी नोएडा का एक गांव की तरफ
निकल गया. वह ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ की अपनी रट लगाता हुआ जा रहा
था. इस व्यक्ति की आवाज सुनते ही निठारी में भगदड मच गई और किसी ने
पुलीस को खबर कर दी. पुलीस उसे पकडकर ले गई और पूछताछ करने लगी
कि तुम किसको कह रहे हो कि भूनकर खा, अब तो सब अंदर हैं. परन्तु जब
वह कोई संतोष जनक जबाब नही दे सका तो उसे मारने लगे. इतने में ही
पुलीस ऑफीसर के पास कही से मॉबाइल पर मैसेज आया कि आपकी तबीयत
कैसे है ? तब ऑफीसर ने बताया कि मेरा पेट खराब है, डाक्टर ने कुछ
दवाइयां लिखी हैे और खाने में खिचडी बताई हैंख्
िाचडी का नाम सुनते ही वह पकडा हुआ गरीब उछला और चिल्लाया
‘खिचडी ! हां खिचडी, वैद्यजी ने मुझे भी खिचडी ही खाने को कहा था लेकिन
मैं भूल गया था और गलती से ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ कहता हुआ यहां तक
आ पहुंचापूरी
दास्तान सुनने के बाद उन लोगों ने उसे छोड दिया और वह गरीब
किसी तरह वापस अपने गांव पहुंचाई.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

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