गुरुवार, 22 सितंबर 2011

हँसमुखजी पत्नी व्रत थे ( हास्य कविता)


हँसमुखजी पत्नी व्रत थे
पत्नी के हिस्से के
सारे काम करते थे
कपडे से
बर्तन तक धोते थे
पत्नी भी
पूर्ण पतीव्रता थी
पत्नी धर्म
श्रद्धा से निभाती थी
रात
कितनी भी हो जाए
ठण्ड
कितनी भी बढ़ जाए
बर्तन धोने के लिए
निरंतर गरम पानी
तैयार रखती थी
जब तक
पूरे ना धुल जाएँ
ना खुद सोती ना
उन्हें सोने देती
रजाई में घुस कर
होंसला बढाती
थक जाओ तो दो कप
चाय बना लेना
पहले मुझे पिला देना
फिर खुद पी लेना
नहीं थको तो आकर
मेरे पैर दबा देना
कह कर पत्नी धर्म
निभाती थी

हमें देख कर मुस्कारायेंगे
ना नज़रें मिलाते
ना देख कर मुस्कराते
निरंतर
चेहरा अपना छुपाते
खामोशी से निकल जाते
निरंतर सवालों के
घेरे में छोड़ जाते
उनकी बेरुखी
हम समझ ना सके
इतने खुदगर्ज़ होंगे
ये भी ना मानते
उनकी भी ज़रूर होगी
कोई मजबूरी
या गलत फहमी होगी
हमें यकीन खुदा पर
इक दिन ये फासला
कम होगा
पाक रिश्तों के
दामन पर
कोई दाग ना होगा
वो चेहरा फिर से
दिखाएँगे
हमें देख कर
मुस्कारायेंगे

कब ऋतु बदलेगी

कब ऋतु बदलेगी
नफरत की आंधी
रुकेगी
बदले की अग्नी
भुजेगी
शस्त्रों की पूजा
बंद होगी
धरती रक्त से लाल
ना होगी
रिश्तों की होली नहीं
जलायी जायेगी
प्यार भाईचारे की
दीपावली आयेगी
निरंतर प्रेम की हवा
बहेगी
इंसान के जीवन में
खुशी होगी


डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर" (डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com

1 टिप्पणी: