बुधवार, 30 नवंबर 2011

क्षणिकाएं


बड़े अरमानों से

बड़े अरमानों से
हमने उन्हें फूल
भेंट किये
भोलेपन से वो
पूछने लगे
कहाँ से खरीदे ?
हमें भी किसी
ख़ास को देने हैं
बहुत शिद्दत से
बताने लगे
****
अन्धेरा

लोग घरों को रोशन
करते हैं
दिल-ओ-दिमाग में
अन्धेरा रखते हैं
****
मैं चाहूँ तो हो जाए

मैं चाहूँ हो जाए
कोई और चाहे
तो क्यों हो जाए
****
ज्यादा देने के लिए

ज्यादा देने के लिए
कम लेना सीखो
जो मिले उसे
खुशी से कबूल
कर लो
****
कुर्सी के लिए

सब कुर्सी के लिए
लड़ते
उससे कोई नहीं
पूछता
उस पर बैठने वाला
कैसा होना चाहिए
****
प्रेम की परिणीति

प्रेमियों के
प्रेम की परिणीति
प्रेमी प्रेमिका
दोनों की बेचैनी
****
देता इश्वर है

देता इश्वर है
खाते,पचाते,
भोगते,हम हैं
फिर कहते
हमारा है
****
सहानभूती

सहानभूती के
दो शब्द दिल को
राहत देते हैं
उसमें भी लोग
कंजूसी करते हैं
****
दुविधा

दुविधा मैं पैदा हुआ
दुविधा में जीता रहा
दुविधा में मर गया
करूँ ना करूँ
के जाल में फंसा रहा
****
सामंजस्य बिठाओ

सामंजस्य बिठाओ
नहीं तो विद्रोह करो
या फिर सहन करो

क्या मुझ से पूछ कर,तुमने मुझे जन्म दिया ?
क्या मुझ से पूछ कर
तुमने मुझे जन्म दिया ?
दुनिया में लाने से पहले
तुमने किस से पूछा
बेटे ने ,पिता से
क्रोध में प्रश्न किया
व्यथित पिता से
रहा ना गया
आँखों में आंसू लिए
सहमते हुए उत्तर दिया
जब राम,कृष्ण,बुद्ध,
महावीर के पिता ने
किसी से नहीं पूछा
मैं किस से पूछता ?
मैंने केवल संसार के
नियम का पालन किया
परमात्मा की
इच्छा का सम्मान किया
अगर मुझे पता होता
तुम्हारे जैसी
संतान का पिता
कहलाना पडेगा
संतान के हाथों निरंतर
प्रताड़ित होना पडेगा
परमात्मा के नियम को
तोड़ देता
विवाह के बंधन में
कभी नहीं बंधता
इस तरह
अपने खून के हाथों
हर दिन तिल तिल कर
ना मारा जाता
तुम अपनी संतान से
पूछ कर उसे जन्म देना
वो पूछे तो
खुशी से सुन लेना
उत्तर में
उसे शाबाशी देना

इश्वर भक्ती में डूबा रहा

प्यासे को
पानी नहीं पिलाया
भूखे को
भोजन नहीं कराया
निरंतर
इश्वर भक्ती में डूबा रहा
स्वर्ग के
सपने देखता रहा
परमात्मा ने
भक्ती का प्रसाद दिया
मरणोपरांत उसे
नरक में बसा दिया

कितना भी दूर रहो नज़रों से

कितना भी
दूर रहो नज़रों से
हमें दिल के पास
पाओगे
हम कद्रदां तुम्हारे
इतने बेदिल नहीं
रुसवा
हो जाएँ तुमसे
निरंतर तुम्हें मंजिल
समझा
तुम्हें पाए बिना कैसे
रास्ते से भटक जाए

बराबरी

ऊंचे आसन पर
बैठ कर
धर्म गुरु प्रवचन
देते हैं
सब से बराबरी का
व्यवहार करो
*****
फुर्सत

हर आदमी
हंसना चाहता है
मगर रोने से
फुर्सत नहीं मिलती
*****
मेरा दुःख

हर आदमी सोचता
मेरा दुःख सबसे
ज्यादा
****
गति

घायल की
गति घायल जाने
जो मर गया
उसकी
गति कौन जाने ?
****
डाक्टर

इंतज़ार बीमार का
करता
इलाज बीमारी का
करता
****
भूख

भूख इंसान की
सबसे बड़ी बीमारी
अगर भूख नहीं होती
कोई भूखा नहीं रहता
झगडा फसाद कभी
नहीं होता
हर शख्श प्रेम से
रहता
(पेट,धन,पद,बल,काम,
ख्याती और की भूख)
****
ज़ल्दी

यात्रियों को
मंजिल पर
पहुँचने की ज़ल्दी
पहुँच गए तो घर
लौटने की ज़ल्दी
*****
जिसे मिल जाता

जिसे मिल जाता
वो खुश होता
मौत के बारे में ऐसा
कोई ना कहता
****
इतिहास

इतिहास
भविष्य के लिए
आगाह करता है
विडंबना है
कोई ध्यान नहीं
देता
****
ख्याति

इंसान की ख्याति
उसके पहुँचने से पहले
पहुँचती
उसके जाने के बाद भी
रहती
****

हाइकु

क्यों लिखू हाइकु
जब क्षणिका मेरे पास
क्यों लूं उधार
जब मेरी अपनी
मेरे साथ

अब तसल्ली मुकाम मेरा

अब ना पाने की
ख्वाइश
ना रोने की ज़रुरत
मुझको
ना ग़मों की दहशत
ना मंजिल की तलाश
मुझको
अब तसल्ली मुकाम
मेरा
खुश हूँ उसमें
जो मिला,ना मिला
निरंतर ज़िन्दगी में
मुझको

क्या क्या छुपाऊँ ?

क्या क्या
छुपाऊँ ?
कब तक
छुपाऊँ?
किस किस से
छुपाऊँ ?
क्या झूठ का
आवरण ना हटाऊँ
मन की व्यथा
बढाऊँ
कभी चैन ना पाऊँ
निरंतर
बेचैन जीऊँ
संसार से बेचैन
जाऊं

धूल के कण से कण मिला

धूल के
कण से कण मिला
मिलकर गुबार बना
तेज़ हवाओं ने उसे
बवंडर बना दिया
धूल का कण
अहम् अहंकार से
भर गया
अपने को शक्तिशाली
समझने लगा
संसार को अपने
अधीन करने की इच्छा में
वीभत्स रूप दिखाने लगा
जो भी सामने आया
उसे ढक दिया
अपने रंग में रंग दिया
इंद्र ने आकाश से देखा
धूल का मंतव्य समझ गया
घमंड को तोड़ने
वर्षा को भेज दिया
वर्षा ने भी रूप अपना
दिखाया
शीतल जल से
बवंडर को ठंडा किया
उसके घमंड को
शांती से दबा,धूल को
पानी में बहा दिया
दुनिया को दिखा दिया
अहम् अहंकार का
स्थान नहीं दुनिया में
ठंडक से
अग्नि भी कांपती
शांती निरंतर
विनाश से बचाती
(धूल से मेरा अभिप्राय ,
निकम्मे,भ्रष्ट एवं निम्न स्तर और सोच वाले
व्यक्तियों से है ,
जो येन केन प्रकारेण,राजनीती की सीढियां चढ़ कर,
सत्ता के गलियारों में पहुँचते हैं
और सब कुछ अपने अधीन करने का प्रयास करते हैं,
वर्षा के ठन्डे पानी से अभिप्राय,
सब्र से जीने वाली जनता से है ,
प्रजातंत्र में ,जनता उन्हें ठन्डे तरीके से
चुनाव के समर में उखाड़ फैंकती है)

राम -कृष्ण दोनों ने कहा

राम ने नहीं कहा
मंदिर में बिठाओ
मुझको
कृष्ण ने नहीं कहा
मंदिर में सजाओ
मुझको
राम-कृष्ण
दोनों ने कहा
मंदिर की
आवश्यकता नहीं
हमको
निरंतर दिल में
बसाओ हमको

हँसमुखजी का पड़ोसी से झगडा हो गया(हास्य कविता)

पतले दुबले हँसमुखजी का
मोटे गैंडे जैसे पड़ोसी से
झगडा हो गया
पड़ोसी ने उन्हें उड़ता हुआ
तिनका कह दिया
हँसमुखजी का
चेहरा लाल हो गया
उनका पुरुषत्व जाग गया
क्रोध में उन्होंने पड़ोसी को
धरती का बोझ करार दे दिया
पड़ोसी की पत्नी ने सुना,तो
वो भी मैदान में कूद पडी
पती को यथा शरीर तथा नाम
देने से बिफर गयी
पड़ोसी के बोलने के पहले ही
उसने हंसमुखजी को जवाब दे दिया
धरती के बोझ होगे तुम
हँसमुखजी की पत्नी कम नहीं थी
कोई महिला
उसके पती को कुछ कह दे
बर्दाश्त नहीं हुआ
उसने लपक कर पड़ोसी को
उड़ता हुआ तिनका कह दिया
बस हाहाकार मच गया
पड़ोसन बोली ठीक से बात करो
इतने मच्छर जैसे भी नहीं हैं कि
इन्हें उड़ता हुआ तिनका कहो
बात बढ़ती गयी
दूसरा पड़ोसी सारी बात
सुन रहा था
उससे रहा नहीं गया
वो बीच में कूदा,
दोनों को शांत किया
फिर हँसमुखजी की पत्नी से बोला
आप इन्हें उड़ता हुआ तिनका
मत कहिये ,
पड़ोसी की पत्नी को कहा
आप हँसमुखजी को
धरती का बोझ नहीं कहिये
दोनों में राजीनामा कराया
दोनों ने हाथ मिलाया
पहले रहते थे
निरंतर वैसे ही रहने लगे
लोग हँसमुखजी को
उड़ता हुआ तिनका
पड़ोसी को
धरती का बोझ
कहने लगे

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क्यों कहते हो ?मुझसे वादा करो
क्यों कहते हो ?
मुझसे वादा करो
कभी ना छोड़ोगे मुझको
मरते दम तक साथ दोगे
क्यूं बहम रखते हो?
हमारी मोहब्बत पर
यकीन रखो
फिर भी दिल ना माने तो
दुआ खुदा से करो
साथ देंगे तुम्हारा
जब तक खुदा चाहेगा
गर फैसला कर लिया
उसने
दुनिया से जाना हमको
सुकून हमें भी नहीं
मिलेगा
दिल हमारा भी रोयेगा
निरंतर
तुमसे मिलने का इंतज़ार
करता रहेगा

हमसे रहा ना गया

हमसे रहा ना गया
उनकी तारीफ़ में
एक शेर पढ़ दिया
उन्होंने उसे
इज़हार-ऐ-मोहब्बत
समझ
हमसे मुंह फिरा लिया
कैसे समझाऊँ उन्हें ?
इज़हार-ऐ-मोहब्बत नहीं
इज़हार-ऐ-इज्ज़त थी
इज्ज़त बख्शना भी
गुनाह हो गया
हकीकत बयान करना
दर्द-ऐ-दिल बन गया
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
Mobile:09352007181

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