कोई जमाना था, जब सब जगह मानसून को ईश्वर तुल्य माना जाता था। उसके आगमन की तैयारियों में कई तरह के अनुष्ठान किए जाते थे, कोई हवन कर रहा है, कोई भजन-कीर्तन, कोई पूजा-पाठ ही कर रहा है। यहां तक कि कहीं कहीं तो वैज्ञानिक भी कृत्रिम वर्षा के लिए कुछ रसायनों का छिड़काव बादलों पर किया करते थे। राजस्थान के गंावों, शहरों में छोटे-छोटे बच्चे मानसून को इस तरह गा-गाकर बुलाते थे, 'मेहं बाबा आजा, घी की बाटी खा जाÓ। यही बात पंजाब में बच्चे इस तरह गाते थे, 'रब्बा रब्बा मी बरसा, साढï्ढे कोठ्ठे दाने पा।Ó प्रसिद्ध शायर निदा फाजली अपनी बात इन शब्दों में कहते हैं:-'गरज बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला, बच्चों को गुड-धानी दे मौला!Ó
अब भी अधिकतर जगह किसान, व्यापारी एवं राज्य, तीनों की गाडी मानसून पर ही चलती है। तभी तो जाने-माने आर्थिक विशेषज्ञ ही क्या, स्वयं प्रधानमंत्री बार-बार यह कह कर महंगाई को डराते रहते हैं कि 'आने दे मानसून को फिर देखता हूं तेरे को, सौ दिन में ही भगा दूंगा।Ó कुछ अन्य नेता और मंत्री भी तगड़े मानसून का इंतजार करते रहते हैं ताकि बाढ़ पीडि़तों के नाम पर घडिय़ाली आंसू बहाते हुए हवाई यात्रा का मजा ले सकें। भगवान की मेहरबानी से इस बार शुभ संकेत भी मिल रहे हैं। इस बार कैर के पौधों पर बहुत ही अच्छी फ्लावरिंग हुई है। आम की पैदावार भी अच्छी है और टिटहरी ने अंडे भी ऊंचे स्थानों पर दिए हैं। चिडिय़ां बार-बार धूल में नहा रही है, जिसके लिए कहा जाता है कि 'चिड़ी जो न्हावे धूळ में, मेहा आवण हार, जळ में नहाये चिड़कली, मेहं विदातिण हार। इधर गिरगिट, राजनीति वाले नहीं, बाग बगीचे वाले, रंग बदल रहे हैं। मक्खियां मनुष्य की देह पर चिपकने लगी हैं तो लगता है कि अच्छी वर्षा होगी। 'गिरगिट रंग बिरंग हो, मक्खी चटके देह, मकडिय़ां चह-चह करें, जब अतजोर मेहं। उधर पुरवइयां भी अपना रंग दिखा रही हैं, 'पवन गिरी, छूट परवाई, घर गिर छोवेवा इंन्द्र छपाई। इन सब से उत्साहित होकर मानसून विभाग ने भी तरह-तरह की भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी हैं। कभी वे कहते हैं कि 95 प्रतिशत होगी, कभी कहते हैं कि 98 प्रतिशत होगी। खैर जो भी है, लेकिन अंदर ही अंदर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भगवान से यह प्रार्थना कर रहे हैं कि हे मालिक! हमें मानसून से बचा, इस बार मानसून को साइड से निकाल दे और आगे कहीं और जाकर बरसा वर्ना खामख्वाह हमारी नींद खराब होगी। इन लोगों में नगरपालिका अथवा निगम वाले भी हैं। उनको मालुम है कि वर्षा होगी तो बरसात का पानी गंदगी से भरे हुए नालों के ऊपर आकर बहेगा। सब जगह कीचड़ ही कीचड़ हो जायेगा। बरसात को आता देख कर पालिका के सफाई कर्मचारी हड़ताल का नारा देंगे, उनको समझाना-बुझाना पडेगा। अगर बरसात हो ही नहीं तो इस मगजमारी से बचा जा सकता है। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
इधर कुछ वर्षों में उदारीकरण की हवा चल निकली है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बगैर उन्नति हो ही नहीं सकती। सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही वर्गों के चारण तमाम सार्वजनिक उद्योगों का विनिवेशीकरण करने का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन ज्यों ही मानसून का आगमन होता है प्रशासन फ्लड कंट्रोल के नाम पर कंट्रोल रूम खोल देता है। अरे भाई! एक तरफ तो कंट्रोल खत्म कर रहे हो दूसरी तरफ कंट्रोल रूम खोल रहे हो, यह कैसा विरोधाभास?
अगर मानसून आए ही नहीं तो न वर्षा होगी न बाढ़ आयेगी और न बाढ़ को कंट्रोल करना पड़ेगा। इसलिए यह सभी लोग मन ही मन यह दुआ कर रहे हैं कि हे भगवान! हमे मानसून से बचा। मानसून याने बरसात के नाम से सबसे ज्यादा नींद खराब होती है सिंचाई विभाग की। न रात को नींद न दिन को चैन। वर्षा होते ही सबसे पहले तो सालभर से बेकार पड़े वर्षा मापने के यन्त्र, रेन-गेज आदि को हाथों-हाथ ठीक करवाना पड़ेगा। फिर वर्षा का माप लेने हेतु किसी कर्मचारी की डय़ूटी लगानी पडेगी। जिसकी ड्यूटी लगती है वह मन ही मन झल्लाता है। सालभर ऑफिस की मेज पर ताश खेलते अथवा सोते-सोते आराम से कट रही थी, अब मानसून आते ही रेनगेज से वर्षा मापने का झंझट हो गया। उधर कंट्रोल रूम में जिसकी ड्यूटी लग गई वह अलग से बड़बड़ाता है, 'कहां फंसा दिया?Ó विभाग के अधिकारियों की दौड़-भाग शुरू हो जाती है। कहां तो घर-कार्यालय तथा गाडी में ए.सी. की हवा खा रहे थे और कहां अब बांध पर जाना पड़ेगा, बोरों का इंतजाम करना पड़ेगा। उधर गांव वालों की नींद अलग से हराम क्योंकि जाने कब बांध में दरार आ जाए और बैठे बैठाए मुसीबत आ जाए।
बिजली विभाग वाले भी मानसून से खुश नहीं हैं। जाने कौन सी लाइन अथवा ट्रांसफार्मर में कब खराबी आ जाए? कहां के खम्भे पानी में डूब जाएं या उनमें करंट आ जाए? भैंस मरेगी तो अपने करमों से और अखबार वाले छाप देंगे कि बिजली का करंट लगने से मर गई। नाहक विभाग की बदनामी होगी। इससे तो अच्छा है कि मानसून देवता के दर्शन ही नहीं हों। सड़क विभाग वाले तो मानसून यानी वर्षा से नाखुश ही रहते हैं क्योंकि इसके आते ही उनकी नाजुक सड़कों की असलियत सामने आ जाती है। एक ही बरसात में ऐसे ऐसे गड्ढे् बन जाते है कि बच्चे तैरने लगते हैं। जगह जगह स्पीड ब्रेकर हड्डी ब्रेकर बन जाते हैं।
यही हाल टेलीफोन व रेलवे विभाग वालों का है। मानसून का समय सब राम- राम कर के निकालते हैं। रहा सवाल मौसम विभाग का तो उसके और मानसून के वैसे ही नहीं पटती है। दोनों में जब तब कुट्टी चलती रहती है। मानसून उसकी भविष्यवाणी नहीं मानता है और उसके साथ आंख-मिचौली खेलता रहता है। मसलन जब मौसम विभाग यह कहेगा कि अब मानसून ने दरवाजे पर दस्तक दे दी है और अगले 48 घन्टे में इस क्षेत्र में भारी वर्षा होगी तो उस अवधि में मानसून जान-बूझ कर गायब हो जायेगा और जब मौसम विभाग घोड़े बेच कर सो रहा होगा तो मानसून दरवाजे पर दस्तक देने की बजाय खिड़की के रास्ते अंदर घुस जायेगा और फिर विभाग वाले तरह-तरह के तकनिकी शब्द इस्तेमाल करते हुए सफाई देते रहेंगे कि बंगाल की खाड़ी अथवा पाकिस्तान पर बने चक्रवात या दवाब बिन्दु की वजह से ऐसा हुआ, वैसा हुआ। इससे विभाग की 'उज्ज्वलÓ छवि धूमिल होगी। अत: मौसम विभाग ने तो मानसून से बचने हेतु भगवान से मन्नत मांगी हुई है। व्यापारी ही कौन से मानसून के पक्ष में हैं? मानसून से पहले ट्रकों में उनका सामान इधर से उधर आसानी से भिजवाया जा सकता है। भाव बढ़ाने के लिए किस सामान की कहां कमी पैदा करनी है, यह काम आसानी से हो सकता है। लेकिन इधर वर्षा शुरू हुई और उधर सड़कों पर आवागमन रुका। कभी कहीं रास्ता जाम, तो कभी कहीं पुल टूटा। कहीं सड़क पानी में डूबी इत्यादि और व्यापारी की सारी प्लानिंग फेल। कहने का मतलब यह कि मानसून आते ही व्यापारी की मुसीबत ही मुसीबत।
यह मुसीबतें तो घर के बाहर की हैं, घर में तो इससे भी ज्यादा परेशानियां हंै। मकान आपने बनवाया है तो थोडी कम मुसीबत वरना यह हाउसिंग बोर्ड अथवा डीडीए का हुआ तो यही बुद्धिमानी है कि वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले ही हर कमरे के लिए एक-एक टब की व्यवस्था कर लें, वरना आपकी रातें घड़ी देख-देख कर गुजर जायेंगी। गृहणियों की मुसीबतें भी कम नहीं हैं। पहले धोये कपड़े सूख ही नहीं रहे और दूसरे तैयार हैं। रसोई के सामान को बार-बार धूप में रखना पड़ता है। कोई एक मुसीबत हो तो आपको गिनाएं? सब की जुबान पर एक ही बात रहती है कि जल्दी से मानसून को विदा करें। इसलिए 'अधिक बुद्धिमानÓ लोग मन में यही तमन्ना करते रहते हंै कि हे भगवान! मानसून से बचा ताकि हमारे आराम में खलल न पड़े।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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