जब से कुछ समाचार पत्रों में यह खबर छपी है कि अब चाटुकारिता पर कानूनी प्रतिबंध लगाया जायगा, तभी से कतिपय 'हायर सर्किलÓ में चिंता व्याप्त है। धड़ाधड़ एसएमएस किये जा रहे हैं, मोबाइल पर फोन पर फोन हो रहे हैं कि अब क्या होगा? इनमें से कुछ का तो यह भी कहना है कि जो बात मुगलों के जमाने से चली आ रही है, वह यह सरकार ऐसे कैसे बंद करा सकती है?
अंग्रेजों के जमाने में भी कई राजा-महाराजा उनके तलुए चाटते थे। कई और लोग भी थे जिन्हें अंग्रेजों द्वारा राय बहादुर, खान बहादुर की पदवियों से नवाजा गया। बहुत लम्बी-चौड़ी लिस्ट है। अधिकतर राजा-महाराजा स्वतंत्रता के आंदोलन को दबाते थे। यही लोग ईद-दिवाली-क्रिसमस पर अंग्रेजों को डॉलियां, नजराना भेंट किया करते थे। इसलिए वह जाते-जाते इन्हें स्वतंत्रता दे गए कि चाहे तो आप भारत में मिलें, चाहे पाकिस्तान में मिलें और चाहें तो स्वतंत्र रहें। जम्मू-कश्मीर, जूनागढ, हैदराबाद इनके उदाहरण हैं, देखिए क्या इनाम दिया है? तभी तो कहा है, 'प्रति उपकार करो का तोरा, सन्मुख होय न सकत मन मोराÓ अर्थात आपने हमारे पर जो एहसान किया है, उसका बदला नही चुकाया जा सकता। देश आजाद हुआ तो अंग्रेज तो चले गए लेकिन यह लोग यहीं रह गए, लेकिन इन्होंने अपनी स्वामी भक्ति बदल कर नये राजाओं अर्थात मंत्रियों, सरकारी अफसरों इत्यादि के प्रति कर ली, जिससे कि इनकी पौ-बारह होती रहे। बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं सिर्फ आपातकाल के समय से ही चलें। देश के सबसे बड़े दल के अध्यक्ष ने उन दिनों एक बार अपने ज्ञान का परिचय देते हुए कहा, 'इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडियाÓ। अब आप ही बतायें कि और क्या कहने-सुनने को बाकी रह गया? उसी अवधि के दौरान उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए एक नाला पार करते वक्त तत्कालीन 'युवा सम्राटÓ की चप्पलें उठाई थीं, तो राजस्थान में मुख्यमंत्री ने 'युवा सम्राटÓ को ऊंट पर सवारी में मदद करने हेतु अपना कंधा आगे कर दिया था। ऐसा नहीं है कि समय बीतने के साथ-साथ इस श्रेणी के लोगों की संख्या में कमी आई हो, बल्कि दिनों दिन इसमें इजाफा ही हुआ है, जिसकी झलक हमें कुछ दिनों पूर्व उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के ओरैया दौरे के दौरान देखने को मिली, जब उनके साथ गए डीएसपी ने उनके जूते साफ किए। इतना ही नहीं इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उत्तरप्रदेश के ही कैबिनेट सैक्रेट्री ने यहां तक कह दिया कि इसमें कुछ गलत नहीं है। अगर मैं वहां होता तो मैं भी यही करता।
कुछ दिन पूर्व एक नेताजी ने वर्तमान युवराज की तुलना जयप्रकाश नारायण से करके अपने अदभुत ज्ञान का परिचय दिया। इन नेताओं की छत्रछाया में पल रहे छुटभैये चाटुकारिता के माध्यम से येन केन प्रकारेण सप्लाई ऑर्डर, लायसेन्स, परमिट, कोटा इत्यादि प्राप्त कर लेते हैं। कुछ पेटोल पम्प, गैस ऐजेन्सियां हथिया लेते हैं, फ्लैट हथिया लेते हैं। इसी जमात के कुछ लोगों ने तरह-तरह की गैर सरकारी संस्थाएं, एनजीओ, बना कर विदेशी एवं सरकारी धन हथियाने एवं विदेश यात्रा करने के लिए अपना उल्लू सीधा करने का तरीका निकाला हुआ है। ऐसे में कोई तलवे चाटने को गैर कानूनी घोषित करने की मांग करेगा तो भला इनको सहन कैसे होगा?
तलवे चाटने वालों में जो ज्यादा घुटे हुए, रिफाइंड हैं, वे रक्षा सौदे में दलाली का काम करते हैं क्योंकि वह ऊंचे दर्जे की बातें हैं। चाटुकारों में से कुछ लोग जब तब सरकारी खर्च-खाते पर अपना इलाज कराने अथवा पत्नी सहित विदेश यात्रा करने का लुत्फ उठाते रहते हैं। कुछ लोग हिन्दी के विशेषज्ञ बन कर विदेशों में हिन्दी सम्मेलनों में जा कर उसे हिन्दू सम्मेलन बनाने की कोशिश करते हैं।
खेलों में चाटुकारों का कितना वर्चस्व है यह बात किससे छिपी है? आलेम्पिक में खिलाड़ी जायेंगे, पचास तो अधिकारी जायेंगे डेढ़ सौ और मैडल आयेंगे एक या दो। तलुवे चाटने वाले सरकारी मकहमे में तो भरे पड़े हैं। इनको दूसरो का हक मार कर मैरिट से प्रमोशन लेने की कला का बहुत ज्ञान है। जाति समाज में ऐसे लोग पैसे वालों तथा जिन्होंने सालों से धार्मिक स्थलों एवं ट्रस्टों तथा शिक्षण संस्थाओं पर कब्जा किया हुआ है, के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं और उनकी जय-जयकार करते रहते हैं। ऐसे में इस कला को कौन गैर कानूनी घोषित होने देगा?
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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