ऐसा नहीं है कि अजमेर के शहरी हलकों के लोग ही अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में जब-तब हंसी-मजाक करते रहते हों, बल्कि इस इलाके के ग्रामीण अंचल के लोग भी हास्य रस का मजा लेने में किसी से पीछे नही रहते है। अब आप इस घटना को ही लें। यह उस जमाने की बात है, जब न केवल पुष्कर बल्कि आनासागर, फॉयसागर, बूढा पुष्कर इत्यादि सभी सरोवर कम से कम बरसात में तो लबालब भरे रहते थे। पुष्कर के आस-पास जमीन में भी पानी काफी ऊंचाई तक रहता था और इसी वजह से वहां गन्ने की खेती भी होती थी। कार्तिक मास में पुष्कर मेले पर गन्ने का खूब इस्तेमाल होता था। मेले के अवसर पर कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनी इत्यादि भी होते रहते हैं। ऐसे में एक बार रात्रि में एक कवि सम्मेलन चल रहा था। ग्रामीणों की भी अच्छी खासी भीड थी। इतने में मंच पर एक धाकड़ कवि आए और आते ही उन्होंने श्रोताओं को ललकारा 'किस रस में सुनना चाहते हो? शायद उनका तात्पर्य साहित्य के वीर रस, शृंगार रस, हास्य रस इत्यादि से रहा होगाा। कवि महोदय की ललकार सुन कर भीड में से एक ग्रामीण अपनी लाठी सहित उठा और बोला कि आज तो हमतो गन्ने के रस में सुनेंगे भाई! नतीजा यह हुआ कि इधर भीड़ तो ठहाके लगा रही है और उधर कवि महोदय खिसियानी हंसी हंस रहे हैं।
बीसवीं सदी के शुरू में जब दिल्ली-अहमदाबाद मीटर गेज लाइन बिछाई गई और उस पर पहले पहल जब भाप का इंजिन दौडाया गया तो कहते हैं कि अजमेर- मेरवाड़ा के मगरा क्षेत्र, ब्यावर के आस-पास के लोग भाग-भाग कर अपने घरों में छिप गए थे। बाद में उन्हें समझा-बुझा कर बाहर निकाला गया और उन्होंने पुलिस की मौजूदगी में इंजिन की पूजा की, तब कहीं जाकर उनका डर खुला। शुरू में लोग इस घटना को कपोल कल्पित मानते थे, लेकिन जब साठ के दशक में उदयपुर-हिम्मतनगर मीटर गेज लाइन डाली गई और जब उस लाइन पर सर्व प्रथम ट्रयल हेतु भाप का इंजिन चला तो रास्ते में पडऩे वाले बिच्छीवाड़ा गांव के आस-पास के आदिवासी लोग भी इंजन को भूत समझ कर भाग कर अपनी झोंपडिय़ों में जा छिपे थे, तब कहीं जाकर लोगों को उस पहली वाली बात पर विश्वास हुआ।
वर्षों पूर्व की बात है। तब अजमेर-मेरवाड़ा के गांवों में तो क्या कई कस्बों तक में बिजली नही पहुंची थी। गांवों के लोग घरों में कैरोसीन से चिमनी अथवा लालटेन जला कर रोशनी किया करते थे। एक बार ऐसा हुआ कि एक जगह मिट्टी का तेल घरों में भी खत्म हो गया और गांव के दुकानदार के यहां भी। बड़ी हाय-तौबा मची। हार-थक कर गांव के अधिकांश लोग पास के कस्बे में पहुंचे। उन्हें सड़कों पर नगरपालिका के लैम्प पोस्ट दिखाई पड़े। भीड़ में मौजूद विरोधी दल के एक नेता ने उन्हें उकसा दिया कि आप लोग इन खम्बों से घासलेट क्यों नहीं निकाल लेते? इतना कह कर वह नेता तो गायब हो गया और लोग एक खम्बे के पास इकट्ठा हो गए और गैंती-फावड़ों से उसे तोडऩे लगे। यह तो भला हो गांव के मास्Óसाब का जो उसी समय अपनी साइकिल पर उधर से निकल रहे थे, उनकी नजर उस पर पड़ी और उन्होंने माजरा समझ कर गांव वालों को समझाया कि यह तो नगरपालिका के बिजली के खम्बे हैं, इनमें घासलेट नहीं है, तब कहीं जाकर गांव वाले वापस हुए वर्ना उस रोज कुछ न कुछ होकर रहता।
पहले जब साल के कुछ दिनों खेतों में काम नहीं होता था, तब गांव वाले अक्सर ही चौपाल अथवा हथाई पर बैठ कर दुनियादारी की बातें करते रहते थे। एक बार की बात है कि लोग चौपाल पर बैठे हुए थे, तभी उधर से कुछ राहगीर निकले। उन्होंने जिज्ञासावश गांव वालों से पूछ लिया कि इस गांव के लोग क्या करते हैं? इस पर वहां बैठे एक ग्रामीण ने जवाब दिया कि सर्दियों में इस चबूतरे के पूरब की तरफ आकर बैठ जाते हैं और धूप के साथ-साथ सरकते हुए शाम होते-होते पच्छिम की तरफ पहुंच जाते हैं। और गर्मियों में, आगंतुक ने पूछा। गर्मियों में हम लोग मुंह अंधेरे ही पच्छिम की तरफ आ कर बैठ जाते हैं और सांयकाल होते-होते छाया के साथ सरकते हुए पूरब की तरफ पहुंच जाते हैं। इस पर आगंतुक यह कहते हुए चले गए कि बहुत व्यस्त रहते हो।
पुष्कर धार्मिक स्थल तो है ही, देशी-विदेशी सैलानियों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण स्थल है। कभी-कभी विदेशी सैलानी पुष्कर के आस-पास के गांवों की तरफ भी निकल जाते हैं। एक बार की बात है कि कुछ विदेशी सैलानी गनाहेड़ा से कुछ आगे सिलोरा की तरफ निकल गए। वहां गांव की चौपाल पर बैठे कुछ लोगों से दुभाषिये की मार्फत उन्होंने पूछा कि क्या यहां कोई बड़ा आदमी पैदा हुआ है?
'साÓब! यहां तो सब बच्चे ही पैदा होते हैं। आज तक यहां कोई बड़ा आदमी पैदा नहीं हुआÓ गांव वालों ने कहा।
जैसा कि आप जानते ही हैं गांव में अक्सर पीने के साफ पानी की कमी रहती है, इसके लिए सरकार, चाहे दूर से ही लाए, पाइप लाइन डाल कर पानी लाती है। ऐसे में एक बार जलदाय विभाग के कुछ कर्मचारी सर्वेक्षण हेतु लेवल पेटी, नापने जोखने के कुछ यन्त्र, फीता इत्यादि लेकर गांव में पहुंचे। उन्हें देख कर गांव वाले वहां जमा हो गए। जिज्ञासावश उन्होंने कर्मचारियों से पूछा कि यह सब किसलिए? तो कर्मचारियों ने बताया कि जहां पानी उपलब्ध है वहां से गांव तक छोटे से छोटे रास्ते होते हुए पाइप लाइन बिछानी है। इस पर गांव वालों ने कहा कि इत्ती सी बात के लिए इतना ताम-झाम करने क्या जरूरत है, हमें तो जब ऐसे रास्ते की खोज करनी होती है तो हम एक गदे को डंडा मार कर उस ओर हांक देते हैं, वह जिस रास्ते होकर जाता है, वही छोटे से छोटा रास्ता होता है। चाहें तो आप भी आजमा लें।
सरकार का कहना है कि वह गांव वालों के लिए कई कार्यक्रम चलाती है, परन्तु जनता उसमें हिस्सा ही नहीं लेती। उदाहरणार्थ एक बार गांव में साक्षरता अभियान चलाया गया। इसके लिए जगह-जगह पोस्टर लगाए गए, जिसमें लिखा था गांव वाले साक्षर बनने के लिए डायरेक्टर, साक्षरता कार्यक्रम को प्रार्थना पत्र भेजें। उसमें अपना नाम, उम्र एवं पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। लिफाफे पर टिकट भी लगा दें।
एक और सच्ची घटना सुनें। गांव वाले सरकार द्वारा समय-समय पर चलाये जा रहे कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने लगे हैं। ऐसे ही परिवार नियोजन के एक कैम्प में एक छोटे से गांव के सभी पुरुषों ने अपने-अपने ऑपरेशन करवा लिए, जब विभाग वाले जाने लगे तो तीन कुंआरे नौजवान उनके पास आए और अपने आप को ऑपरेशन के लिए पेश किया। कर्मचारियों ने उन्हें समझाया कि हमें नौजवानों और वह भी कुंआरों के ऑपरेशन करने की मनाही है। पहले भी युवक सम्राट के आदेश पर आपातकाल के दौरान ऐसे केसेज हुए थे तो हमारे विभाग के कई लोगों पर मुकदमे दायर हुए थे, जिनकी कोर्ट-कचहरी में अभी तक तारीखें चल रही हैं, इसलिए हम यह ऑपरेशन नही करेंगे, फिर भी उन्होंने युवकों से पूछा कि आप लोग ऑपरेशन हेतु इतनी जिद क्यों कर रहे हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि 'साÓब आपने गांव के सभी पुरुषों के ऑपरेशन कर दिए अब खुदा न खास्ता गांव में कुछ उल्टा-सीधा हो गया तो उसके लिए हमी को जिम्मेवार ठहराया जायगा। फिर न पंचायत हमारी कुछ सुनेगी और न पुलिस। तब कहीं जाकर विभाग वालों के बात समझ में आई।
गांवों में अब भी आखातीज पर छोटे-छोटे बच्चों की थोक में शादियां होती हैं। ऐसी शादियों में नेता तो शामिल होते ही हैं, जागरूक नागरिक भी कुछ नहीं करते। पुलिस थाने के सामने से बरात निकल रही है और कोई कुछ नहीं कहता। पुलिस का कहना है कि कोई हमें लिखकर दे कि ऐसी शादी हो रही है तभी कुछ किया जा सकता है क्योंकि आम जनता का मामला हो तो हर चीज पुलिस लिखित में मांगती है और रसूखदार का मामला हो तो मूक जुबानी आदेश मानती है। खैर, ऐसी ही एक शादी की बात है। रात्रि में खाना खाकर दूल्हा-बराती सभी सो गए। जब आधी रात को फेरे की रस्म का मौका आया तो दूल्हे के बाप ने दूल्हे को झकझोरा और कहा 'चल उठ, फेरा खालैÓ, दूल्हा गहरी नींद में था, उसने आधी नींद में ही जवाब दिया 'म्हनै भूख कोनी, थे ही खाल्योÓ, लेकिन लडके का बाप आसानी से हार मानने वाला नहीं था। उसने लडके को फिर झकझोरा, 'अरे! उठ जा फेरे खाकर फिर सो जाना।Ó लडृके ने इस बार अपना पैंतरा बदला और कहा कि कांदा कै साथ खाऊं। अब कंवर साहब के लिए कांदा यानि प्याज की खोज होने लगी। इसीलिए दूल्हे को राजा कहते है, चाहे एक दो दिन का ही हो।
एक बार ब्यावर तहसील के टाटगढ के पास किसी गांव में रामभरोसे के घर डाका पडा। दो-तीन रोज बाद पुलिस आई और बड़े रौब से थानेदार साहब ने रामभरोसे से पूछा-
...क्या तुमही रामभरोसे हो?
...हुकुम! मैं ही क्या अब तो सारा परिवार ही रामभरोसे है।
...डकैती पडी तब क्या वक्त था?
...बुरा वक्त था हुजूर! रामभरोसे मिमियाया
...ओहो! मैं पूछता हंू बजा क्या था? थानेदार साहब ने झुंझलाते हुए कहा
...सिर पर लाठी बजी थी, सरकार!
...अबे! घडी में क्या बजा था, एक सिपाही बोला।
...घडी में अलार्म बजा था, रामभरोसे बोला।
यह सुनकर थानेदार साहब झुंझला कर मकान के बाहर आ गए और
तफ्सीस साथ के सिपाही को सौंप दी।
तो यह थी अजमेर के ग्रामीण अंचल की चंद हास्य रस की घटनाएं, जो आपको बताई हैं, ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आएं।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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