सुहाग मेरा निरंतर,सलामत रहे,बस इतना ही चाहती हूँ
कब
तक छुपोगे
बादलों से निकलोगे
चांदनी फैलाओगे
मुखड़ा दिखाओगे
दर्शन मुझे दोगे
भूखी प्यासी बैठी हूँ
तुम में पीया को देखती हूँ
उसे ढूंढती हूँ
व्रत करवा चौथ का रख
लम्बी उम्र की दुआ
मांगती हूँ
सुहाग मेरा निरंतर
सलामत रहे
बस इतना ही
चाहती हूँ
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
Mobile:09352007181
शनिवार, 15 अक्टूबर 2011
सोमवार, 10 अक्टूबर 2011
अब ‘जी’ ‘जी’ ना कहना !
आए दिन देष में नित नए घोटालें प्रकाष में आ रहे हैं. हर बार यह लगता हेै कि
इस बार का घोटाला सबसे बडा हैं. इन्हें देख-सुनकर लोगबाग अकबर के जमाने की एक
बात याद कर रहे हैं. एक बार बादषाह अकबर अपने नवरत्नों सहित दरबार में बैठे हुए थे
तभी उन्होंने बीरबल की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने एक कागज पर कलम से एक लकीर
खींचकर बीरबल से कहा कि इस लकीर से छेडछाड किए बगैर इसे छोटी करके दिखाओइस
बात पर बीरबल मुस्कराया और षहंषाह के हाथ से कलम लेकर उस लकीर के पास
ही एक बडी लकीर खींच दी और कहा कि जहांपनाह लो, यह पहलेवाली लकीर छोटी
होगई. ठीक यही परिदृष्य आज देष की खुली अर्थव्यवस्था एवं सरकार की ढिलाई से एक
के बाद एक घोटालों के खुलने से देखने को मिल रहा हैं. अमेरिका के हार्वर्ड विष्वविद्यालय
और विष्वबैंक के ऐक्सपटर्स लोगों की नाक के नीचे नित नए घोटालें उजागर हो रहे हैंकुछ
वर्षों पूर्व हरषद मेहता कांड हुआ. आम जनता के पैसों के खूब चूना लगाफिर
केतन देसाई कांड, तेलगी स्टाम्प पेपर कांड, सत्यमराजू घोटाला कांड, आईपीएल कांड
हुआ, मधुकोडाके काले करनामें उजागर हुए और इसके बाद सीडब्लूजी, मुम्बई आदर्ष
सोसाइटी कांड हुआ फिर टूजी स्पैक्ट्म घोटाला सामने आया तो यह बाकी सब घोटालें बौने
हो गए जैसे उपरोक्त अकबर-बीरबल के किस्सें में हुआ था, फिर सरकार कह देगी ‘मैं
मजबूर हूं’ सुना आपने ? मजबूत नही मजबूर !
इन दिनों चारों तरफ जी, टूजी, थ्रीजी की ही चर्चा हो रही हैं. वैसे जिन्दगी में हम
सबका किसी न किसी ‘जी’ से पाला पडता ही रहता हैं. मुझे स्वयं को बचपन में पास
पडौस की नवविवाहिताएं ‘लालजी’ ‘छोटयाजी’ कह कर पुकारती थी तो मैं दौड दौडकर
उनके छोटे-मोटे काम कर दिया करता था. फिर जब मैं बडा होगया तो मेरी षादी होगई
और मेरी पत्नि मुझे ‘ऐजी’ कह कर पुकारने लगी और मुझे जब कुछ कहना होता तो मैं
उसे ‘सुनोजी’ कह कर संबोधित करता तो वह जवाब देती ‘हांजी’ ‘कहोजी’ यानि दोनों ओर
से ‘जी’ ‘जी’ का ही संबोधन होता, रिष्तों में भी मिठास बना रहता.
भूतपूर्व एनडीए सरकार और अब यूपीए की वजह से देष में ‘जी’, ‘टूजी’ अथवा
‘थ्रीजी’ की इतनी फजीहत हुई हैं कि अब कोई ‘जी’ का नाम ही नही लेना चाहता न जाने
कोैनसी आफत सिर पर आजाय ? और तो और अब पारिवारिक रिष्तों में भी इस
‘जीजी’ यानि टूजी का नकारात्मक प्रभाव पडने लगा है कि कोई भी भाई अपनी बडी बहन
को ‘जीजी’-दीदी- कहने में घबराने लगा हैं. इस दहषत से पति-पत्नि के रिष्तों में भी दरार
पडने की संभावना बढ गई हैं क्योंकि पत्नि जब ऐजी की जगह सिर्फ ‘ऐ’ बोलेगी तो क्या
नजारा बनेगा ? बडी बहन को अब कोई टूजी यानि जीजी नही बोलना चाहेगा क्योंकि अगर
सीबीआई के किसी कारिन्दें ने सुन लिया कि यह बन्दा भी बिना लायसैंस ‘टूजी’ का
इस्तैमाल कर रहा हेै तो आनन फानन में छापा पडने की संभावना बढ जायेगी. सीबीआई
तो यही समझेगी कि यह षख्स भी ‘पहले आओ पहले खाओवेवाली’ स्कीम में षामिल हेै
अतः इसको भी घेरें में लिया जाय.
इसलिए विषेषज्ञों की राय है कि जब तक यह मसला कोर्ट में है आप भी घर-
बाहर किसी भी तरह के ‘जी’ ‘जी’ से बचे. जाने कब क्या आफत आजाय ?
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
इस बार का घोटाला सबसे बडा हैं. इन्हें देख-सुनकर लोगबाग अकबर के जमाने की एक
बात याद कर रहे हैं. एक बार बादषाह अकबर अपने नवरत्नों सहित दरबार में बैठे हुए थे
तभी उन्होंने बीरबल की परीक्षा लेनी चाही. उन्होंने एक कागज पर कलम से एक लकीर
खींचकर बीरबल से कहा कि इस लकीर से छेडछाड किए बगैर इसे छोटी करके दिखाओइस
बात पर बीरबल मुस्कराया और षहंषाह के हाथ से कलम लेकर उस लकीर के पास
ही एक बडी लकीर खींच दी और कहा कि जहांपनाह लो, यह पहलेवाली लकीर छोटी
होगई. ठीक यही परिदृष्य आज देष की खुली अर्थव्यवस्था एवं सरकार की ढिलाई से एक
के बाद एक घोटालों के खुलने से देखने को मिल रहा हैं. अमेरिका के हार्वर्ड विष्वविद्यालय
और विष्वबैंक के ऐक्सपटर्स लोगों की नाक के नीचे नित नए घोटालें उजागर हो रहे हैंकुछ
वर्षों पूर्व हरषद मेहता कांड हुआ. आम जनता के पैसों के खूब चूना लगाफिर
केतन देसाई कांड, तेलगी स्टाम्प पेपर कांड, सत्यमराजू घोटाला कांड, आईपीएल कांड
हुआ, मधुकोडाके काले करनामें उजागर हुए और इसके बाद सीडब्लूजी, मुम्बई आदर्ष
सोसाइटी कांड हुआ फिर टूजी स्पैक्ट्म घोटाला सामने आया तो यह बाकी सब घोटालें बौने
हो गए जैसे उपरोक्त अकबर-बीरबल के किस्सें में हुआ था, फिर सरकार कह देगी ‘मैं
मजबूर हूं’ सुना आपने ? मजबूत नही मजबूर !
इन दिनों चारों तरफ जी, टूजी, थ्रीजी की ही चर्चा हो रही हैं. वैसे जिन्दगी में हम
सबका किसी न किसी ‘जी’ से पाला पडता ही रहता हैं. मुझे स्वयं को बचपन में पास
पडौस की नवविवाहिताएं ‘लालजी’ ‘छोटयाजी’ कह कर पुकारती थी तो मैं दौड दौडकर
उनके छोटे-मोटे काम कर दिया करता था. फिर जब मैं बडा होगया तो मेरी षादी होगई
और मेरी पत्नि मुझे ‘ऐजी’ कह कर पुकारने लगी और मुझे जब कुछ कहना होता तो मैं
उसे ‘सुनोजी’ कह कर संबोधित करता तो वह जवाब देती ‘हांजी’ ‘कहोजी’ यानि दोनों ओर
से ‘जी’ ‘जी’ का ही संबोधन होता, रिष्तों में भी मिठास बना रहता.
भूतपूर्व एनडीए सरकार और अब यूपीए की वजह से देष में ‘जी’, ‘टूजी’ अथवा
‘थ्रीजी’ की इतनी फजीहत हुई हैं कि अब कोई ‘जी’ का नाम ही नही लेना चाहता न जाने
कोैनसी आफत सिर पर आजाय ? और तो और अब पारिवारिक रिष्तों में भी इस
‘जीजी’ यानि टूजी का नकारात्मक प्रभाव पडने लगा है कि कोई भी भाई अपनी बडी बहन
को ‘जीजी’-दीदी- कहने में घबराने लगा हैं. इस दहषत से पति-पत्नि के रिष्तों में भी दरार
पडने की संभावना बढ गई हैं क्योंकि पत्नि जब ऐजी की जगह सिर्फ ‘ऐ’ बोलेगी तो क्या
नजारा बनेगा ? बडी बहन को अब कोई टूजी यानि जीजी नही बोलना चाहेगा क्योंकि अगर
सीबीआई के किसी कारिन्दें ने सुन लिया कि यह बन्दा भी बिना लायसैंस ‘टूजी’ का
इस्तैमाल कर रहा हेै तो आनन फानन में छापा पडने की संभावना बढ जायेगी. सीबीआई
तो यही समझेगी कि यह षख्स भी ‘पहले आओ पहले खाओवेवाली’ स्कीम में षामिल हेै
अतः इसको भी घेरें में लिया जाय.
इसलिए विषेषज्ञों की राय है कि जब तक यह मसला कोर्ट में है आप भी घर-
बाहर किसी भी तरह के ‘जी’ ‘जी’ से बचे. जाने कब क्या आफत आजाय ?
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
ऐसा था हमारा मोहल्ला !
यह षहर षुरू षुरू में मुख्यरूप से थोक तेलियान और थोक मालियान में बंटा हुआ
था जिसके चारों तरफ देहलीगेट, आगरागेट, मदारगेट इत्यादि हैं. वैसे होने को यहां कई
पोल भी है जैसे सर्राफापोल, खटोलापोल, सुदामापोल इत्यादि लेकिन इतना होने के बावजूद
पोल के मामले में यह जयपुर से उन्नीस हीे है जहां चांदपोल, सूरजपोल तो है ही एक साथ
तीन-तीन पोल यानि त्रिपोलियां भी है ओैर इसीलिए विषेषज्ञों का तो यहां तक कहना था कि
इसी ‘पोलेल’ की अधिकता की वजह से ही जयपुर इस षहर से राजधानी बनने की दौड में
बाजी मार गया. खैर,
बसावट के मामलें में कालांतर में जाने किस मानसिकता के वषीभूत होकर यहां के
लोगों ने अपने आपको अलग अलग सम्प्रदायों एवं जातिगत रिहायषी क्षेत्रों में बंाट लिया
और अपने मोहल्लों के नाम रख लिए माली मोहल्ला, सरावगी मोहल्ला, मोची मोहल्ला, गोधा
गुवाडी इत्यादि. यहां तककि एक जगह तो गधा गुवाडी तक है हालांकि वहां गधों के साथ
साथ आदमी भी रहते है आप चाहे तो जाकर देख सकते हेैं. कहते है कि एक बार वहां
किसी ने यह बोर्ड भी टांग दिया था ‘यहां गधें रहते है’ जिसे कुछ लोगांे द्वारा एतराज करने
पर तत्कालीन नगर परिषद ने उसे हटवाया. ऐसी ही दिल्ली में एक स्थान पर सरे आम
लिखा है ‘यहां हाथी रहते है’ कौन नही जानता कि दिल्ली-जयपुर में हाथी रहते है चाहे
सफेद हो या किसी और रंग के क्या फर्क पडता है ? हाथी तो हैंइसी
षहर के एक मोहल्लें में मुझे भी रहने का ‘सौभाग्य’ मिला. उस जमाने में ऐसी
जगह रहने का सबसे बडा फायदा यह था कि पास-पडौस में न केवल तांक-झांक बल्कि
उनकी बातें सुनने का भी मौका मिल जाता था. घरकी छोटी से छोटी घटना भी पास पडौस
से छिपती नही थीहमारें
इसी मोहल्लें में कई दिलचस्प व्यक्ति रहा करते थे. उनमें से एक
सोहनलालजी भी थे. वह परिवार नियोजन के खिलाफ थे. वह कोई छोटा मोटा काम करके
अपनी गृहस्थी चलाते थे. उनका बडा लडका भी पढने लिखने में कम ही ध्यान देता था.
एक बार की बात है कि हमारें मोहल्लें में सरकारी कर्मचारियों का कोई दल कोई जानकारी
जुटाने आया. उन्होंने पूछताछ के दौरान सोहनलालजी के लडके से कहा कि आपके पिताजी
कहां है उन्हें बुलाओ. इस पर लडके ने अपने पिताजी को, जो सामने हथाई पर बैठे ताष
खेल रहे थे, बुलाने के लिए आवाज लगाई ‘ऐ मेरे बाप ! यहां आ’ यह सुनकर दल के
लोगों को अच्छा नही लगा उन्होंने लडकें को समझाया कि अपने पिताजी को ऐसे नही बोलते
हेैं. उन्हें तमीज से बुलाते हैं. इस पर लडके ने पुनः आवाज लगाई ‘ऐ मेरे बाप ! तमीज से
यहां आ’ यह सुनकर सभी आगंतुक मुस्कराने लगे.
एक बार बडी मजेदार घटना हुई. चौराहें पर एक पुलीसवाला सोहनलालजी को पीट
रहा था और वह हंस रहे थे. जब वह पुलीसवाला चला गया तो लोगों उनसे पूछा कि
पुलीसवाला आपको पीट रहा था और आप हंस रहे थे तो उन्होंने जवाब दिया कि वह मुझे
मोहनलाल समझकर पीट रहा था जबकि मेरा नाम तो सोहनलाल हैंसोहनलालजी
के पास ही घनष्यामजी रहते थे जो वैसे तो रेलवे के कैरिज कारखाने
के ब्लैकस्मिथ षॉप-लौहार खाना-में काम करते थे लेकिन उन्हें किषोरावस्था से ही पहलवानी
का षौक था. अपनी युवावस्था में वह दौलतबाग के पास स्थित केलकी बगीची में दंडबैठक,
कुष्ती इत्यादि के लिए जाया करते थे. इलाके में तो उनका रौब था ही रेलवे सप्ताह के
दौरान भी वह कई ईनाम वगैरह जीतते रहते थे. एक बार की बात हेै कि वह सांयकाल
अपने घर में दाल-रोटी खा रहे थे. दाल में कंकड आ जाने की वजह से कड-कड की
आवाजें आ रही थी. जब रसोई में खाना बना रही उनकी पत्नि ने यह आवाजें सुनी तो वह
वही से ही बोली कि क्या दाल में कंकड ज्यादा हेै तो पहलवान साहब ने मिमियाते हुए
जवाब दिया कि ‘नही, नही, ज्यादा तो दाल ही हेै’. बीबी के सामने और क्या बोलते ?
षहर में षुरू से ही पानी की किल्लत थी. यह तो भला हो वाटर वर्क्सवालों का जो
गर्मियों में चार-पांच रोज के अंतराल से ओैर बाकी दिनों में दो-तीन रोज के अंतराल से
अलसुबह ही पानी की सप्लाई दे दिया करते थे. इस विषय में विभाग के अपने तर्क थेगर्मिय
ों में कम पानी देने के बारें में उनका कहना था कि चूंकि अक्सर इन दिनों लेडीज
अपने पीहर और बच्चें अपने ननिहाल जाने का प्रोग्राम बनालेते है लेकिन जैसेही उन्हें पता
लगता था कि इस षहर में पानी का तोडा है तो वह यहां आने में कतराने लगते थे. इससे
‘मेहमान से भगवान बचायें’ वाली लोकाक्ति अपने आप चरितार्थ होजाती थी, रहा सवाल
अलसुबह उठाकर पानी देने का तो इस पर विभागका तर्क था कि इससे एक पंथ दो काज
वाली कहावत सिद्ध होती हैं. आप पानी भी भर सकते है और बीबी के साथ धर के
कामकाज में भी हाथ बंटा सकते हैंमोहल्लें
में सरकारी नल लगाा हुआ था जहां आए दिन पानी भरते समय झगडें-
टन्टें होते रहते थे. एक बार की बात है कि एक नवयुवती और एक वृद्धा के बीच तू तू-मैं
मैं होगई. वृद्धा ने युवती को ललकारा कि मेरे से ज्यादा करेगी तो तेरी षादी उस फकीर से
करवा दूंगी, जो संयोग से उधर से निकल ही रहा था. यह सुनकर वह फकीर ठहर गया.
खैर, लोगों ने बीच बचाव करके झगडा तो निबटा दिया. जब अधिकांष लोग चले गए तो
उस फकीर ने आकर उस वृद्धा से पूछा कि मांई मेैं रूकू या चला जाउॅ ?
जब देष में जनगणना होने लगी तो हमारे मोहल्लें का भी नम्बर आया. सबसे पहले
वह लोग नुक्कडवालें प्रभुदयालजी के मकान पर पहुंचे. उन्होंने उनसे स्वयं के नाम-धाम के
बाद पूछा कि आपके कितने बच्चें है ? तो प्रभुदयालजी ने बताया कि मेरे तीन बच्चें हैेंदलवालों
ने पूछा कि लडके कितने है ? तो उन्होंने जवाब दिया कि तीन है तो दल वालों ने
फिर पूछा कि लडकियां कितनी है ? इसपर प्रभुदयालजी फटी फटी आंखों से उन्हें देखने लगे
और धीरे से कहा कि तीनों लडके ही हैंइसके
बाद वह लोग चौथमलजी के घर गए तो संयोग से उन्हें चौथमलजी के पिताजी
मिल गए. कर्मचारियों ने नाम वगैरह के बाद उनकी उम्र पूछी तो उन्होने 55 साल बताईजनगण्
ाना के दल में षामिल मास्’साब को थोडा षक हुआ. उन्होंने पिछली जनगणना का
रिकार्ड देखा और बुजुर्ग से कहा अंकलजी ! पिछली जनगणना में भी आपने अपनी उम्र 55
वर्ष ही बताई थी और आज भी आप अपनी उम्र 55 ही बता रहे हेै इस पर बुजुर्ग ने
जवाब दिया कि इतनी महंगाई और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे इस माहौल में पिछले 10 वर्ष
का जीना भी क्या जीना था ? सुनकर सभी कर्मचारी चुप्पी साध गए.
इतनाही नही जब दलवालें घर-बार की भी जानकारी लेने लगे मसलन मकान किस
चीज का बना है, छत किसकी बनी है ? इत्यादि, तो बुजुर्ग ने पूछा कि दीवार और छतों की
जानकारी लेकर सरकार क्या करने जा रही है ? कर्मचारियों ने तो इस प्रष्न का कोई
समुचित उत्तर नही दिया लेकिन घर के अंदर से चौथमलजी की माताजी की आवाज आई
कि मंदिर में पंडितजी अक्सर कहते रहते हेै कि भगवान जब देता है तो छप्पर फाडकर देता
है षायद इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार जानकारी इकटठा कर रही होगी कि किस
किसके घर पर आसानी से फटने लायक छप्पर है ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम
आए.
मोहल्लें में ही पास के एक और घर में जब जनगणनावालें घुसे तो गृहणी खाना बना
रही थी. एक कर्मचारी ने उससे पूछताछ षुरूकी
... आपके पति क्या काम करते है ?
...वो प्रेस का काम करते है...
बहनजी ! क्या वह किसी अखबार से जुडे हुए हैं ?
...पढते तो वह कई अखबार है लेकिन यहां नही पढते. किसी पानवालें या नाई की
दुकान पर जाकर पढते है. कभी कभी पडौस की आटेकी चक्कीवालें से भी मांगकर ले आते
है. किस से जुडे है यह मुझे पता नही.
तब जनगणना करनेवाले कर्मचारी ने कहा कि षायद आप मेरा मतलब नही समझी, आपके
पति प्रेस का क्या काम करते है जरा खुलासा बताइयेइस
बात पर गृहणी कहने लगी, अभी पिछली 26 जनवरी को बच्चों के जिद्ध करने
पर जब हम स्टेडियम में परेड देखने गए तो जल्दी ही चले गए. वहां झन्डारोहण के स्थान
के पास ही अलग से बने एक स्थान पर कुर्सियां लगी हुई थी और एक पुटठे पर लिखा
हुआ था ‘प्र्रेसेस’ अतः हम दोनांे अपने बच्चों सहित उन कुर्सियों पर बैठ गए ओैर बैठते
वक्त मेरे पति ने मुझसे यह भी कहा था कि देखो असली आजादी तो अब आई है. अपने
प्रेस का धंधा करनेवालों के लिए सरकार ने आगे ही आगे अलगसे बैठने के लिए कुर्सियां
तक बिछाई हैजनगण्
ानावाला तब भी कुछ नही समझा, सिर खुजाता हुआ बोलाः-
...कही आपके पति किसी प्रिन्टिग प्रेस में तो नही है ?
नही नही, गृहणी बोली, वह तो पांचवी फेल हैतो
क्या हुआ ? कर्मचारी बोला, हो सकता है वहां कम्पोजिंग का काम करते हो ?
वह बोली:-
वे तो एक दुकान पर काम करते हैदुकान
पर ? यह सुनकर कर्मचारी का माथा ठनका. बोला, दुकान पर कौनसी प्रेस का काम
करते है ? उसने अपने अल्प ज्ञान का परिचय दियावह
बोली:-
...कपडों पर प्रैस करते हैतब
कर्मचारी को समझ आई ओैर वह बोला:-
...अच्छा, अच्छा, कपडों पर प्रैस करते है. ठीक, बिलकुल ठीक, लेकिन यह बताइये कि
कौनसी प्रैस करते हैे, कोयले की प्रैस, स्टीम प्रैस या इलैक्ट्कि प्रैस ? ताकि हम अपने
कॉलम में यह बात भर सकें. कर्मचारी ने बात को संवारने की कोषिष की.
तब गृहणी बोली:-
...कोयलें की प्रैस काम में लेते है ओैर रात-विरात कभी भी घर आते है तो उन्हें कोई
पुलीसवाला अथवा अन्य व्यक्ति टोकता नही है क्योंकि पडौस के षर्माजी की ही तरह, जो
कि प्रिटिंग प्रेस में काम करते है, इन्होंने भी अपनी साईकिल पर एक तख्ती टांग रखी है,
उस पर लिखा रहता है ‘प्र्रेसेस’
मुस्कराते हुए जनगणनावालें, इतना नोट करके, अगले घर की तरफ चल पडेइनके
पडौस में ही रामस्वरूपजीवर्मा टेलर मास्टर का मकान था. मदारगेट पर ऐवन
टेलर के नामसे उनकी दुकान थी. वह षर्ट एक्सपर्ट कहलाते थे. मास्टर साहब को अपने
धन्धें पर बडा फक्र था और हो भी क्योंन, उनका कहना थाकि इसी धन्धें की खातिर वह
चौथी क्लास फेल होते हुए भी मास्टर कहलाते है और उनकी अनपढ पत्नि मास्टरनी. उनके
पडौसी सुखरामजी का लडका जब पांचवी क्लास में तीसरीबार फेल होगया तो उसके पिताजी
ने उसे मास्टरजी की दुकान पर बैठा दिया कि औेर कुछ नही तो यह काम ही सीख जायेगा
तो दाल-रोटी तो खा लेगा. षुरू-षुरू में वह काज-बटन करने लगा. कई रोज बाद जब
सुखरामजी ने मास्’साब से अपने लडके के बारे में पूछा तो मास्’साब ने बताया आप फिक्र
ना करे अभी वह जेब काटना सीख गया है अगले महीने मैं उसे गला काटना सिखा दूंगाय
ह सुनकर सुखरामजी एक बार तो चकरा गए, वह सोचने लगे कि क्या उनका लडका अब
यही काम करेगा ?
इसी मोहल्लें में कुछ आगे की तरफ भैंरूजी का प्रसिद्ध मंदिर था. उसके पुजारीजी
बडे सिद्धहस्त थे. उनके पडौस में रामनाथजी के जब पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने
पुजारीजी से बच्चें के ग्रह-नक्षत्र के बारें में बातकी. पुजारीजी ने बताया कि बच्चा ‘मूलों’
अर्थात मूलनक्षत्र में हुआ है अतः विषेष हवन-जप इत्यादि करवाना पडेगा औेर बच्चें की
षक्ल सूरत एवं जंम कुंडली देखते हुए उन्होंने यह गूढ रहस्य उजागर किया कि यह पूर्व
जंम में संकटमोचककी सेना में रहा होगा, अतः इसका नाम कपि रखना उचित होगा. माता
पिता मान गए और सब उसे इसी नामसे पुकारने लगेइसी
मोहल्लें में कालीचरणजी भी रहते थे. लोगों का अनुमान था कि जब स्वर्ग में
विधाता रंगरूप बांट रहा था तब वह षायद लाईन में पीछे की तरफ होंगे. एक तो काला
रंगरूप और उपर से खुदका बनाया हुआ थुलथुल षरीर, वह एक विषेष आकृति के धनी
थे. हमारी इस कॉलोनी में एक डाकौत हर षनिवार को तेल मांगने आया करता था. एक
षनिवार की बात है डाकौत उनके घर के बाहर तेलदान हेतु ‘षनिमहाराज, षनिमहाराज’ की
आवाजें लगा रहा था. काफी देर तक जब उसकी कोई सुनवाई नही हुई तो उसने जोर2 से
आवाजें देना षुरू कर दिया. इतने में कालीचरणजी घर के बाहर आए और डाकौत को
झिडकते हुए कहा ‘क्यों आधे घन्टें से दिमाग खा रहा है, कहतो दिया कि आरहा हंू, आरहा
हूं’. इस स्वीकृति के बाद डाकौत आगे क्या बोलता ?
इस घटना के काफी समय बाद की बात हैं. पुष्कर में मेरे एक मित्र जयचन्द्रजी है
पेषे से वकील हैं. एक बार वह मेरे यहां आए हुए थे. हम ड्ाइंगरूम में बैठे हुए थे. षायद
सावन-भादों का महीना थातभी
बाहर एक ठेलेवाला जामुन बेचता हुआ निकला. वह ‘कालें कालें पुष्करवालें’ की
आवाजें लगाा रहा था. संयोग की बात है कि वकील साहब का रंग एकदम साफ है, उन्हें
यह बात नागवार गुजरी और वह बाहर निकले और उस ठेलेवालें से बहस करने लगे कि
तुम पुष्करवालों को काला कैसे कह रहे हो ? वकीलसाहब की बात ठीक भी है. इसी
काले-गोरे को लेकर एक कवि की उडान देखिये वह दुनियां के मालिक को क्या उलाहना
देरहा है:-
‘भगवान म्है भी कोनी,
अकल को भोंरोंकिन्नै
ही बणा दियो कालो,
अर किन्नै ही गोरों.’
सन सत्तर के दषक में टीवी का आगमन हुआ. पहले ब्लैक एन्ड वाइट और फिर
रंगीन. उन्ही दिनों की बात है. एक रोज मैं पडौसी के साथ उनके ड्ाइंगरूम में बैठा टीवी
देख रहा था. कोई कार्यक्रम चल रहा था. कुछ देर बाद समाचार आने लगे. इतने में किसी
कामसे उन सज्जन के बेटे की बहू फिर वहां आई और इस बार उसने झट से घूंघट
निकाल लिया. पहले तो मैं यह समझा कि मुझे ‘रैस्पैक्ट’ देने हेतु उसने ऐसा किया है
लेकिन फिर बाद में मैंने सोचा कि ऐसा ही था तो इसके पहले भी वह जब यहां आई थी
उसे ऐसा करना चाहिए था. मुझे असंमजस में देख पडौसी ने मेरी षंका का समाधान किया
और बताया कि समाचारवाचक बहू के मामाष्वसुर लगते हेै, उन्हीं से घूंघट किया हैं.
ऐसे मोहल्लों में पडौसियों में आपस में आए दिन ही खूब कलह झगडें इत्यादि होते
रहते है जिनमें महिलाएं भी बढचढकर हिस्सा लेती हैं. यह उन दिनों की बात है जब
फुटबाल के विष्वकप के मैच चल रहे थे. एक दिन सुबह सुबह ही मेरी पत्नि घर से बाहर
जाने लगी तो मैंने उससे पूछा कि कहां जारही हो ? तो उसने जवाब दिया कि मंदिर के
पासवाली पडौसन को उसकी औकात बताने जा रही हूं. इसपर मैंने उसे कहा कि कल
तुम्हारे बीच झगडा हो रहा था वह बडी मुष्किल से छुडाया था और आज फिर तुम झगडने
चलदी, इस पर वह बोली कि ‘कल सेमीफाइनल था और आज फाइनल हैं.’ मैंने सोचा
आखिर मैच से हम कुछ तो सीखते ही हैंहमारे
मोहल्लें के पासही एक छोटा-मोटा मार्केट था. वहां दुकानों के साथ साथ कुछ
ठेलें खोमचेवालें भी खडे रहते थे. एक बार की बात है कि दो ठेलेवालों में खडे होने के
स्थान को लेकर झगडा होगया. इनमें से पहलेवाले का कहना था कि मैं इस स्थान पर काफी
समय से खडा होता आया हूं चाहो तो चौकी के पुलीसवालें से पूछलो जो हर हफते सब
ठेलेवालों के पास आता हेैं. जबकि दूसरें ठेलेवाले का कहना था कि यह मेरे खडे होने की
जगह हैं. मेरे यहां नगर परिषद का कारिन्दा आकर रसीद भी काटता है और उपर से
अपनी चौथ भी लेजाता हैं, मैं उससे पुछवा सकता हूं. इतना सुनकर पहलेवाले ने सबको
चैलेंज किया और कहा कि आप चाहो तो सीबीआई से इसकी जांच करवालो, यह जगह
मेरी ही हैंमोहल्लें
के नुक्कड के एक घर पर ‘वर्मा एन्ड वर्मा ऐडवोकेटस’ का बोर्ड लगा रहता
था. पास में ही सफाई कर्मचारी कूडा डालते थे. वहां दो सूअर सोते रहते थे. वकील
साहब कई बार उन्हें भगाते रहते थे लेकिन वह ऐसे ढीठ थे कि फिर वही आकर
लेट जाते थे. थकहार कर एक रोज वकील साहब नगर परिषद गए और अपनी
समस्या बताई और पूछाकि वे बार बार मेरें घर के बाहर आकर ही क्यों बैठते हैउन्होंने
यहां तक दावा किया कि उन्हें इसमें विदेषी षडयंत्र की बू आती है, यह भी
हो सकता है कि इसमें आईएसआई का हाथ हो.
षहर की खूबियों में कमी रह जायेगी अगर मैं यहां के बंदरों, खासकर लालमुंह के
बंदरों के बारें में आपको नही बताउॅ. नगर के घने इलाकें में उनका बहुत उत्पात था, था
क्या अब भी हैं. आए दिन तोडफोड करना, सूखते हुए कपडें लेजाना यहां तककि फ्रिज
खोलकर सामान लेजाना तक षामिल हैं. षायद वह सोचते होंगे कि जब हमारें वंषज फ्रिज
इत्यादि का फायदा उठा रहे है तो हम ही इस सुविधा से वंचित क्यों रहे ? एक बार उनके
उत्पात से तंग आकर पडौसके अग्रवाल साहब नगरपरिषद गए और स्वास्थ्य अधिकारी से
गुस्सें में बोले कि मैं रोज 2 ही इतने बंदरों का उधम सहन नही कर सकता. इस पर
स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि अच्छा, आप यह बतायें कि आप कितने बंदरों का उधम सह
सकते है, हम उतने बंदर छोडकर बाकी का इंतजाम करते हैं.
ऐसी थी हमारे मोहल्लें की महिमा ! चंद घटनाएं आपको बताई हैं ताकि सनद रहे
और वक्त बेवक्त काम आएं
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
था जिसके चारों तरफ देहलीगेट, आगरागेट, मदारगेट इत्यादि हैं. वैसे होने को यहां कई
पोल भी है जैसे सर्राफापोल, खटोलापोल, सुदामापोल इत्यादि लेकिन इतना होने के बावजूद
पोल के मामले में यह जयपुर से उन्नीस हीे है जहां चांदपोल, सूरजपोल तो है ही एक साथ
तीन-तीन पोल यानि त्रिपोलियां भी है ओैर इसीलिए विषेषज्ञों का तो यहां तक कहना था कि
इसी ‘पोलेल’ की अधिकता की वजह से ही जयपुर इस षहर से राजधानी बनने की दौड में
बाजी मार गया. खैर,
बसावट के मामलें में कालांतर में जाने किस मानसिकता के वषीभूत होकर यहां के
लोगों ने अपने आपको अलग अलग सम्प्रदायों एवं जातिगत रिहायषी क्षेत्रों में बंाट लिया
और अपने मोहल्लों के नाम रख लिए माली मोहल्ला, सरावगी मोहल्ला, मोची मोहल्ला, गोधा
गुवाडी इत्यादि. यहां तककि एक जगह तो गधा गुवाडी तक है हालांकि वहां गधों के साथ
साथ आदमी भी रहते है आप चाहे तो जाकर देख सकते हेैं. कहते है कि एक बार वहां
किसी ने यह बोर्ड भी टांग दिया था ‘यहां गधें रहते है’ जिसे कुछ लोगांे द्वारा एतराज करने
पर तत्कालीन नगर परिषद ने उसे हटवाया. ऐसी ही दिल्ली में एक स्थान पर सरे आम
लिखा है ‘यहां हाथी रहते है’ कौन नही जानता कि दिल्ली-जयपुर में हाथी रहते है चाहे
सफेद हो या किसी और रंग के क्या फर्क पडता है ? हाथी तो हैंइसी
षहर के एक मोहल्लें में मुझे भी रहने का ‘सौभाग्य’ मिला. उस जमाने में ऐसी
जगह रहने का सबसे बडा फायदा यह था कि पास-पडौस में न केवल तांक-झांक बल्कि
उनकी बातें सुनने का भी मौका मिल जाता था. घरकी छोटी से छोटी घटना भी पास पडौस
से छिपती नही थीहमारें
इसी मोहल्लें में कई दिलचस्प व्यक्ति रहा करते थे. उनमें से एक
सोहनलालजी भी थे. वह परिवार नियोजन के खिलाफ थे. वह कोई छोटा मोटा काम करके
अपनी गृहस्थी चलाते थे. उनका बडा लडका भी पढने लिखने में कम ही ध्यान देता था.
एक बार की बात है कि हमारें मोहल्लें में सरकारी कर्मचारियों का कोई दल कोई जानकारी
जुटाने आया. उन्होंने पूछताछ के दौरान सोहनलालजी के लडके से कहा कि आपके पिताजी
कहां है उन्हें बुलाओ. इस पर लडके ने अपने पिताजी को, जो सामने हथाई पर बैठे ताष
खेल रहे थे, बुलाने के लिए आवाज लगाई ‘ऐ मेरे बाप ! यहां आ’ यह सुनकर दल के
लोगों को अच्छा नही लगा उन्होंने लडकें को समझाया कि अपने पिताजी को ऐसे नही बोलते
हेैं. उन्हें तमीज से बुलाते हैं. इस पर लडके ने पुनः आवाज लगाई ‘ऐ मेरे बाप ! तमीज से
यहां आ’ यह सुनकर सभी आगंतुक मुस्कराने लगे.
एक बार बडी मजेदार घटना हुई. चौराहें पर एक पुलीसवाला सोहनलालजी को पीट
रहा था और वह हंस रहे थे. जब वह पुलीसवाला चला गया तो लोगों उनसे पूछा कि
पुलीसवाला आपको पीट रहा था और आप हंस रहे थे तो उन्होंने जवाब दिया कि वह मुझे
मोहनलाल समझकर पीट रहा था जबकि मेरा नाम तो सोहनलाल हैंसोहनलालजी
के पास ही घनष्यामजी रहते थे जो वैसे तो रेलवे के कैरिज कारखाने
के ब्लैकस्मिथ षॉप-लौहार खाना-में काम करते थे लेकिन उन्हें किषोरावस्था से ही पहलवानी
का षौक था. अपनी युवावस्था में वह दौलतबाग के पास स्थित केलकी बगीची में दंडबैठक,
कुष्ती इत्यादि के लिए जाया करते थे. इलाके में तो उनका रौब था ही रेलवे सप्ताह के
दौरान भी वह कई ईनाम वगैरह जीतते रहते थे. एक बार की बात हेै कि वह सांयकाल
अपने घर में दाल-रोटी खा रहे थे. दाल में कंकड आ जाने की वजह से कड-कड की
आवाजें आ रही थी. जब रसोई में खाना बना रही उनकी पत्नि ने यह आवाजें सुनी तो वह
वही से ही बोली कि क्या दाल में कंकड ज्यादा हेै तो पहलवान साहब ने मिमियाते हुए
जवाब दिया कि ‘नही, नही, ज्यादा तो दाल ही हेै’. बीबी के सामने और क्या बोलते ?
षहर में षुरू से ही पानी की किल्लत थी. यह तो भला हो वाटर वर्क्सवालों का जो
गर्मियों में चार-पांच रोज के अंतराल से ओैर बाकी दिनों में दो-तीन रोज के अंतराल से
अलसुबह ही पानी की सप्लाई दे दिया करते थे. इस विषय में विभाग के अपने तर्क थेगर्मिय
ों में कम पानी देने के बारें में उनका कहना था कि चूंकि अक्सर इन दिनों लेडीज
अपने पीहर और बच्चें अपने ननिहाल जाने का प्रोग्राम बनालेते है लेकिन जैसेही उन्हें पता
लगता था कि इस षहर में पानी का तोडा है तो वह यहां आने में कतराने लगते थे. इससे
‘मेहमान से भगवान बचायें’ वाली लोकाक्ति अपने आप चरितार्थ होजाती थी, रहा सवाल
अलसुबह उठाकर पानी देने का तो इस पर विभागका तर्क था कि इससे एक पंथ दो काज
वाली कहावत सिद्ध होती हैं. आप पानी भी भर सकते है और बीबी के साथ धर के
कामकाज में भी हाथ बंटा सकते हैंमोहल्लें
में सरकारी नल लगाा हुआ था जहां आए दिन पानी भरते समय झगडें-
टन्टें होते रहते थे. एक बार की बात है कि एक नवयुवती और एक वृद्धा के बीच तू तू-मैं
मैं होगई. वृद्धा ने युवती को ललकारा कि मेरे से ज्यादा करेगी तो तेरी षादी उस फकीर से
करवा दूंगी, जो संयोग से उधर से निकल ही रहा था. यह सुनकर वह फकीर ठहर गया.
खैर, लोगों ने बीच बचाव करके झगडा तो निबटा दिया. जब अधिकांष लोग चले गए तो
उस फकीर ने आकर उस वृद्धा से पूछा कि मांई मेैं रूकू या चला जाउॅ ?
जब देष में जनगणना होने लगी तो हमारे मोहल्लें का भी नम्बर आया. सबसे पहले
वह लोग नुक्कडवालें प्रभुदयालजी के मकान पर पहुंचे. उन्होंने उनसे स्वयं के नाम-धाम के
बाद पूछा कि आपके कितने बच्चें है ? तो प्रभुदयालजी ने बताया कि मेरे तीन बच्चें हैेंदलवालों
ने पूछा कि लडके कितने है ? तो उन्होंने जवाब दिया कि तीन है तो दल वालों ने
फिर पूछा कि लडकियां कितनी है ? इसपर प्रभुदयालजी फटी फटी आंखों से उन्हें देखने लगे
और धीरे से कहा कि तीनों लडके ही हैंइसके
बाद वह लोग चौथमलजी के घर गए तो संयोग से उन्हें चौथमलजी के पिताजी
मिल गए. कर्मचारियों ने नाम वगैरह के बाद उनकी उम्र पूछी तो उन्होने 55 साल बताईजनगण्
ाना के दल में षामिल मास्’साब को थोडा षक हुआ. उन्होंने पिछली जनगणना का
रिकार्ड देखा और बुजुर्ग से कहा अंकलजी ! पिछली जनगणना में भी आपने अपनी उम्र 55
वर्ष ही बताई थी और आज भी आप अपनी उम्र 55 ही बता रहे हेै इस पर बुजुर्ग ने
जवाब दिया कि इतनी महंगाई और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे इस माहौल में पिछले 10 वर्ष
का जीना भी क्या जीना था ? सुनकर सभी कर्मचारी चुप्पी साध गए.
इतनाही नही जब दलवालें घर-बार की भी जानकारी लेने लगे मसलन मकान किस
चीज का बना है, छत किसकी बनी है ? इत्यादि, तो बुजुर्ग ने पूछा कि दीवार और छतों की
जानकारी लेकर सरकार क्या करने जा रही है ? कर्मचारियों ने तो इस प्रष्न का कोई
समुचित उत्तर नही दिया लेकिन घर के अंदर से चौथमलजी की माताजी की आवाज आई
कि मंदिर में पंडितजी अक्सर कहते रहते हेै कि भगवान जब देता है तो छप्पर फाडकर देता
है षायद इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार जानकारी इकटठा कर रही होगी कि किस
किसके घर पर आसानी से फटने लायक छप्पर है ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम
आए.
मोहल्लें में ही पास के एक और घर में जब जनगणनावालें घुसे तो गृहणी खाना बना
रही थी. एक कर्मचारी ने उससे पूछताछ षुरूकी
... आपके पति क्या काम करते है ?
...वो प्रेस का काम करते है...
बहनजी ! क्या वह किसी अखबार से जुडे हुए हैं ?
...पढते तो वह कई अखबार है लेकिन यहां नही पढते. किसी पानवालें या नाई की
दुकान पर जाकर पढते है. कभी कभी पडौस की आटेकी चक्कीवालें से भी मांगकर ले आते
है. किस से जुडे है यह मुझे पता नही.
तब जनगणना करनेवाले कर्मचारी ने कहा कि षायद आप मेरा मतलब नही समझी, आपके
पति प्रेस का क्या काम करते है जरा खुलासा बताइयेइस
बात पर गृहणी कहने लगी, अभी पिछली 26 जनवरी को बच्चों के जिद्ध करने
पर जब हम स्टेडियम में परेड देखने गए तो जल्दी ही चले गए. वहां झन्डारोहण के स्थान
के पास ही अलग से बने एक स्थान पर कुर्सियां लगी हुई थी और एक पुटठे पर लिखा
हुआ था ‘प्र्रेसेस’ अतः हम दोनांे अपने बच्चों सहित उन कुर्सियों पर बैठ गए ओैर बैठते
वक्त मेरे पति ने मुझसे यह भी कहा था कि देखो असली आजादी तो अब आई है. अपने
प्रेस का धंधा करनेवालों के लिए सरकार ने आगे ही आगे अलगसे बैठने के लिए कुर्सियां
तक बिछाई हैजनगण्
ानावाला तब भी कुछ नही समझा, सिर खुजाता हुआ बोलाः-
...कही आपके पति किसी प्रिन्टिग प्रेस में तो नही है ?
नही नही, गृहणी बोली, वह तो पांचवी फेल हैतो
क्या हुआ ? कर्मचारी बोला, हो सकता है वहां कम्पोजिंग का काम करते हो ?
वह बोली:-
वे तो एक दुकान पर काम करते हैदुकान
पर ? यह सुनकर कर्मचारी का माथा ठनका. बोला, दुकान पर कौनसी प्रेस का काम
करते है ? उसने अपने अल्प ज्ञान का परिचय दियावह
बोली:-
...कपडों पर प्रैस करते हैतब
कर्मचारी को समझ आई ओैर वह बोला:-
...अच्छा, अच्छा, कपडों पर प्रैस करते है. ठीक, बिलकुल ठीक, लेकिन यह बताइये कि
कौनसी प्रैस करते हैे, कोयले की प्रैस, स्टीम प्रैस या इलैक्ट्कि प्रैस ? ताकि हम अपने
कॉलम में यह बात भर सकें. कर्मचारी ने बात को संवारने की कोषिष की.
तब गृहणी बोली:-
...कोयलें की प्रैस काम में लेते है ओैर रात-विरात कभी भी घर आते है तो उन्हें कोई
पुलीसवाला अथवा अन्य व्यक्ति टोकता नही है क्योंकि पडौस के षर्माजी की ही तरह, जो
कि प्रिटिंग प्रेस में काम करते है, इन्होंने भी अपनी साईकिल पर एक तख्ती टांग रखी है,
उस पर लिखा रहता है ‘प्र्रेसेस’
मुस्कराते हुए जनगणनावालें, इतना नोट करके, अगले घर की तरफ चल पडेइनके
पडौस में ही रामस्वरूपजीवर्मा टेलर मास्टर का मकान था. मदारगेट पर ऐवन
टेलर के नामसे उनकी दुकान थी. वह षर्ट एक्सपर्ट कहलाते थे. मास्टर साहब को अपने
धन्धें पर बडा फक्र था और हो भी क्योंन, उनका कहना थाकि इसी धन्धें की खातिर वह
चौथी क्लास फेल होते हुए भी मास्टर कहलाते है और उनकी अनपढ पत्नि मास्टरनी. उनके
पडौसी सुखरामजी का लडका जब पांचवी क्लास में तीसरीबार फेल होगया तो उसके पिताजी
ने उसे मास्टरजी की दुकान पर बैठा दिया कि औेर कुछ नही तो यह काम ही सीख जायेगा
तो दाल-रोटी तो खा लेगा. षुरू-षुरू में वह काज-बटन करने लगा. कई रोज बाद जब
सुखरामजी ने मास्’साब से अपने लडके के बारे में पूछा तो मास्’साब ने बताया आप फिक्र
ना करे अभी वह जेब काटना सीख गया है अगले महीने मैं उसे गला काटना सिखा दूंगाय
ह सुनकर सुखरामजी एक बार तो चकरा गए, वह सोचने लगे कि क्या उनका लडका अब
यही काम करेगा ?
इसी मोहल्लें में कुछ आगे की तरफ भैंरूजी का प्रसिद्ध मंदिर था. उसके पुजारीजी
बडे सिद्धहस्त थे. उनके पडौस में रामनाथजी के जब पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने
पुजारीजी से बच्चें के ग्रह-नक्षत्र के बारें में बातकी. पुजारीजी ने बताया कि बच्चा ‘मूलों’
अर्थात मूलनक्षत्र में हुआ है अतः विषेष हवन-जप इत्यादि करवाना पडेगा औेर बच्चें की
षक्ल सूरत एवं जंम कुंडली देखते हुए उन्होंने यह गूढ रहस्य उजागर किया कि यह पूर्व
जंम में संकटमोचककी सेना में रहा होगा, अतः इसका नाम कपि रखना उचित होगा. माता
पिता मान गए और सब उसे इसी नामसे पुकारने लगेइसी
मोहल्लें में कालीचरणजी भी रहते थे. लोगों का अनुमान था कि जब स्वर्ग में
विधाता रंगरूप बांट रहा था तब वह षायद लाईन में पीछे की तरफ होंगे. एक तो काला
रंगरूप और उपर से खुदका बनाया हुआ थुलथुल षरीर, वह एक विषेष आकृति के धनी
थे. हमारी इस कॉलोनी में एक डाकौत हर षनिवार को तेल मांगने आया करता था. एक
षनिवार की बात है डाकौत उनके घर के बाहर तेलदान हेतु ‘षनिमहाराज, षनिमहाराज’ की
आवाजें लगा रहा था. काफी देर तक जब उसकी कोई सुनवाई नही हुई तो उसने जोर2 से
आवाजें देना षुरू कर दिया. इतने में कालीचरणजी घर के बाहर आए और डाकौत को
झिडकते हुए कहा ‘क्यों आधे घन्टें से दिमाग खा रहा है, कहतो दिया कि आरहा हंू, आरहा
हूं’. इस स्वीकृति के बाद डाकौत आगे क्या बोलता ?
इस घटना के काफी समय बाद की बात हैं. पुष्कर में मेरे एक मित्र जयचन्द्रजी है
पेषे से वकील हैं. एक बार वह मेरे यहां आए हुए थे. हम ड्ाइंगरूम में बैठे हुए थे. षायद
सावन-भादों का महीना थातभी
बाहर एक ठेलेवाला जामुन बेचता हुआ निकला. वह ‘कालें कालें पुष्करवालें’ की
आवाजें लगाा रहा था. संयोग की बात है कि वकील साहब का रंग एकदम साफ है, उन्हें
यह बात नागवार गुजरी और वह बाहर निकले और उस ठेलेवालें से बहस करने लगे कि
तुम पुष्करवालों को काला कैसे कह रहे हो ? वकीलसाहब की बात ठीक भी है. इसी
काले-गोरे को लेकर एक कवि की उडान देखिये वह दुनियां के मालिक को क्या उलाहना
देरहा है:-
‘भगवान म्है भी कोनी,
अकल को भोंरोंकिन्नै
ही बणा दियो कालो,
अर किन्नै ही गोरों.’
सन सत्तर के दषक में टीवी का आगमन हुआ. पहले ब्लैक एन्ड वाइट और फिर
रंगीन. उन्ही दिनों की बात है. एक रोज मैं पडौसी के साथ उनके ड्ाइंगरूम में बैठा टीवी
देख रहा था. कोई कार्यक्रम चल रहा था. कुछ देर बाद समाचार आने लगे. इतने में किसी
कामसे उन सज्जन के बेटे की बहू फिर वहां आई और इस बार उसने झट से घूंघट
निकाल लिया. पहले तो मैं यह समझा कि मुझे ‘रैस्पैक्ट’ देने हेतु उसने ऐसा किया है
लेकिन फिर बाद में मैंने सोचा कि ऐसा ही था तो इसके पहले भी वह जब यहां आई थी
उसे ऐसा करना चाहिए था. मुझे असंमजस में देख पडौसी ने मेरी षंका का समाधान किया
और बताया कि समाचारवाचक बहू के मामाष्वसुर लगते हेै, उन्हीं से घूंघट किया हैं.
ऐसे मोहल्लों में पडौसियों में आपस में आए दिन ही खूब कलह झगडें इत्यादि होते
रहते है जिनमें महिलाएं भी बढचढकर हिस्सा लेती हैं. यह उन दिनों की बात है जब
फुटबाल के विष्वकप के मैच चल रहे थे. एक दिन सुबह सुबह ही मेरी पत्नि घर से बाहर
जाने लगी तो मैंने उससे पूछा कि कहां जारही हो ? तो उसने जवाब दिया कि मंदिर के
पासवाली पडौसन को उसकी औकात बताने जा रही हूं. इसपर मैंने उसे कहा कि कल
तुम्हारे बीच झगडा हो रहा था वह बडी मुष्किल से छुडाया था और आज फिर तुम झगडने
चलदी, इस पर वह बोली कि ‘कल सेमीफाइनल था और आज फाइनल हैं.’ मैंने सोचा
आखिर मैच से हम कुछ तो सीखते ही हैंहमारे
मोहल्लें के पासही एक छोटा-मोटा मार्केट था. वहां दुकानों के साथ साथ कुछ
ठेलें खोमचेवालें भी खडे रहते थे. एक बार की बात है कि दो ठेलेवालों में खडे होने के
स्थान को लेकर झगडा होगया. इनमें से पहलेवाले का कहना था कि मैं इस स्थान पर काफी
समय से खडा होता आया हूं चाहो तो चौकी के पुलीसवालें से पूछलो जो हर हफते सब
ठेलेवालों के पास आता हेैं. जबकि दूसरें ठेलेवाले का कहना था कि यह मेरे खडे होने की
जगह हैं. मेरे यहां नगर परिषद का कारिन्दा आकर रसीद भी काटता है और उपर से
अपनी चौथ भी लेजाता हैं, मैं उससे पुछवा सकता हूं. इतना सुनकर पहलेवाले ने सबको
चैलेंज किया और कहा कि आप चाहो तो सीबीआई से इसकी जांच करवालो, यह जगह
मेरी ही हैंमोहल्लें
के नुक्कड के एक घर पर ‘वर्मा एन्ड वर्मा ऐडवोकेटस’ का बोर्ड लगा रहता
था. पास में ही सफाई कर्मचारी कूडा डालते थे. वहां दो सूअर सोते रहते थे. वकील
साहब कई बार उन्हें भगाते रहते थे लेकिन वह ऐसे ढीठ थे कि फिर वही आकर
लेट जाते थे. थकहार कर एक रोज वकील साहब नगर परिषद गए और अपनी
समस्या बताई और पूछाकि वे बार बार मेरें घर के बाहर आकर ही क्यों बैठते हैउन्होंने
यहां तक दावा किया कि उन्हें इसमें विदेषी षडयंत्र की बू आती है, यह भी
हो सकता है कि इसमें आईएसआई का हाथ हो.
षहर की खूबियों में कमी रह जायेगी अगर मैं यहां के बंदरों, खासकर लालमुंह के
बंदरों के बारें में आपको नही बताउॅ. नगर के घने इलाकें में उनका बहुत उत्पात था, था
क्या अब भी हैं. आए दिन तोडफोड करना, सूखते हुए कपडें लेजाना यहां तककि फ्रिज
खोलकर सामान लेजाना तक षामिल हैं. षायद वह सोचते होंगे कि जब हमारें वंषज फ्रिज
इत्यादि का फायदा उठा रहे है तो हम ही इस सुविधा से वंचित क्यों रहे ? एक बार उनके
उत्पात से तंग आकर पडौसके अग्रवाल साहब नगरपरिषद गए और स्वास्थ्य अधिकारी से
गुस्सें में बोले कि मैं रोज 2 ही इतने बंदरों का उधम सहन नही कर सकता. इस पर
स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि अच्छा, आप यह बतायें कि आप कितने बंदरों का उधम सह
सकते है, हम उतने बंदर छोडकर बाकी का इंतजाम करते हैं.
ऐसी थी हमारे मोहल्लें की महिमा ! चंद घटनाएं आपको बताई हैं ताकि सनद रहे
और वक्त बेवक्त काम आएं
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011
पेट दर्द और खिचडी
कहानी बहुत पुरानी है लेकिन संयोगवष कुछ समकालीन घटनाओं से जुड
जाने के कारण आज भी प्रासंगिक बन गई हैं, किस्सा यों है कि
एक ग्रामीण था, उसके पेट में दर्द हो गया. वह काफी दूर चलकर एक
वैद्यजी के पास गया. वैद्यजी ने उसकी नब्ज इत्यादि देखकर उससे कहा कि घर
जाकर सुबह-षाम पानी के साथ दवाई की एक एक पुडियां ले लेना और खिचडी
खाना सब ठीक हो जायेगा. उसने खिचडी का नाम पहली बार सुना था, कही
भूल न जाउ इसलिए वह ‘खिचडी-खिचडी’ रटता हुआ वापस अपने घर की
तरफ चल दिया. रटने के चक्कर में वह खिचडी की जगह ‘खा चिडी, खा
चिडी’ बोलने लगा. थोडी देर बाद रास्ता भूलकर वह कॉमनवैल्थ के खेलगांव की
तरफ निकल गया. वहां उसे कुछ सत्ताधारी मिल गए. जब उन्होंने सुना तो उन्हें
लगा कि एक अदना सा आदमी हमारे पर व्यंग्य कस रहा है तो उन्होंने उसे
पकड लिया और ‘ठिकाने’ पर लेजाकर अपने आदमियों से उसे इतना पिटवाया
कि पुलीसवाले भी चौकी पर किसी को क्या मारते होंगे ? उनमें से कुछतो
मारने-कूटने, मकान खाली करवाने अथवा लोन की गााडी छीनने में बहुत
एक्सपर्ट थे और इस विषय में राजधानी स्थित यमराजकी एक फ्रेंचाइजी से तीन
माह की ट्ेनिंग लिए हुए थेवह
लोग उसे यातनाएं भी दे रहे थे साथ ही पूछते जा रहे थे कि बता,
तेरी हिम्मत कैसे हुई जो तू कॉमनवैल्थ गेम्स की मजाक उडायें ? क्या तुझे पता
नही कि कॉमनवैल्थ तो हमारी 150 सालकी गुलामीकी ऐतिहासिक विरासत है,
हमारी षान है. रही बात खाने की तो यहां खाने को हम ही क्या कम है जो तू
चिडियों को और खाने का न्यौता दे रहा है, आज हम तेरे को नही छोडेंगेइतने
में ही उस इन्चार्ज के पास उनके बॉस का एसएमएस आ गया, उसने
मॉबाइल पर ही घटना की जानकारी अपने बॉस को दी और कहा कि सर ! वैसे
तो यह चिडियों को खाने के लिए कह रहा है, सीधे-सीधे हमें नही कह रहा है,
इस पर उनके बॉस ने डांट लगाई और कहा कि तुम नही जानते, जबसे फिल्म
‘हम आपके है कौनैन’ में कुडियों को दाना डालने का गाना ‘हाय राम ! कुडियों
को डाले दाना’ चला है कुडियों और चिडियों में क्या फर्क रह गया हैं ? अतः
अच्छी तरह पूछताछ करो. परन्तु जब कुछ हासिल नही हुआ तो अंत में बहुत
हाथा-जोडी करने पर वह उसे छोडने को राजी हुए और कहा कि यहां से ‘उड
चिडी’ ‘उड चिडी’ बोलते हुए दूर निकल जाओ, वर्ना तुम्हारी खैर नही हैंवह
व्यक्ति ‘उड चिडी’ ‘उड चिडी’ करता हुआ आगे बढा ही था कि एक
कबूतरबाजी यानि फर्जी तरीकों से विदेष भेजनेवाली कम्पनी के नुमान्दों ने उसे
पकड लिया. उन्हें ‘उड चिडी’ षब्द कोड भाषा का षब्द लगा. वह उसे अपने
अडडे पर लेगए और उससे पूछा कि तुझे कैसे मालुम हुआ कि हम लोग
‘कबूतरबाजी’ में लगे हुए है और हमारे द्वारा कुछ ‘कबूतर’ विदेष के लिए उडने
ही वाले हैं. सघन पूछताछ के बावजूद जब कोई नतीजा नही निकला तो गैंग के
मुखिया ने मॉबाइल पर किसी से बात की और कुछ निर्देष लेने के बाद उस
आदमी से कहा कि तुम अगर ‘आ जाल में ं फंसंस’ 2 बोलते जाओ तो हम तुम्हें
छोड सकते है. मरता क्या न करता, वह बेचारा ‘आ जाल में फंस’ ‘आ जाल
में ं फंसंस’ बोलता बोलता वहां से निकल लियापरन्तु
रास्ता भूल जाने के कारण ऐसी जगह पहुंच गया जहां
माओवादियों के तथाकथित हमदर्द छिपे बैठे थे. यह लोग थोथी सैद्धान्तिक
बहसबाजी में लगे हुए थे. उन्होंने जब इस आदमी की रट ‘आ जाल में फंसंस’
‘आ जाल में फंसंस’ सुनी तो एक-दो तो उसे गोली मारने का ‘क्रंातिकारी’ कदम
उठाने की सोचने लगे लेकिन उनके सलाहकारों ने उन्हें रोका और उस आदमी
से पूछताछ षुरू करदी. लेकिन फिर भी जब कोई नतीजा नही निकला तो
उन्होंने उसे छोड दिया लेकिन आगे के लिए ‘ऐसेसा ही हो’ बोलने की हिदायत
दी. साथही यह भी कहा कि ‘ऐसेसा ही हो’े’ बोलते हुए अपने घर नही जाओगे तो
तुम्हें भी अगवा कर लिया जायगावह
आदमी यहां से भी छूटा लेकिन आज उसके भाग्य में कुछ और ही
लिखा था. जैसेही वह कुछ दूर गया उसे मधु कोडा के आदमियों ने पकड लियाउन्होंने
यह समझा कि यह षख्स जेल में बंद उनके मालिक के उपर व्यंग्य कर
रहा है और बार बार कह रहा है ‘ऐसेसा ही’ ऐसेसा ही हो’ यह हम कैसे सहन
कर सकते है ? उन्होंने भी उसे डराया-धमकाया और कहा कि जब यहां से
जाओ तो बोलो ‘ऐसा कभी नही हो’ वर्ना ऐसे गायब कर दिए जाओगे जैसे
रिष्वत मिलने पर सबूत गायब होते हैंवह
व्यक्ति ‘ऐसेसा कभी ना हो’ ‘ऐसेसा कभी ना हो’ कहता हुआ सत्ता के
गलियारे के एक बहुत बडे बंगले के बाहर से गुजर रहा था जिसके लॉन में कई
लोग इस चर्चा में मषगूल थे कि किस तरह ‘युवराज’ को गद्धीनषीन किया जाय
ताकि हमारा जंम सफल हो जाय. जब उन्होंने यह सुना कि कोई आदमी ‘ऐसेसा
ना हो’ ‘ऐसा ना हो’ कहता हुआ जा रहा है तो वह काफी नाराज हुए क्योंकि
यह जष्न का समय था और पीने-पिलाने के साथ साथ कुछ लोग तली भुनी
चीजें भी खा रहे थे, उन्होंने उसे धमकाया कि ‘ऐसेसा कभी ना हो’े’ की जगह
‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ बोलते हुए जाओवह
अभागा वहां से भी नया नारा ‘भूनूनकर खा’ लेकर चल दिया लेकिन
एक बार फिर रास्ता भटक गया और निठारी नोएडा का एक गांव की तरफ
निकल गया. वह ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ की अपनी रट लगाता हुआ जा रहा
था. इस व्यक्ति की आवाज सुनते ही निठारी में भगदड मच गई और किसी ने
पुलीस को खबर कर दी. पुलीस उसे पकडकर ले गई और पूछताछ करने लगी
कि तुम किसको कह रहे हो कि भूनकर खा, अब तो सब अंदर हैं. परन्तु जब
वह कोई संतोष जनक जबाब नही दे सका तो उसे मारने लगे. इतने में ही
पुलीस ऑफीसर के पास कही से मॉबाइल पर मैसेज आया कि आपकी तबीयत
कैसे है ? तब ऑफीसर ने बताया कि मेरा पेट खराब है, डाक्टर ने कुछ
दवाइयां लिखी हैे और खाने में खिचडी बताई हैंख्
िाचडी का नाम सुनते ही वह पकडा हुआ गरीब उछला और चिल्लाया
‘खिचडी ! हां खिचडी, वैद्यजी ने मुझे भी खिचडी ही खाने को कहा था लेकिन
मैं भूल गया था और गलती से ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ कहता हुआ यहां तक
आ पहुंचापूरी
दास्तान सुनने के बाद उन लोगों ने उसे छोड दिया और वह गरीब
किसी तरह वापस अपने गांव पहुंचाई.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
जाने के कारण आज भी प्रासंगिक बन गई हैं, किस्सा यों है कि
एक ग्रामीण था, उसके पेट में दर्द हो गया. वह काफी दूर चलकर एक
वैद्यजी के पास गया. वैद्यजी ने उसकी नब्ज इत्यादि देखकर उससे कहा कि घर
जाकर सुबह-षाम पानी के साथ दवाई की एक एक पुडियां ले लेना और खिचडी
खाना सब ठीक हो जायेगा. उसने खिचडी का नाम पहली बार सुना था, कही
भूल न जाउ इसलिए वह ‘खिचडी-खिचडी’ रटता हुआ वापस अपने घर की
तरफ चल दिया. रटने के चक्कर में वह खिचडी की जगह ‘खा चिडी, खा
चिडी’ बोलने लगा. थोडी देर बाद रास्ता भूलकर वह कॉमनवैल्थ के खेलगांव की
तरफ निकल गया. वहां उसे कुछ सत्ताधारी मिल गए. जब उन्होंने सुना तो उन्हें
लगा कि एक अदना सा आदमी हमारे पर व्यंग्य कस रहा है तो उन्होंने उसे
पकड लिया और ‘ठिकाने’ पर लेजाकर अपने आदमियों से उसे इतना पिटवाया
कि पुलीसवाले भी चौकी पर किसी को क्या मारते होंगे ? उनमें से कुछतो
मारने-कूटने, मकान खाली करवाने अथवा लोन की गााडी छीनने में बहुत
एक्सपर्ट थे और इस विषय में राजधानी स्थित यमराजकी एक फ्रेंचाइजी से तीन
माह की ट्ेनिंग लिए हुए थेवह
लोग उसे यातनाएं भी दे रहे थे साथ ही पूछते जा रहे थे कि बता,
तेरी हिम्मत कैसे हुई जो तू कॉमनवैल्थ गेम्स की मजाक उडायें ? क्या तुझे पता
नही कि कॉमनवैल्थ तो हमारी 150 सालकी गुलामीकी ऐतिहासिक विरासत है,
हमारी षान है. रही बात खाने की तो यहां खाने को हम ही क्या कम है जो तू
चिडियों को और खाने का न्यौता दे रहा है, आज हम तेरे को नही छोडेंगेइतने
में ही उस इन्चार्ज के पास उनके बॉस का एसएमएस आ गया, उसने
मॉबाइल पर ही घटना की जानकारी अपने बॉस को दी और कहा कि सर ! वैसे
तो यह चिडियों को खाने के लिए कह रहा है, सीधे-सीधे हमें नही कह रहा है,
इस पर उनके बॉस ने डांट लगाई और कहा कि तुम नही जानते, जबसे फिल्म
‘हम आपके है कौनैन’ में कुडियों को दाना डालने का गाना ‘हाय राम ! कुडियों
को डाले दाना’ चला है कुडियों और चिडियों में क्या फर्क रह गया हैं ? अतः
अच्छी तरह पूछताछ करो. परन्तु जब कुछ हासिल नही हुआ तो अंत में बहुत
हाथा-जोडी करने पर वह उसे छोडने को राजी हुए और कहा कि यहां से ‘उड
चिडी’ ‘उड चिडी’ बोलते हुए दूर निकल जाओ, वर्ना तुम्हारी खैर नही हैंवह
व्यक्ति ‘उड चिडी’ ‘उड चिडी’ करता हुआ आगे बढा ही था कि एक
कबूतरबाजी यानि फर्जी तरीकों से विदेष भेजनेवाली कम्पनी के नुमान्दों ने उसे
पकड लिया. उन्हें ‘उड चिडी’ षब्द कोड भाषा का षब्द लगा. वह उसे अपने
अडडे पर लेगए और उससे पूछा कि तुझे कैसे मालुम हुआ कि हम लोग
‘कबूतरबाजी’ में लगे हुए है और हमारे द्वारा कुछ ‘कबूतर’ विदेष के लिए उडने
ही वाले हैं. सघन पूछताछ के बावजूद जब कोई नतीजा नही निकला तो गैंग के
मुखिया ने मॉबाइल पर किसी से बात की और कुछ निर्देष लेने के बाद उस
आदमी से कहा कि तुम अगर ‘आ जाल में ं फंसंस’ 2 बोलते जाओ तो हम तुम्हें
छोड सकते है. मरता क्या न करता, वह बेचारा ‘आ जाल में फंस’ ‘आ जाल
में ं फंसंस’ बोलता बोलता वहां से निकल लियापरन्तु
रास्ता भूल जाने के कारण ऐसी जगह पहुंच गया जहां
माओवादियों के तथाकथित हमदर्द छिपे बैठे थे. यह लोग थोथी सैद्धान्तिक
बहसबाजी में लगे हुए थे. उन्होंने जब इस आदमी की रट ‘आ जाल में फंसंस’
‘आ जाल में फंसंस’ सुनी तो एक-दो तो उसे गोली मारने का ‘क्रंातिकारी’ कदम
उठाने की सोचने लगे लेकिन उनके सलाहकारों ने उन्हें रोका और उस आदमी
से पूछताछ षुरू करदी. लेकिन फिर भी जब कोई नतीजा नही निकला तो
उन्होंने उसे छोड दिया लेकिन आगे के लिए ‘ऐसेसा ही हो’ बोलने की हिदायत
दी. साथही यह भी कहा कि ‘ऐसेसा ही हो’े’ बोलते हुए अपने घर नही जाओगे तो
तुम्हें भी अगवा कर लिया जायगावह
आदमी यहां से भी छूटा लेकिन आज उसके भाग्य में कुछ और ही
लिखा था. जैसेही वह कुछ दूर गया उसे मधु कोडा के आदमियों ने पकड लियाउन्होंने
यह समझा कि यह षख्स जेल में बंद उनके मालिक के उपर व्यंग्य कर
रहा है और बार बार कह रहा है ‘ऐसेसा ही’ ऐसेसा ही हो’ यह हम कैसे सहन
कर सकते है ? उन्होंने भी उसे डराया-धमकाया और कहा कि जब यहां से
जाओ तो बोलो ‘ऐसा कभी नही हो’ वर्ना ऐसे गायब कर दिए जाओगे जैसे
रिष्वत मिलने पर सबूत गायब होते हैंवह
व्यक्ति ‘ऐसेसा कभी ना हो’ ‘ऐसेसा कभी ना हो’ कहता हुआ सत्ता के
गलियारे के एक बहुत बडे बंगले के बाहर से गुजर रहा था जिसके लॉन में कई
लोग इस चर्चा में मषगूल थे कि किस तरह ‘युवराज’ को गद्धीनषीन किया जाय
ताकि हमारा जंम सफल हो जाय. जब उन्होंने यह सुना कि कोई आदमी ‘ऐसेसा
ना हो’ ‘ऐसा ना हो’ कहता हुआ जा रहा है तो वह काफी नाराज हुए क्योंकि
यह जष्न का समय था और पीने-पिलाने के साथ साथ कुछ लोग तली भुनी
चीजें भी खा रहे थे, उन्होंने उसे धमकाया कि ‘ऐसेसा कभी ना हो’े’ की जगह
‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ बोलते हुए जाओवह
अभागा वहां से भी नया नारा ‘भूनूनकर खा’ लेकर चल दिया लेकिन
एक बार फिर रास्ता भटक गया और निठारी नोएडा का एक गांव की तरफ
निकल गया. वह ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ की अपनी रट लगाता हुआ जा रहा
था. इस व्यक्ति की आवाज सुनते ही निठारी में भगदड मच गई और किसी ने
पुलीस को खबर कर दी. पुलीस उसे पकडकर ले गई और पूछताछ करने लगी
कि तुम किसको कह रहे हो कि भूनकर खा, अब तो सब अंदर हैं. परन्तु जब
वह कोई संतोष जनक जबाब नही दे सका तो उसे मारने लगे. इतने में ही
पुलीस ऑफीसर के पास कही से मॉबाइल पर मैसेज आया कि आपकी तबीयत
कैसे है ? तब ऑफीसर ने बताया कि मेरा पेट खराब है, डाक्टर ने कुछ
दवाइयां लिखी हैे और खाने में खिचडी बताई हैंख्
िाचडी का नाम सुनते ही वह पकडा हुआ गरीब उछला और चिल्लाया
‘खिचडी ! हां खिचडी, वैद्यजी ने मुझे भी खिचडी ही खाने को कहा था लेकिन
मैं भूल गया था और गलती से ‘भूनूनकर खा’ ‘भूनूनकर खा’ कहता हुआ यहां तक
आ पहुंचापूरी
दास्तान सुनने के बाद उन लोगों ने उसे छोड दिया और वह गरीब
किसी तरह वापस अपने गांव पहुंचाई.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
सोमवार, 3 अक्टूबर 2011
मच्छर सभा
यों तो मच्छरों की मीटिंग के लिए षहर में, एक से बढ कर एक स्थान थे
लेकिन आज की मीटिंग के लिए जो स्थान चुना गया था उसकी तारीफ सभी
मच्छर कर रहे थे. आज की यह अति महत्वपूर्ण मीटिंग नगर परिषद के उस
नाले में रखी गई थी जहां दिन-रात घोर अंधेरा छाया रहता था तथा जहां आज
तक डीडीटी छिडकनेवाला तो क्या कोई सफाई करने वाला भी नही पहुंचा थाबडी
गहमा-गहमी थी और दूर दूर से मच्छर इस पंचायत में हिस्सा लेने आए
हुए थे.
मंच पर चौधरी मच्छरसिंह विराजमान थे और उनके कई चेलें व्यवस्था में
इधर उधर घूम रहे थे. कई कई कमांडों उनकी सुरक्षा के लिए तैनात थे. सब से
पहले चौधरी मच्छरसिंह को मैसूर के जंगलों के फूलों की बनी माला पहनाई गईमीटिंग
के षुरू में सभा के संयोजक मच्छरप्रषाद ने कहा कि आज की बैठक
काफी महत्वपूर्ण है. यह मच्छरों की ही हिम्मत है कि वह आगे बढ कर आदमी
से टक्क्र लेता है. आज देष में यही विषय महत्वपूर्ण रह गए है, मच्छर, आतंक
और घोटालें. आप किसी भी सभा-सोसाइटी में चले जाइए अथवा कही भी
दो-चार व्यक्ति बैठे होंगे तो सबसे पहले इन्ही विषयों पर चर्चा होगी. इससे यह
सिद्ध होता है कि आज हमारी जाति की अहमियत बहुत बढ गई है. अब
सरकार को हमें विषेष दर्जा देना पडेगा और इसीलिए आज हमने यह मीटिंग
बुलाई है. अब मैं मच्छरनाथ से प्रार्थना करूंगा कि इस विषय में अपने विचार
पंचायत के सम्मुख रखेंइसके
बाद मच्छरनाथ माइक के पास आ खडे हुए और बोले, ‘ भाइयों !
हमारी जाति की विषेषता है कि जहां देष में आज अधिकांष कर्मचारी काम से
जी चुराते है, हम लोग दिन-रात काम करते है. यहां तक कि मार्च-अप्रैल तथा
अक्टूबर-नवम्बर में तो हम डबल डयूटी करते है, ओवर टाइम काम करते है,
परन्तु क्या मजाल जो कभी उफ भी की हो. हमने कभी किसी वेतन आयोग को
लागू करने की अथवा डीए बढाने की मांग नही की. यह संदेष हम आज की
मीटिंग के जरिए देष और दुनियां को देना चाहते है’ इतना कह कर मच्छरनाथ
ने अपना स्थान ग्रहण कियाअब
बारी आई मच्छरकिषोर की, उन्होनें अपनी सधी हुई आवाज में
अपने काम काज की जानकारी देते हुए बताया कि हम बोरिंग, छेद, करने से
पहले सर्वे करते है फिर वहां जाकर ड्लििंग यानि बोरिंग करते हेैं. अभी कल की
ही बात है मैंने एक आदमी की खोपडी में बोर किया. वह अक्सर खेलों में
हूटिंग किया करता है. उस समय भी वह एक मैच में हूटिंग कर के ही लौटा
था. उसकी खोपडी में छेद करते ही मुझे वहां गोबर ही गोबर नजर आया. मैंने
झट से अपनी मैडम को आवाज लगाई ‘अरी भागवान ! देख फिर मत कहना
कि गोबर नही देखा क्योंकि उससे पहले मेरी मैडम ने गोबर नही देखा था सिर्फ
सुना ही सुना था’. मच्छरकिषोर ने यह कह कर अपनी बात समाप्त की कि
‘आदमियों का यह हाल है ओैर मच्छरों को हीन समझते हैं’.
इसके बाद मच्छरराम ने मीटिंग में बताया कि ‘मेरी बोरिंग तो बिलकुल
फालतू गई. मैं एक व्यक्ति की खोपडी में ड्लि करता गया, करता गया, यहां
तककी खतरे के निषान तक पहुंच गया लेकिन खुदाई में सडा हुआ बुरादा
निकला. वो तो बाद में पता चला कि यह तो किसी अफसर की खोपडी थी’.
इस बात पर खूब तालियां बजीअब
बारी आई मच्छरदास की, मच्छरदास ने बताया ‘सबसे बुरी चोट तो
मेरे साथ हुई. मेरा ठिकाना एक नेताजी के ड्ाइंगरूम की कुर्सी के पाएं की दरारें
हैं. मैं कल जब वहां से निकल कर बाहर आया तो नेताजी आराम कुर्सी पर
सुस्ता रहे थे. उन्हें सुस्ताते देख मैंने उनकी खोपडी में बोरिंग कर डाली. पर
हाय ! हाय ! यह क्या हुआ ? ससुरा हैमर, बोरिंग करने वाला औजार, सांय
सांय करता हुआ अंदर तक घुसता चला गया. म्ंौं यह सब देख वहां से भाग
निकला, दोस्तों ! आपको इसलिए बता रहा हूं कि सनद रहे, वास्तव में उस
खोपडी में भेजा था ही नहीमच्छरदास
के बाद मच्छरमल की बारी थी. उसने विषय को संवारते हुए
कहा इन नेताओं को हमने बहुत सहा है. अभी तक तो खटमल ही खून चूसने
में हमारे प्रतिद्वंद्वी थे. अब नेता भी इस काम में हमारा मुकाबला करने लगे है
अतः हमें ष्वेत पत्र निकाल कर इनका विरोध करना चाहिए’.
अंत में चौधरी मच्छर सिंह ने मीटिंग में पास किए जाने वाले प्रस्ताव पेष
किए जिनमें निम्नलिखित बातें षामिल थी:-
1 नेताओं को विरोध पत्र भेजा जाय कि खून चूसना तो हमारा जंम सिद्ध
अधिकार है आप लोग इसमें दखल क्यों दे रहे है ? खटमलों पर भी रोक
लगनी चाहिए.
2 डीडीटी का असर नही होने से मलेरिया विभाग का अहसान मानते हुए उन्हें
धन्यवाद भेजा जाय.
3 मच्छरों का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधीमंडल जाकर नगर परिषद अथवा निगम
को धन्यवाद ज्ञापन देगा कि आपकी मेहरबानी से हमारा वंष खूब फल फूल रहा
है, आपको कोटि कोटि धन्यवादउपरोक्त
सभी प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास करके सभा विसर्जित की गई
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
लेकिन आज की मीटिंग के लिए जो स्थान चुना गया था उसकी तारीफ सभी
मच्छर कर रहे थे. आज की यह अति महत्वपूर्ण मीटिंग नगर परिषद के उस
नाले में रखी गई थी जहां दिन-रात घोर अंधेरा छाया रहता था तथा जहां आज
तक डीडीटी छिडकनेवाला तो क्या कोई सफाई करने वाला भी नही पहुंचा थाबडी
गहमा-गहमी थी और दूर दूर से मच्छर इस पंचायत में हिस्सा लेने आए
हुए थे.
मंच पर चौधरी मच्छरसिंह विराजमान थे और उनके कई चेलें व्यवस्था में
इधर उधर घूम रहे थे. कई कई कमांडों उनकी सुरक्षा के लिए तैनात थे. सब से
पहले चौधरी मच्छरसिंह को मैसूर के जंगलों के फूलों की बनी माला पहनाई गईमीटिंग
के षुरू में सभा के संयोजक मच्छरप्रषाद ने कहा कि आज की बैठक
काफी महत्वपूर्ण है. यह मच्छरों की ही हिम्मत है कि वह आगे बढ कर आदमी
से टक्क्र लेता है. आज देष में यही विषय महत्वपूर्ण रह गए है, मच्छर, आतंक
और घोटालें. आप किसी भी सभा-सोसाइटी में चले जाइए अथवा कही भी
दो-चार व्यक्ति बैठे होंगे तो सबसे पहले इन्ही विषयों पर चर्चा होगी. इससे यह
सिद्ध होता है कि आज हमारी जाति की अहमियत बहुत बढ गई है. अब
सरकार को हमें विषेष दर्जा देना पडेगा और इसीलिए आज हमने यह मीटिंग
बुलाई है. अब मैं मच्छरनाथ से प्रार्थना करूंगा कि इस विषय में अपने विचार
पंचायत के सम्मुख रखेंइसके
बाद मच्छरनाथ माइक के पास आ खडे हुए और बोले, ‘ भाइयों !
हमारी जाति की विषेषता है कि जहां देष में आज अधिकांष कर्मचारी काम से
जी चुराते है, हम लोग दिन-रात काम करते है. यहां तक कि मार्च-अप्रैल तथा
अक्टूबर-नवम्बर में तो हम डबल डयूटी करते है, ओवर टाइम काम करते है,
परन्तु क्या मजाल जो कभी उफ भी की हो. हमने कभी किसी वेतन आयोग को
लागू करने की अथवा डीए बढाने की मांग नही की. यह संदेष हम आज की
मीटिंग के जरिए देष और दुनियां को देना चाहते है’ इतना कह कर मच्छरनाथ
ने अपना स्थान ग्रहण कियाअब
बारी आई मच्छरकिषोर की, उन्होनें अपनी सधी हुई आवाज में
अपने काम काज की जानकारी देते हुए बताया कि हम बोरिंग, छेद, करने से
पहले सर्वे करते है फिर वहां जाकर ड्लििंग यानि बोरिंग करते हेैं. अभी कल की
ही बात है मैंने एक आदमी की खोपडी में बोर किया. वह अक्सर खेलों में
हूटिंग किया करता है. उस समय भी वह एक मैच में हूटिंग कर के ही लौटा
था. उसकी खोपडी में छेद करते ही मुझे वहां गोबर ही गोबर नजर आया. मैंने
झट से अपनी मैडम को आवाज लगाई ‘अरी भागवान ! देख फिर मत कहना
कि गोबर नही देखा क्योंकि उससे पहले मेरी मैडम ने गोबर नही देखा था सिर्फ
सुना ही सुना था’. मच्छरकिषोर ने यह कह कर अपनी बात समाप्त की कि
‘आदमियों का यह हाल है ओैर मच्छरों को हीन समझते हैं’.
इसके बाद मच्छरराम ने मीटिंग में बताया कि ‘मेरी बोरिंग तो बिलकुल
फालतू गई. मैं एक व्यक्ति की खोपडी में ड्लि करता गया, करता गया, यहां
तककी खतरे के निषान तक पहुंच गया लेकिन खुदाई में सडा हुआ बुरादा
निकला. वो तो बाद में पता चला कि यह तो किसी अफसर की खोपडी थी’.
इस बात पर खूब तालियां बजीअब
बारी आई मच्छरदास की, मच्छरदास ने बताया ‘सबसे बुरी चोट तो
मेरे साथ हुई. मेरा ठिकाना एक नेताजी के ड्ाइंगरूम की कुर्सी के पाएं की दरारें
हैं. मैं कल जब वहां से निकल कर बाहर आया तो नेताजी आराम कुर्सी पर
सुस्ता रहे थे. उन्हें सुस्ताते देख मैंने उनकी खोपडी में बोरिंग कर डाली. पर
हाय ! हाय ! यह क्या हुआ ? ससुरा हैमर, बोरिंग करने वाला औजार, सांय
सांय करता हुआ अंदर तक घुसता चला गया. म्ंौं यह सब देख वहां से भाग
निकला, दोस्तों ! आपको इसलिए बता रहा हूं कि सनद रहे, वास्तव में उस
खोपडी में भेजा था ही नहीमच्छरदास
के बाद मच्छरमल की बारी थी. उसने विषय को संवारते हुए
कहा इन नेताओं को हमने बहुत सहा है. अभी तक तो खटमल ही खून चूसने
में हमारे प्रतिद्वंद्वी थे. अब नेता भी इस काम में हमारा मुकाबला करने लगे है
अतः हमें ष्वेत पत्र निकाल कर इनका विरोध करना चाहिए’.
अंत में चौधरी मच्छर सिंह ने मीटिंग में पास किए जाने वाले प्रस्ताव पेष
किए जिनमें निम्नलिखित बातें षामिल थी:-
1 नेताओं को विरोध पत्र भेजा जाय कि खून चूसना तो हमारा जंम सिद्ध
अधिकार है आप लोग इसमें दखल क्यों दे रहे है ? खटमलों पर भी रोक
लगनी चाहिए.
2 डीडीटी का असर नही होने से मलेरिया विभाग का अहसान मानते हुए उन्हें
धन्यवाद भेजा जाय.
3 मच्छरों का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधीमंडल जाकर नगर परिषद अथवा निगम
को धन्यवाद ज्ञापन देगा कि आपकी मेहरबानी से हमारा वंष खूब फल फूल रहा
है, आपको कोटि कोटि धन्यवादउपरोक्त
सभी प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास करके सभा विसर्जित की गई
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
रविवार, 2 अक्टूबर 2011
नारी होने का मूल्य

नन्हे
हाथों में नए कंगन,
कानों में झुमके
गले में मोतियों की
माला पहने
नयी चुनडी ओढ़े
उछलते कूदते
नन्ही बालिका इतरा
रही थी
घर आये मेहमानों को
बड़े गर्व से अपने नए
वस्त्राभूषण दिखा
रही थी
उसे पता नहीं था
आज उसके बचपन का
अंतिम दिन था
कल उसका विवाह था
उसके कौमार्य को
उसके पिता ने
चंद रुपयों के लिए
एक अधेड़ शराबी को
बेच दिया था
अब जीवन भर उसे
रोना था
गरीबी का नतीजा
सहना था
चूल्हे,चौके की आग में
निरंतर जलना था
घुट घुट कर मरना था
नारी होने का मूल्य
चुकाना था
इंतज़ार
दरख्तों के लम्बे
सायों के बीच
शाम के धुंधलके में
वो आज फिर उसके
इंतज़ार में खडी थी
आँखें रोज़ की तरह
सड़क पर गढ़ाए बेचैनी में
ऊंगलियों से खेल रही थी
वक़्त गुजरता जा रहा था
शाम गहराने लगी
चेहरे पर चिंता की लकीरें
बढ़ती जा रही थी
उसका पता ना था
आँखों से आँसू निकलते
उस से पहले ही
दूर एक धुंधली परछायी
नज़र आने लगीउम्मीद में
कदम खुद-ब-खुद
उस तरफ बढ़ चले
नज़दीक पहुँचने पर
उसकी
सूरत साफ़ दिखने लगी
आँखों से
खुशी के आँसू बहने लगे
वो खून से लथपथ था
पास आता,
गले मिलता कुछ कहता
उस से पहले ही
ज़मीन पर ढेर हो गया
उसका इंतज़ार
कभी ख़त्म ना हुआ
आज भी
शाम के धुंधलके में
दरख्तों के
लम्बे सायों के बीच
वो ऊंगलियों से
खेलते खडी दिखती है
चेहरे पर उस से मिलने की
उम्मीद अब भी
साफ़ झलकती है
हसरतें
मन में संजोयी
तुम सामने बैठी हो
मैं तुम्हें देखता रहूँ
खामोशी से
तुम्हारी मीठी बातें
सुनता रहूँ
तुम कानों में मिश्री
घोलती रहो
मुझे
मदहोश करती रहो
मैं नशे में
निरंतर झूमता रहूँ
कब रात बीती ,
कब सुबह हुयी
हवा भी ना लगे
उम्र गुजर जाए
वक़्त दुनिया से
रुखसत होने का
आ जाए
पता भी ना चले
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com
शनिवार, 1 अक्टूबर 2011
गांधी के तीन बंदरों के नए आयाम ! गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर-
बुरा मत देखो !
बुरा नही देखना,
भाईभतीजों का भी ख्याल रखना,
सिर्फ खुद की मत सेंकना !
बुरा मत सुनो !
सालभर छल कपट के,
तानें बानें बुनो,
लेकिन गांधी जयंती के रोज,
राजघाट पर,
रघुपति राघव राजा राम जरूर गुनो !
बुरा मत बोलो !
चाहे असली बताकर,
डालडा तोैलो,
स्ंविधान में खूब अधिकार दिए है,
रोटी चाहे मिले ना मिले,
पर खूब चीखो खूब बोलो !
संकलन षिव षंकर गोयल
बुरा नही देखना,
भाईभतीजों का भी ख्याल रखना,
सिर्फ खुद की मत सेंकना !
बुरा मत सुनो !
सालभर छल कपट के,
तानें बानें बुनो,
लेकिन गांधी जयंती के रोज,
राजघाट पर,
रघुपति राघव राजा राम जरूर गुनो !
बुरा मत बोलो !
चाहे असली बताकर,
डालडा तोैलो,
स्ंविधान में खूब अधिकार दिए है,
रोटी चाहे मिले ना मिले,
पर खूब चीखो खूब बोलो !
संकलन षिव षंकर गोयल
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