रविवार, 15 जनवरी 2012
मैं खडा होना चाहता हूं, व्यंग्य
अब मैं भी खडा होना चाहता हंू। नहीं, आप गलत समझ गए। मैं अपने
पेैरों पर तो पहले से ही खडा हूं। मैं तो चुनाव दंगल में खडे होने के लिए कह
रहा हंू। कहते हैं कि खडे होने का अनुभव या तो मंत्री को होता हैे या संतरी
को, लेकिन उं-हंू, मेरे को यह बात नही जंचती। अब मुझे ही लो, मुझे खडे होने का क्या कम अनुभव है? बचपन में पढने लिखने में ठोठ, कमजोर था,
पंडितजी पहाडे याद नहीं करने पर खूब मारते थे, बैंच पर खडा कर देते थे,
फिर घंटों खबर नहीं लेते कि मैं खडा ही हंू या कहीं बैठ तो नहीं गया? मेरी
पढाई से ज्यादा खडे रहने की तरफ जब ध्यान दिया जाने लगा तो मैंने रो-
धो कर स्कूल बदल ली, लेकिन यहां भी मास्साब मेरी खूब खबर लेने लगे। सलेख नहीं लिखने पर डंडों से पिटाई करके बाहर धूप में खडा कर देते थे, इसलिए बचपन से ही मुझे खडे होने का अच्छा खासा अनुभव है और आप जानो पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, बचपन से ही जिसने खडे होने का इतना अनुभव ले लिया हो वह कहां खडा नहीं हो सकता? मास्साब भी कहते थे
बडा होकर यह या तो मंत्री बनेगा या संतरी। खैर,
थोडा बडा हुआ तो मां थैला पकडा कर राषन की दुकान पर भेज देती।
वहां घंटों खडे रहने का अनुभव मिला। वहां जब भी जाते दुकान बंद मिलती
और कभी भाग्य से दुकान खुली मिल भी जाती तो घंटों खडे रहकर इंतजार
करना पडता और जब नम्बर आ भी जाता तो या तो कचरा मिला गेंहू अथवा
गीली षक्कर या मिलावट का कैरोसीन खत्म हो चुका होता। अक्सर राषन की
दुकानवाले के पास रेजगारी भी नहीं होती थी और वह बात-बात में झल्लाता
तथा दुर्व्यवहार करता था। बहरहाल घंटों लाइन में थैला लटकाए खडे होने का
अनुभव तो है ही, कहीं आप यह न समझ लें कि अनुभव नहीं है। इसी तरह पास के मोहल्ले में लगे हैंडपम्प पर पानी भरने जाते थे तो वहां काफी देर खडे रहते क्योंकि पहले तो मोहल्ले के दादा लोग पानी भरते फिर जिस व्यक्ति का मकान हैंडपम्प के पास होता वह उसे अपनी जागीर होने की धौंस बताता और जिसे वह अपना समझता उसे पहले पानी भरवाता, लिहाजा घंटों खडे रहते।
ऐसे कई अनुभव बचपन और किषोरावस्था के हैं। चंद उदाहरण आपको
यह बतलाने के लिए लिखें है कि सनद रहे और वक्त बेवक्त आप भी गवाही दे
सकें कि मुझे खडे होने का अनुभव है।
युवावस्था में पैर रखा तो कभी कभार थर्ड क्लास में सिनेमा देखने भी
चले जाते थे, वहां साढे तीन बजे के षो देखने के लिए 2-3 घन्टे पहले से ही
लाईन लग जाती थी, उस लाइन में घंटों खडे रहते तब कहीं धक्का-मुक्की
खाते-खाते टिकट हाथ आता, कभी नहीं भी आता क्योंकि ब्लैक वाले दादाओं का ज्यादा जोर था औेर उन्हें पुलिस का संरक्षण था। यों खडे रहने का अनुभव
षादी के अवसर का भी है। ससुराल में तोरण मारने के बाद वहां दरवाजे के
बाहर काफी देर खडे रहे ताकि हमारी भावी पत्नी आकर वर माला डाल दे, लेकिन वह अपने हिसाब से आई। फिर जब घर गृहस्थी में पड गए तो आटा-दाल का भाव भी मालुम हो
गया और नौकरी के लिए भर्ती दफतर में नाम लिखवाने गए और वहां जो
लाइन में खडे हुए तो बस हद हो गई। सुबह से लगे लोगों को षाम तक किसी ने यह नहीं पूछा कि क्यों खडे हो?
घन्टों खडे रहने की बातें तो बिजली-पानी के बिल जमा कराने जाता हंू
तब की भी बहुत हैं, लेकिन जो अनुभव कोर्ट कचहरी का है, उसे आपको क्या
सुनाउं ओैर क्या नही सुनाउं? वहां ठेठ गांव वाला क्या ओैर अच्छे से अच्छा
पढा लिखा तीस मारखां क्या, सभी घंटों खडे रहते हैं, तब कही जा कर अचानक पता लगता हैें कि कोई तारीख पड गई हैं, कोर्ट कचहरी में कटघरे के अन्दर चाहे बाहर अगर आप कहीं भी खडे रहे हैं तो आपको किसी और अनुभव की जरूरत नही है। आप कहीं भी खडे हो सकते हैं।
खडे होने का अनुभव उन सभी को है, जो कोई भी अपनी षिकायत या
अपनी मुसीबत लेकर किसी सरकारी दफतर गया हो तो वहां घंटों खडे रहना
पडता हैं, कोई कहता है वहां जाओ कोई कहता हैं वहां जाओ और आप घूमते
रहो जैसे मेले में पुलिसवाला और ग्रहण चन्द्र ग्रहण सूर्यग्रहण में थोरी
मांगने वाला घूमता है।
खडे रहने का एक रिकार्ड कानपुर के ‘धरती पकड’ का भी रहा है। वे कई
सालों तक चुनाव में खडे होते रहे, खडे रहने का एक रिकार्ड षाहजंहापुर के
स्वामी मांजगीर का भी है, वे सन 1955 से 1973 यान 18 साल तक ‘हठ
योग’ में खडे ही रहे। मैं इतना मुकाबला तो नही कर सकता लेकिन अगर यह
महानुभाव इस दफा खडे नही होते है तो किसी न किसी राजनीतिक दल द्वारा
मुझे अवसर दिया जाना चाहिए।
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 98737063339
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें