मन का तीन भागों में श्रेणी विभाजन किया जासकता है-चेतन, अवचेतन तथा अचेतन। अवचेतन तल में जो भी अनुभव होते हैं, उनका संबंध सूक्ष्म शरीर से माना जाता है। यहां होने वाले समस्त अनुभव मानसिक होते हैं। प्रसिद्ध लेखक डा. जोसेफ मर्फी ने अपनी पुस्तक 'आपके अवचेतन मन की शक्तिÓ में इस विषय पर काफी प्रकाश डाला है कि कैसे कोई स्वास्थ्यार्थी इसकी मदद लेकर अपनी चिकित्सा स्वयं कर सकता है।
मशहूर लेखक डेल कारनेगी अपनी पुस्तक 'चिंता छोड़ो सुख से जीओÓ में लिखते हैं कि 70 प्रतिशत मरीज तो ऐसे होते हैं कि जो अपना डर और चिंता दूर कर लें तो वे बिना किसी दवा लिए ही ठीक हो सकते हैं। उनका यह भी कहना है कि मरीज की बीमारी को वे काल्पनिक नहीं मान रहे है। वह उतनी ही वास्तविक होती है, जितनी दुखती हुई दाढ़। कई बार तो ये बीमारियां इसकी तुलना में सौ गुणा ज्यादा गम्भीर हो सकती हैं, जैसे नवर्सइन्डाइजेशन, अमाशय का अल्सर, हृदय रोग, अनिद्रा, कई तरह के सिर दर्द और कुछ प्रकार के लकवे इत्यादि।
उनका यह भी कहना है कि डर के कारण चिंता होती है, चिंता से तनाव पैदा होता है और आप नर्वस हो जाते हैं। इसके कारण आपके अमाशय की तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं और आपको अल्सर होजाता है। 'नर्वस स्टमक ट्बलÓ पुस्तक के लेखक डा. जोसेफ एफ . मॉन्टेग्यू भी कहते हैं कि आप क्या खाते हैं, इससे अल्सर नहीं होता, बल्कि अल्सर तो आपको उस से होता है, जो आपको खाये जा रही है। एक अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अस्सी प्रतिशत लोगों को पेट की बीमारियां डर, चिंता, नफरत, कुंठा, स्वार्थ और दुनिया की हकीकत के साथ तालमेल न बैठा पाने के कारण होती हैं। एक और अध्ययन से यह पता लगा कि एक्जीक्यूटिव्ज में एक तिहाई से अधिक लोग हृदय रोग, पेट के अल्सर एवं उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं। एक प्रसिद्ध लोकाक्ति है डा. मरहम पट्टी करता है, ईश्वर घाव भरता है। कोई भी डाक्टर यह दावा नहीं करता कि वह बीमारी ठीक करता है। वह सिर्फ निरोग होने या करने का वातावरण बनाता है। जो ताकत बीमारी को ठीक करती है, जो घाव भरती है या हड्डियों को जोड़ती है, उसके कई नाम है मसलन प्रकृति, आंतरिक चेतना शक्ति, जीवन शक्ति, ईश्वर, रचनात्मक बुद्धिमता एवं आदमी का अपना अवचेतन मन इत्यादि।
डा.जोसेफ मर्फी के अनुसार अवचेतन मन बहुत बुद्धिमान एवं अत्यंत प्रभावशाली है। दैनिक जीवन में हममें से कई उससे काम लेते रहते हैं। मान लें आपको अगले रोज सुबह 5 बजे उठना है और आपके पास कोई साधन नहीं है तो आप रात में सोते समय अपने अवचेतन मन को यह आदेश देकर सोयें कि मुझे कल सुबह 5 बजे उठना है और आप देखेंगे कि सुबह 5 बजे आपकी नींद खुल जायेगी। हांलाकि वह अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करता, लेकिन एक बार आर्डर बुक करने के बाद आपके आदेशों की पालना करने में पीछे नहीं रहता।
जीवन शक्ति या ईश्वर कभी किसी व्यक्ति की जिन्दगी में बीमारी, अस्वस्थ्ता, दुर्घटना अथवा विपत्ति नहीं भेजता। यह हमारे ही कर्म हैं जो हमारे नकारात्मक विचारों, कल्पनाओं पर सवारी कर हमने किए हैं। यह प्रकृति का नियम है कि मनुष्य जो कुछ बोता है वही काटेगा। आंतरिक चेतना अथवा ईश्वर को आपसे कोई गिला नहीं है। यह चेतना आपके खिलाफ भी नहीं है। उलटे जब कभी आपके कहीं चोट लग जाए या हड्डी टूट जाए तो यह तुरन्त उसे ठीक करने के काम में जुट जाती है और यह भी आप जान लें कि यह जीवन शक्ति कभी आपको दंड नहीं देती, बशर्ते कि हम कोई लापरवाही न करें, प्रकृति विरुद्ध कार्य नहीं करें। जीव परमात्मा का ही अंश है, इसलिए उसके खजाने में आपके लिए कोई कमी नहीं है।
ईश्वर इस विश्व के कण-कण में है, शाश्वत है, सर्वशक्तिमान है और सर्वत्र है। ईष्वर सबके हैं, इसलिए आपके भी हैं और चूंकि सब ईश्वर के हैं, आप भी ईश्वर के हैं। अत: ईश्वर और अवचेतन मन पर पूरा भरोसा रखें। यह अवचेतन मन ही है जो ईश्वर की अदालत में आपका पक्ष रखेगा। सत्य ही ईश्वर है और विश्वास करें कि जो कुछ होगा अच्छा होगा और आपका स्वास्थ्य सुधरेगा, लेकिन इसके लिए आपको अपने अवचेतन मन को अपना वकील बनाना होगा और यह काम करेगा आपका चेतन मन, वह ही अपने विश्वास के आधार पर अवचेतन को निर्देश देगा कि किस तरह स्वास्थ्य लाभ लेना है।
प्रार्थना के विज्ञान को समझिये और उस पर भरोसा करें। संसार के किसी भी धर्म ग्रन्थ को लें, कुछ एक अतिशयाोक्तियों को छोड़ दें तो प्रयत्न के साथ-साथ प्रार्थना पर विश्वास करके सफलता हासिल करने के सैकड़ों उदाहरण मिल जायेंगे। प्रकृति कभी-कभी चमत्कार भी करती है। ऐसे ही किसी चमत्कार की आशा आप भी करिए। बाईबिल की यह उक्ति हमेश याद रखिए कि ईश्वर से मांगिये और आपको मिलेगा, ढूंढिये और आपको अवश्य प्राप्त होगा, उसके दर पर दस्तक दीजिए और आप देखेंगे कि उसके पट आपके लिए खुल गए हैं।
आपको करना सिर्फ यह है कि जैसे मकान बनाने से पूर्व उसका नक्शा बनाया जाता है, जो पहले कहीं देखे गए मकान के अनुरूप भी हो सकता है या आपके द्वारा पढ़ी हुई किसी पुस्तक अथवा चित्र या कल्पना पर भी आधारित हो सकता है। साथ ही इस मकान में आप अच्छे से अच्छा बिल्डिंग मेटेरियल्स भी लगाना चाहेंगे, तभी आपके सपनों के अनुरूप आपका मकान बन पायेगा। ठीक इसी तरह आप अपने स्वस्थ्य एवं निरोगी शरीर का नक्शा अपने चेतन मन में बनाइये और सोचिये कि मुझे भी वापस ऐसा ही फुर्तीला बनना है, इसके पहले भी आप बीमार पड़े हैं और ठीक हुए हैं तो कोई वजह नहीं कि आप इस बार भी ठीक नहीं होंगे, जरूर होंगे।
लेकिन इस स्थिति को लाने के लिए आपको आशा, उत्साह, विश्वास, धैर्य, प्रफुल्लता, उमंग रूपी सामान चाहिए, वही चेतन मन के द्वारा आप एकत्रित करके अवचेतन को उपलब्ध कराइये और वहां पहले से ही मौजूद भय, डर, चिंता, अवसाद, कुन्ठा, अभिनिवेश यानि मृत्यु का भय रूपी कबाड़ को निकाल दीजिए। अगर आपने इस फिजूल सामान को नहीं निकाला तो आप अपने स्वास्थ्य को लेकर अपने मस्तिष्क में तनाव, डर और फिक्र के ताने-बाने ही बुनते रहेंगे। इसके बाद एक अच्छा नक्शा और अच्छा सामान आप अपने अच्छे बिल्डर अवचेतन मन को सौंप दीजिए। कोशिश करके देखिए, यह बहुत उपयोगी आयाम है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम्स जेम्स, जो कि अमेरिका में मनोविज्ञान के पितामह माने जाते हैं, का कहना था कि अवचेतन मन, विश्वास पर आधारित एक अच्छे चित्र ब्ल्यू प्रिन्ट एवं अच्छे बिल्डिंग मेटेरियल्स को लेने में देर नहीं करेगा, आप देकर तो देखिए।
फ्रांस की रोसेसु इन्स्टीटयूट के प्रोफेसर चाल्र्स बॉदायन विश्व प्रसिद्ध मनोचिकित्सक हुए हैं। उन्होंने बताया है कि जब आप रात को बिस्तर पर सोने की तैयारी कर रहे होते हैं, तब आपके अवचेतन मन को अपने चेतन मन के माध्यम से सुझाव देना सबसे उपयुक्त समय है। उसी समय बार-बार दोहराते हुए अपनी निम्न बात रखें- 'मेरा समस्त शरीर, इसके सभी अंग-प्रत्यंग ईश्वर की असीम कृपा एवं अवचेतन मन की विलक्षण बुद्धि ने बनाये हैं। यही जानता है कि मेरा उपचार कैसे किया जाए। यह शक्ति मेरे अस्तित्व की हर कोशिका को बदल रही है और मुझे वापस स्वस्थ्य बना रही हैं। मैं इस उपचार के लिए ईश्वर एवं अवचेतन मन को बारम्बबार धन्यवाद देता हंू। हो सकता है कि इस बात को आप को कुछ दिन बार-बार दोहराना पड़े, परन्तु इसमे आपको सफलता अवश्य मिलेगी। ऐसा आप सुबह तत्काल सो कर उठते समय भी कर सकते हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि सोते समय एवं सोकर उठने के तत्काल बाद अर्थात तन्द्रावस्था में आपके अवचेतन मन में कुछ भी उगाने का सबसे अच्छा मौका है क्योंकि इस समय वहां किसी भी तरह के नकारात्मक विचार नहीं होते। हां, इतना अवश्य याद रखें कि उस समय भूल कर भी अपनी बीमारी को याद नहीं करें क्योंकि आपके उस समय दिए गये निर्देशानुसार ही वह रातभर काम करता रहे।
इसके साथ ही प्रेक्षा ध्यान भी किया जाय। जिसके अन्र्तगत किसी भी सुविधापूर्वक आसन में बैठ कर अथवा लेट कर अपने शरीर के प्रत्येक अंग, पैर के अंगूठे से लेकर मस्तिष्क तक पहुंचा जाए और जब उनींदी अवस्था आने लगे तो यह प्रार्थना की जाए- 'मुझ पर ईश्वर की पूर्ण कृपा हो रही है, मैं पूर्ण स्वस्थ्य हो रहा हूं, मेरा अवचेतन स्वास्थ्य के विचार को अवचेतन मन तक पहुंचाने का एक और अदभुत तरीका अनुशासित या वैज्ञानिक कल्पना है।. इस कल्पना में अपने आप को पूर्ण स्वस्थ्य मान कर वह सब काम करें जो एक स्वस्थ्य व्यक्ति कर सकता है। ऐसा करने से आपका अवचेतन मन सम्पूर्ण स्वास्थ्य की मानसिक तस्वीर स्वीकार कर लेगा और आप पूर्ण स्वस्थ्य हो जायेंगे।
डा. फिनियास पार्क हस्र्ट का कहना है कि इस उपचार के दौरान स्वस्थ्यार्थी को यह मान कर चलना होगा कि उसकी बीमारी की वजह मानसिक तनाव, दुख, भय, क्रोध, अशांति, निराशा, खिन्नता, उदासी, हलचल, घबराहट, अवसाद, कुंठा एवं अवचेतन मन में गहरी पैठ जमाये हुए नकारात्मक विचार है। असली बीमारी की जड़ यहीं है और अगर उसके सोच में बदलाव आ जाए, वह इनके बजाय आशा, उमंग, उत्साह इत्यादि सकारात्मक बातों पर विश्वास करें तो बीमारी ठीक होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। प्रसिद्ध क्रांतिकारी, विचारक और साहित्यकार स्व. यशपाल का कहना था कि मनुष्य से बड़ा है स्वयं उसका विश्वास, इसी विश्वास के आगे वह नतमस्तक हो जाता है। इसी बात को ध्यान में रख कर आप अपने अवचेतनमन के आश्चर्यजनक प्रभाव का इस्तेमाल कीजिए और जल्दी से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कीजिए।
अपनी चिंता को मिटाने की कोशिश कीजिए। प्रसिद्ध लेखक विलियम ल्यान फेल्प्स के अनुसार चिंता जीवन की राह को कठिन बनाती है। इससे उबरने के तरीके आदमी खुद ही सोचता है। चिंता से मुक्ति पाने के लिए हर समय उत्साह में रहना और धैर्य से समय गुजार देना ही सर्वोतम उपाय है। इस विषय में एक प्रसिद्ध धार्मिक पत्रिका में छपे लेख का आशय है कि जब आपको लगता है कि आपके अथवा आपके परिवार में प्रतिकूल परिस्थिति आई है, तब आपको चिंता होती है, आपके परिवार में तीन चीजें शामिल हैं- 1. आपका शरीर 2. आपके निकट संबंधी, जानकार इत्यादि और 3. आपकी सम्पति। अगर आप जरा गौर से सोचेंगे तो पायेंगे कि इन तीनों के मालिक प्रभु हैं। इन पर प्रभु का नियंत्रण है। ये तीनो चीजें प्रभु के काम आयेंगी, इसके साथ ही यह भी विश्वास करें कि प्रभु का विधान सदैव मंगलकारी होता है। यह दोनो बातें मानते ही आपकी चिंता कम होने लगेगी। इस विषय में डेल कारनेगी सुझाता है कि कभी किसी आशंका से चिंता होने लगे तो उसे मिटाने हेतु ये उपाय कीजिए- सोचें कि बुरे में बुरा क्या होजायेगा ? उस स्थिति को स्वीकार कर लें और अब उस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए, इस पर सोचें, आपकी चिंता घटने लगेगी।
ऐसे ही अवसाद अथवा उदासी को लीजिए अवसाद से बचने का तरीका यही हेै कि हम यह जानले कि जिंदगी कोई्र आसान राजपथ नही हैेे, यह पहाडों की पगडंडी है, बना बनाया रास्ता नही है बल्कि जितना चलोगे उतना रास्ता बनेगा. किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी हरदम सुगम नही होती.
इसी तरह भय अथवा डर है, प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूशियस का कहना था कि भय ही समस्त दुश्चिंताओं का कारण है। डरा हुआ आदमी कोई भी सकारात्मक कार्य नहीं कर सकता। इसलिए अपने मन से डर को निकालिए हो सके तो उसका सामना करिए।
प्रसिद्ध लेखक डेविड जे. श्वार्टज अपनी पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ा जादूÓ में लिखते हैं कि कई लोग कोई लेख पढ़ कर या किसी का लैक्चर सुन कर ही यह धारणा बना लेते हैं कि मुझे भी यह बिमारी है। कई व्यक्ति हर वक्त अपनी बीमारी के बारे में बात करते रहते हैं, इसलिए अपनी बीमारी के बारे में बात करना तो दूर, सोचना भी छोड़ दीजिए। ऐसा करने से बीमारी का हाल पेड़ की कटी हुई टहनी के समान हो जायेगा, क्योंकि उसको आपके ध्यान और उस पर आधारित तरह-तरह की चिंताओं से खुराक मिलती है। डा.श्वाटर््ज का तो यह भी कहना है कि उनके कई डाक्टर मित्रों ने उन्हें बताया था कि इस दुनिया में पूरी तरह स्वस्थ्य कोई भी नहीं होता, अत: हो सके तो अपना ध्यान बंटाइये, किसी काम में लग जाइये, काम में शरीरिक थकान हो तो लाभ जल्दी मिलेगा। जहां तक हो सके अकेलेपन से बचिए, शाकाहार अपनाइये और योग का सहारा लीजिए। उनका यह भी कहना है कि अपनी सेहत के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दीजिए। इस प्रसंग में उन्होंने एक व्यक्ति का जिक्र किया, जिसे इस बात का पूरा भरोसा था कि उसका गालब्लैडर खराब है। हांलाकि आठ बार अलग-अलग क्लिनिकों में एक्सरे कराने पर भी उसका ब्लैडर सही दिख रहा था और डाक्टरों का कहना था कि यह सिर्फ उसके मन का बहम है और दरअसल उसे कोई बीमारी नही है। डा.श्वाटर््ज यह भी लिखते हैं कि अपनी सेहत का बहुत ज्यादा ध्यान रखने वाले कई लोग बारबार ईसीजी कराते रहते हैं। मेरा उनसे यही कहना है कि वे अपनी बीमारी के बारे में फालतू की चिंता करना छोड़ दें।
आपकी सेहत जैसी भी है, आपको उसके लिए कृतज्ञ होना चाहिए। एक पुरानी कहावत है कि मैं अपने फटे हुए जूतों को लेकर दुखी हो रहा था, परन्तु जब मैंने बिना पैरों वाले आदमी को देखा तो मुझे ऊपर वाले से कोई शिकायत नहीं रही। इस बात पर शिकायत करने के बजाय कि आपकी सेहत में क्या अच्छा नहीं है, आपको इस बारे में कृतज्ञ होना चाहिए कि आपकी सेहत में क्या अच्छा है। याद रखें कि जंग लगने से बेहतर है घिस जाना। आपको जीवन मिला है, मजे लेने के लिए, इसे बर्बाद मत कीजिए। कोई हास्य प्रसंग याद कीजिए, कोई चुटकुला याद करे, अपने जेहन में उसकी कल्पना करे मानो चलचित्र रूप में वह कही घटित हो रहा है। उसका आनन्द उठाइये, इससे आपको मुस्कराहट मिलेगी, आपकी मांसपेशियां हिलेंगी, आपका दिल हल्का होगा। आपका मनपसंद संगीत सुनिए। अपने आप को बच्चा समझ कर कोई कार्टून फिल्म देखिए, कॉमिक्स पढिए। जहां तक हो सके बिना किसी दवाई के भरपूर नींद लेने की कोशिश करें। इस कार्य में भी आपके अवचेतन की मदद लें। वह खुद तो जागेगा, लेकिन आपको नींद लेने में आपकी मदद करेगा। विगत जीवन के सुखद क्षणों को याद करें।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है-फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75
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