गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मकर संक्राती एवं सात का महत्व


यह बडी दिलचस्पी का विषय है कि इस सदीके सातवें साल याने सन 2007
के सातवें महीनें यानि जुलार्इ्र की सात तारीख को सांयकाल 7 बजे पुर्तगाल के लिस्बन
षहर में विष्व के सात नये आष्चर्य तय किए गए और उनका चुनाव भी दुनियां भर में
स्थित निम्नलिखित इक्कीस स्थानों में से किया गया जो-क्रमषः एक्रोपोलिस यूनान,
कोलोसियम इटली, कियोमिजु मंदिर जापान, गीजा पिरामिड मिश्र, अलहंब्रा स्पैन, ईस्टर
प्रतिमा चिली, क्रेमलिन रूस, लिबर्टी स्टैच्यू अमेरिका, अंगकोर कम्बोडिया, ऐफेलटॉवर फ्रांस,
माचू पिच्चू पेरू, स्टोनहेंज ब्रिटेन, इत्जा पिरामिड मैक्सिको, चीनकीदीवार चीन, नियुष्वांस्टीन
जर्मनी, ऑपेरा हाउस आस्ट्ेलिया, क्राइस्ट रिडिमर ब्राजील, तुर्की पेत्रा जॉर्डन, टिम्बकटू माली
तथा ताजमहल भारत हैं. जिसमें अंततोगत्वा आगरा स्थित प्रेम के समर्पण की सबसे उॅची
मिषाल ताजमहल को षामिल किया गया. वैसे पूर्व में संसार के निम्नलिखित सात अजूबें
माने जाते थे जिसमे से मिश्र स्थित गीजा के पिरामिड को छोडकर अब किसी का वजूद
नही है. ये आष्चर्य है:-गीजा के पिरामिड, बेबीलोन के झूलते बाग, ओलंपिया ग्रीस में
जियूस देवता की मूर्ती, टर्की के इफेसिस में देवी डायना का मंदिर, ऐषिया माईनर में
हैलीकार्नासिस के षासक मोसालस का मकबरा, रोडस द्वीप में सूर्य देवता हीलियोस की
कांसे की विषालकाय प्रतिमा और सिकन्दरियां बन्दरगाह के पास एक द्वीप पर फारोस का
प्रकाष स्तम्भपूरे
विष्व में ही और खासकर अपने देष भारत में सात का बडा महत्व है,
प्रति वर्ष 14, यानि 7गुणा2, जनवरी को ही पड़ने वाली मकर संक्राति का सात के अंक के
साथ रिष्ता है, इस दिन सप्त रष्मियांे का मालिक सूर्य अपने सात घोड़ांे के रथ पर सवार
होकर मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ना षुरू करता है, सूर्य दक्षिणायण से
उत्तरायण की तरफ अपनी यात्रा षुरू करता हैं, सूर्य की किरणें सात रंगो से बनी होती हैं
(बैंगनी, गहरानीला, नीला, हरा, पीला, नारंगी एवं लाल) जो कभी-कभी वर्षा ऋतु के दौरान
इन्द्रधनुष के रूप मंे दिखाई पड़ती हैंसूयर्
आसमान मंे दिखता है, आसमान मंे ही सप्त ऋृषि मण्डल (कष्यप, भारद्वाज,
अश्रि, विष्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं वषिष्ठ) हैं जो कभी भी तारांे भरी रात मंे देखा जा
सकता है, सात लोक (भू, भूवः, स्वः, महः, जन, तप और सत्य) एवं सात पाताल (अतल,
वितल,सुतल, तलातल, महातल, रसातल एवं पाताल) की यह दुनियां जिसमंे हमारी मां पृथ्वी
भी एक हिस्सा है, जिसमंे सात महाद्वीप (एषिया, यूरोप, अफ्रिका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी
अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं ग्रीनलैण्ड) एवं सात समुद्र (प्रषान्त महासागर, हिन्द महासागर,
अरब सागर, आर्कटिकसागर, भूमध्यसागर, अटलांटिक महासागर एवं कैस्पियन सागर) की
यह दुनिया निराली है तभी तो बच्चे खेल ही खेल मंे कहते हैं सात समुन्दर, गोपी चन्दर,
बोल मेरी मछली कितना पानी ?
चाहे इंगिलष सिस्टम में सप्ताह के दिन, मन्डे, टयूसडे, वैडनैसडे, थर्सडे, फ्राई
डे, सटरडे एवॅ सन्डे हो चाहे हिन्दी के, सोमवार, मॅगलवार, बुधवार, वृहस्पतिवार, षुक्रवार,
षनिवार एवॅ रविवार हो अथवा फ्रंेच (लुन्दी, मारदी, मरक्रेदी, ज्वेदी, वान्द्रेदी, सामदी एवं
दिमाष) सभी मंे काल खण्ड को सात ग्रहांे (चन्द्र, मंगल, बुद्व, गुरू, षुक्र, षनि, एवं सूर्य)
के आधार पर सात दिवसांे मंे विभाजित किया गया हैं. सनातन धर्म में रष्मियों के स्वामी
सूर्य देवता के अलावा सात देवियांे (वैष्णांे देवी, चिंतापूर्णि, ज्वालाजी, कांगडाजी, चामुंडाजी,
नैनादेवी, एवं मनसादेवी) की पूजा माई साते (माघ महीने कीे सप्तमी) को की जाती है दुर्गा
माता के विचित्र रूप एवं नाम जगह-जगह भिन्न है, लेकिन स्वरूप एक ही है। चैत्र माह में
सील सप्तमी के रोज समस्त उत्तरी भारत में ठन्डा खाना खाया जाता है, हिन्दुओं के पवित्र
धार्मिक स्थलांे मंे चार धामों के साथ-साथ सात पुरियांे (हरिद्वार, काषी, उज्जैन, कांची,
द्वारका, मथुरा, अयोध्या) का भी महत्व है, धार्मिक ग्रन्थों मंे सात द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, कुष,
क्रौंच, षक, षाल्मली एवं पुष्कर) सात समुन्दर (लवण, इक्षु, दधि, क्षीर, मघु, मदिरा एवं
घृत) एवं सात ही महाऋृषियांे ( मरीचि, अंगीरा, अग्नि, पुलह, केतु, पौलस्त्य, एवं वषिष्ठ)
का वर्णन हैंमनुष्य
का षरीर सात धातुओं (रस, रक्त, मांस, मेदा (चर्बी) अस्थि, मज्जा,
षुक्र) से बना है और पुर्षाथर््ा के साथ साथ तकदीर भी साथ दे तांे मनुष्य सातों सुख
(निरोगी काया, संतोषजनक आय, मधुरभाषी पत्नि, सुयोग्य पुत्र, विद्या, उत्तम आवास एवं
अच्छा संग) भोग सकता हैं. स्वस्थ्य षरीर के लिए मनुष्य को सात क्रियाओं (षौच,
दंतधवन, स्नान, ध्यान, भोजन, भजन एवं षयन) की आवष्यकता है इसमंे भी दंातों की
रक्षा हेतु सात वृक्षों (नीम, बबूल, आम, बेल, गूलर, करंज एवं कैर) की टहनियां बहुत
उपयोगी हैं तथा दांतधवन के पष्चात षुद्वि हेतु प्रातःकाल सात प्रकार के स्नान (मन्त्रस्नान,
भौमस्नान, अग्नि स्नान, वायव्य स्नान, दिव्यस्नान, करूण स्नान एवं मानसिक स्नान) में से
कोई एक स्नान आवष्यक हैं. (प्रातःकाल स्नान के पष्चात मंगल दर्षन हेतु सात पदार्थो
(गोरोचन, चंदन, र्स्वण, शंख, मृदंग, दपर्ण एवं मणि) की आवष्यकता पड़ती हैं. हमारा एक
स्थूल षरीर है जिसमे सात चक्र अर्थात षक्ति केन्द्र मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर नाभि,
अनाहत यानि हृदय, विषुद्धि, आज्ञा तथा सहस्त्रार होते हेैमनुष्य
के लिए सात प्रकार की आंतरिक अषुद्वियां (ईर्षा, द्वेष, क्रोध, लोभ,
मोह, घृणा, एवं कुविचार) और सात प्रकार की बाह्य षुद्वियॉ (पूजा-पाठ, मन्त्र-जप,
दान-पुन्य, तीर्थयात्रा, ध्यानयोग एवं विद्यादान) होती है, उसको सदा सात (माता, पिता, गुरू,
ईष्वर, सूर्य, अग्नि एवं अतिथि) का अभिवादन करना चाहिए, सदाचार से मनुष्य को सात
विषिष्ट लाभ (जीवन मंे सुख, षांति, भय का नाष, विघ्न से रक्षा, ज्ञान, बल एवं विवेक)
प्राप्त होते हैं।
मुहावरा है कि गृहस्थी मंे सातांे ही चीजांे की आवष्यकता होती है इसलिए
गृहस्थाश्रम (विवाह) मंे प्रवेष के पहले सात फेरे खातंे है कहते हैं कि सात पद साथ 2
चलने से अनजान भी मित्र बन जाता है। फेरे मंे वर के साथ वधु भी सात कदम चलती है
उसे सप्तपदी कहते है, वह वर से सात वचन मांगती है
1. यज्ञ मंे सहयोग।
2. दान में सहमति।
3. धन की सुरक्षा करना।
4. आजीवन भरण-पोषण।
5. सम्पति खरीदने मंे सहमति।
6. समयानुकूल व्यवस्था।
7. सखी-सहेलियांे मंे अपमानित नहीं करना।
और निम्नलिखित सात ही वचन देती है।
1. भोजन व्यवस्था।
2. षीलसंचय, आहार तथा संयम।
3. धन का प्रबन्ध।
4. आत्मिक सुख।
5. पषुधन सम्पदा।
6. सभी ऋृतुआंे मंे उचित रहन-सहन।
7. सदैव पति का साथ।
दैनिक जीवन मे हम यह देखते है कि संगीत मंे स्वर सात प्रकार के होते हैं।
1. सा (षडज)
2. रे (ऋृषभ)
3. गा (गांधार)
4. मा (मध्यम)
5. प (पंचम)
6. धा (धैवत)
7. नि (निषद)
और कवि विहारी ने हिन्दी साहित्य मंे जो दोहंे लिखे हैं वह सतसैंया के दोहंे के
नाम से मषहूर है।
‘‘ सत सैयां के दोहरे, जो नाविक के तीर,
देखन मंे छोटे लगे, घाव करे गम्भीर.’
पूर्वी उत्तर प्रदेष तथा बिहार के आम आदमीं का खाना जौ का
सत्तू है और बच्चे बचपन मंे सात की ताली तथा सतौलियॉ का खेल खेलते हैं और बड़े
बूढ़ों की यह कहावत याद रखते हैं कि सात मामों का भानजा भूखा रहता है जब कि बहुत
मेहनत करने पर भी कुछ खास नहीं करने वाले के लिए कहा जाता है कि ‘‘सात धोबों का
एक पाव किया है’’ और भाषाओं की तरह पंजाबी मंे भी एक कहावत है।
माई पूत जण्यां सत्त, पर करम न दिया बटट.’
अर्थात एक मां के सात लड़के हुए लेकिन उनके भाग्य अलग-अलग हैं।
तुलसीदासजी ने सात खंडांे (बाल्यकांड, अयोध्याकांड, अरन्यकांड,
किष्किन्धाकांड, सुन्दरकांड, लंकाकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड) में रामचरित मानस की रचना करके
एक अनुपम ग्रंथ उपलब्ध कराया है जिसमंे जीवन की समस्याओं का समाधान है, राधास्वामी
सम्प्रदाय में नाम की महिमा बताते हुए आत्मा के सात खंडों की यात्रा कराते हैे. इस तरह
हम देखते है कि पूरे विष्व में और भारत में सात की बडी महिमा हैं
ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 98737063339

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