भारत देश विकास के पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहा है। यह बात हमें खुशी देती है। चाहें हम भौतिक प्रगति की बात करें या वैज्ञानिक प्रगति हर ओर हम बुलंदी के झंडे गाड़ रहे हैं। अर्थ के क्षेत्र में भी भारत ने स्वर्णिम सफलाताएं पायीं हैं। अगर इसी प्रगति को आधार मानें तो भारत जल्द ही विश्वगुरु की ख्याति पुन: प्राप्त करने की राह पर अग्रसरित है। हमारे के लिए यह गर्व का विषय होगा क्योंकि हम सदियों तक दासता की बेडिय़ों में जकड़े रहे। कितनी शहीदों की कुर्बानी के बाद हम आजाद हुए। लेकिन यह सोचनीय विषय है कि इस भौतिक प्रगति को आधार मानकर क्या हम अपनी मौलिकता नहीं खो रहे? इस दिखावे की प्रगति को ही सर्वस्व मान लेना हमारी संस्कृति में नहीं रहा। हमने हमेशा जि़न्दगी के उत्तम सोपानों को ही आधार माना है। यही हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि हम जीवन के आधार सूत्र देने वाले अपने वेदों, उपनिषदों जैसे ग्रंथों को भूलकर कामनी काया के फेर में फंसे हैं।
हमने ज्ञान के क्षेत्र में हमेशा हर देश को मात दी, फिर ऐसा क्या हुआ कि भौतिकता ज्ञान पर हावी हो गई? पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण ही हमारा आधार बन गया। उनसे अच्छाई ग्रहण करने के बजाय हमने उन्हें अपना लीडर मान लिया। ऐसा लगता कि यह कमाल उस शिक्षा पद्धति का है जो अंग्रेजी शासन दंश रूप में भारत को दे गया। जिसके चलते हमने भारतीयता को त्याग दिया और अपनी संस्कृति को भुलाकर हम उस पर गौरव करना भूल गए। स्थिति यह है कि कहीं भी जाइए इस गुलामियत के शिकार हमें खोजने नहीं पड़ेंगे।
इन्हीं सब कारणों के चलते आज जरूरत महसूस की जा रही है कि हमें भारतीय मूल्यों को पुन: स्थापित करना होगा। इसके लिए जरुरत है उस क्रांतिकारी कलम जो आजादी का सपना देखती है और उसमें कामयाबी पाती है। जरुरत है ऐसी लेखनी की जिसका सहारे कामयाबी के मायावी दलदल से निकलकर सच्चाई सफलता की ओर बढ़ें। यही क्रांतिकारी सोच दिखती है सलिल ज्ञवाली की पुस्तक ‘भारत क्या है’ में। इस पुस्तक में भारतीय सोच और व्यापकता से प्रेरित शीर्ष वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, और संतों के वाणी का संकलन है। जिसकी उपयोगिता को वर्णित करना कठिन है। भारत ज्ञान का वह तहखाना है जिसके अंदर छिपे रहस्यों को आज तक जाना नहीं जा सका है। हमारी ऋषि सत्ताओं ने इसी पर शोध किया और भारत की महानता को प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित किया। भारत में प्रकृति से ज्ञान की धाराएं बहती हैं, जो हमें सत्य लक्ष्य की ओर अग्रसरित करती हैं। ज्ञान का संबंध हमेशा से प्रकृति के साथ रहा है। इसलिए प्रकृति के माध्यम से इसे सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। ऋषियों ने इसीलिए प्रकृति को प्रयोगशाला मानकर तरह-तरह के प्रयोग किए हैं। जिससे उन्होंने प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलकर आत्म निर्वाण प्राप्त करने का मंत्र दिया।
भारत किसी देश या क्षेत्र का नाम नहीं है। भारत, मन की उस स्थिति को कहते हैं जहाँ मनुष्य का चित्त आत्मिक प्रकाश से भरा हो, और वह सतत्-संतुष्ट हो। इस अध्यात्मपरक ज्ञान के अतिरिक्त हमने विज्ञान के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व खोजें की। हमने जीरो दिया, आयुर्वेद का ज्ञान दिया। भारत ने समस्त विश्व को जो नेमतें दीं, उन्हें अगुलियों पर नहीं गिना जा सकता।
आज के इस युग में भारतवासियों को भारत के बारे में बताना सच में चुनौती पूर्ण कार्य था। सलिल जी ने इस चुनौती को स्वीकार किया। अपने शोध, कठिन परिश्रम और लगन की बदौलत एक ऐसी पुस्तक हमारे समक्ष प्रस्तुत जो हमें भारतीय होने का गर्व करा सके और हमें बता सके कि भारत क्या है? यह पुस्तक विश्वस्तर पर ख्याति पा चुकी है। इस अनुपम पुस्तक में सलिल जी ने पाश्चात्य विचारकों, वैज्ञानिकों के साथ ही भारतीय विचारकों के कथन का हवाला देते हुए इस बात की पुष्टि की है कि जिस सनातन संस्कृति के ज्ञान को हम श्रद्धा के साथ आत्मसात करने में हिचकते है वही ज्ञान पाश्चात्य जगत के महान वैज्ञानिकों, लेखकों और इतिहासकारों की नज़रों में अमूल्य और अमृत के सामान है. कितने आश्चर्य की बात है कि आज हम उसी ज्ञान को भुला बैठे हैं।
लेखक की अद्भुत कृति में आइन्स्टीन, नोबेल से सम्मानित अमेरिकन कवि और दार्शनिक टी एस इलिएट, दार्शनिक एलन वाट्स, अमेरिकन लेखक मार्क ट्वेन, प्रसिद्ध विचारक एमर्सन, फें्रच दार्शनिक वोल्टायर, नोबेल से सम्मानित फें्रच लेखक रोमा रोला, ऑक्सफोर्ड के प्रो$फेसर पाल रोबट्र्स, भौतिक शास्त्र में नोबेल से सम्मानित ब्रायन डैविड जोसेफसन, अमेरिकन दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो, एनी बेसंट, महान मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग के साथ भारतीय विचारकों जैसे अब्दुल कलाम के विचारों को आप पढ़ और समझ सकते हैं। इतना तो स्पष्ट है किताब को पढने के बाद जिन प्राचीन ऋषि मुनियों की संस्कृति से दूरी बनाये रखने को ही हम आधुनिकता का परिचायक मान बैठे हों उस के बारे में हमारी धारणा बदले।
इस पुस्तक को पढऩे पर हम पाएंगे कि आइन्स्टीन कह रहे हैं कि हम भारतीयों के ऋणी हैं जिन्होंने हमको गणना करना सिखाया जिसके अभाव में महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोजें संभव नहीं थी। वर्नर हाइजेनबर्ग प्रसिद्ध जर्मन वैज्ञानिक जो क्वांटम सिद्धांत की उत्पत्ति से जुड़े हैं का यह कहना है कि भारतीय दर्शन से जुड़े सिद्धांतो से परिचित होने के बाद मुझे क्वांटम सिद्धांत से जुड़े तमाम पहलु जो पहले एक अबूझ पहेली की तरह थे अब काफी हद तक सुलझे नजऱ आ रहे है. इन पक्तियों को पढऩे के बाद आपको लग रहा होगा कि हम कहां से कहां जा रहे हैं। इस किताब के कुछ और अंश देख लेते हैं
ग्र्रीस की रानी फ्रेडरिका जो कि एडवान्स्ड भौतिक शास्त्र से जुडी रिसर्च स्कालर थी का कहना है कि एडवान्स्ड भौतिकी से जुडऩे के बाद ही आध्यात्मिक खोज की तरफ मेरा रुझान हुआ. इसका परिणाम ये हुआ की श्री आदि शंकराचार्य के अद्वैतवाद या परमाद्वैत रुपी दर्शन को जीवन और विज्ञान की अभिव्यक्ति मान ली अपने जीवन में . प्रसिद्ध जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेन हॉवर का यह कहना है कि सम्पूर्ण भू-मण्डल पर मूल उपनिषदों के समान इतना अधिक फलोत्पादक और उच्च भावोद्दीपक ग्रन्थ कहीं नहीं हैं। इन्होंने मुझे जीवन में शान्ति प्रदान की है और मरते समय भी यह मुझे शान्ति प्रदान करें।
प्रसिद्ध जर्मन लेखक फ्रेडरिक श्लेगल (1772-1829) ने संस्कृत और भारतीय ज्ञान के बारे में श्रद्धा प्रकट करते हुए ये कहा है कि संस्कृत भाषा में निहित भाषाई परिपक्वता और दार्शनिक शुद्धता के कारण ये ग्रीक भाषा से कहीं बेहतर है। यही नहीं भारत समस्त ज्ञान की उदयस्थली है। नैतिक, राजनैतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भारत अन्य सभी से श्रेष्ठ है और इसके मुकाबले ग्रीक सभ्यता बहुत फीकी है.
इसके आगे के पन्नो में लेखक ने अपने लेखों में इन्ही सब महान पुरुषों के विचारों की अपने तरह से व्याख्या की है जिसमें आज के नैतिक पतन पर गहरा क्षोभ प्रकट किया गया. कुल मिलाकर हम लेखक के इस पवित्र प्रयास की सराहना करते हैं। आज की विषम परिस्थितयो में भी उन्होंने भारतीय संस्कृति के गौरव को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। उम्मीद है कि ये पुस्तक एक रौशनी की किरण बनेगी और हम सब एक सकारात्मक पथ पर अग्रसरित होंगे।
आदित्य शुक्ला, लेक्चरर, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार
प्रेषक- प्रियंका शर्मा
लोस एंजिल्स, केलिफोर्निया
Sir, not even 1% Indians know about these profound truths about Mother India, why?
जवाब देंहटाएंI am just putting my efforts to create awareness. And ur cooperation is highly appreciated.