रविवार, 2 अक्टूबर 2011
नारी होने का मूल्य
नन्हे
हाथों में नए कंगन,
कानों में झुमके
गले में मोतियों की
माला पहने
नयी चुनडी ओढ़े
उछलते कूदते
नन्ही बालिका इतरा
रही थी
घर आये मेहमानों को
बड़े गर्व से अपने नए
वस्त्राभूषण दिखा
रही थी
उसे पता नहीं था
आज उसके बचपन का
अंतिम दिन था
कल उसका विवाह था
उसके कौमार्य को
उसके पिता ने
चंद रुपयों के लिए
एक अधेड़ शराबी को
बेच दिया था
अब जीवन भर उसे
रोना था
गरीबी का नतीजा
सहना था
चूल्हे,चौके की आग में
निरंतर जलना था
घुट घुट कर मरना था
नारी होने का मूल्य
चुकाना था
इंतज़ार
दरख्तों के लम्बे
सायों के बीच
शाम के धुंधलके में
वो आज फिर उसके
इंतज़ार में खडी थी
आँखें रोज़ की तरह
सड़क पर गढ़ाए बेचैनी में
ऊंगलियों से खेल रही थी
वक़्त गुजरता जा रहा था
शाम गहराने लगी
चेहरे पर चिंता की लकीरें
बढ़ती जा रही थी
उसका पता ना था
आँखों से आँसू निकलते
उस से पहले ही
दूर एक धुंधली परछायी
नज़र आने लगीउम्मीद में
कदम खुद-ब-खुद
उस तरफ बढ़ चले
नज़दीक पहुँचने पर
उसकी
सूरत साफ़ दिखने लगी
आँखों से
खुशी के आँसू बहने लगे
वो खून से लथपथ था
पास आता,
गले मिलता कुछ कहता
उस से पहले ही
ज़मीन पर ढेर हो गया
उसका इंतज़ार
कभी ख़त्म ना हुआ
आज भी
शाम के धुंधलके में
दरख्तों के
लम्बे सायों के बीच
वो ऊंगलियों से
खेलते खडी दिखती है
चेहरे पर उस से मिलने की
उम्मीद अब भी
साफ़ झलकती है
हसरतें
मन में संजोयी
तुम सामने बैठी हो
मैं तुम्हें देखता रहूँ
खामोशी से
तुम्हारी मीठी बातें
सुनता रहूँ
तुम कानों में मिश्री
घोलती रहो
मुझे
मदहोश करती रहो
मैं नशे में
निरंतर झूमता रहूँ
कब रात बीती ,
कब सुबह हुयी
हवा भी ना लगे
उम्र गुजर जाए
वक़्त दुनिया से
रुखसत होने का
आ जाए
पता भी ना चले
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:- rajtelav@gmail.com www.nirantarajmer.com www.nirantarkahraha.blogspot.com
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