बुधवार, 23 नवंबर 2011

तू ने हीरा जनम गवायों रे !


मेरे लाडलें को मुझसे सख्त षिकायत हैं. उसका कहना है कि मेरे पिताश्री की वजह
से उसका स्टैन्डर्ड डाउन हुआ हैं. सांयकालीन क्लब की मित्रमंडली तथा ‘जिम’ में उसकी
हंसाई होती हैं. उसकी यह षिकायत इस वजह से नही है कि ‘वह अपने माउथ में चांदंदी
का चम्मच लेकेकर पैदैदा नही हुअुआ’ याकि मैंने उसे किसी इन्टरनेषनल कान्वेंट स्कूल में नही
पढाया जहां उसे ‘जैकैक एन्ड जिल, वैन्ैन्ट अपटू हिल’ तथा ‘बा बा ब्लैकैक षीप, हैवैव यू ऐनेनी
वूलूल’ जैसी कविताएं रटाई जाती. उसका गिला तो कुछ और ही है. उसका ‘फन्डा’ यह है
कि हालांकि मेरे पिताश्री देष की आजादी के पूर्व की पैदाइष है फिर भी उनका नाम उन
स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों की लिस्ट में नही है जो सन 1947 के बाद जंम लेकर भी
सैनानियों की पेंषन धडल्ले से उठा रहे हैं. इसको लेकर उसे बडी ग्लानि होती हैं. इन्ही
तथाकथित सैनानियों में से साठ-सत्तर की उम्र के कई ‘योद्धा’ तो भगतसिंह के साथ जेल
में रहने की कसमें खाते फिर रहे है ओैर जहां तहां उस समय के किस्सें कहानियां लोगों को
सुनाते रहते हेै, गोया हूबहू वह घटना उनके सामने ही हुई हो जबकि हकीकत में भगतसिंह
की षहादत को ही 80 वर्ष से उपर हो चुके हैंइतना
ही नही मेरें पुत्रका उलाहना यह भी है कि उसके दोस्तों में उसकी नाक तब
नीची होजाती है जब उनको पता लगता है कि आज तक मेरे घर का टेलीफोन कभी ‘टेपेप’
नही हुआ. उसका कहना है कि इस बात पर उसकी मम्मी को भी किटी पार्टी में कई बार
नीचा देखना पडा हैं. उसे कितने बहानें बनाने पडे यह तो वही जानती हैं. जब तक
टेलीफोन टेप नाहो सभा सोसायटी में रूतबा नही बढतालडकें
का कहना है कि काष ! कभी हमारें यहां सीबीआई या इन्कमटैक्स का छापा
भी पडा होता तो अगले रोज देष के प्रमुख अखबारों में सुर्खियों में पिताजी का नाम होता
औेर उनकी प्रसिद्धि में चार चांद लग जाते और मुझे-यानि मेरे लडकें को- लोग
सभा-सोसाइटी, कैफे आदि में कनखियों से देखते हुए कहते ‘यह उन्ही का लडका है जिनके
यहां सीबीआई का छापा पडा था. परन्तु हाय ! मेरी ऐसी किस्मत कहां ? किसी ‘स्टिंगंग
ऑपॅपरेष्ेषन’ अथवा घोटालें में भी पिताजी का नाम नही हैंमेरा
वत्स अपने मित्रों से अफसोस जाहिर करते हुए कहता फिरता हेै कि मैं जाने
किस मनहूस घडी में पैदा हुआ हूं. घुडदौडवालें, बिग बिजनैसमेन, नेताओं इत्यादि कइयों के
स्विस बैंकों में खातें खुले हुए हैं या वह कोई न कोई घोटाला करके तिहाड जेल जाने का
जुगााड बैठा लेते है लेकिन एक मेरे ‘डैड’ है जो मुझे षर्मिन्दा किए दे रहे है, ना तो स्विस
बैंक में उनका खाता, ना तिहाड की रिहाइष और ना ही दाउद भाई से कोई लिंक, अरे !
बडे राजन से नही तो कम से कम छोटे राजन से तो कोई रिष्ता-नाता होता ताकि उनका
भी रूआब पडता और मेरा भीसुपुत्र
आज तक ये सभी गुनगुन परोक्ष में ही करता रहा हेै लेकिन इस बार वह घर
में अपनी मॉम के सामने फट पडा. उसके हाथ में ताजा अखबार था जिसमें षहर में
‘ऑपरेषन पिंक’ के तहत अतिक्रमण के विषय में समाचार छपे थे और अतिक्रमण करनेवालें
षहर के नामी-गिरामी लोगों के नाम थे. पुत्र का गिला था कि मेैं आज तक सब ज्यादतियां
सह गया ना तो पापा का नाम मुंबई की आदर्ष सोसाइटी घोटालें में आया, न कॉमनवैल्थ
गडबडियों में, नाही टूजी स्पैक्ट्म स्कैन्डल में उनका नाम न उडीसा में नेताओं द्वारा प्लाट
हथियाने में उनका कोई हाथ और ना ही इन्दौर भोपाल में हाउसिंगबोर्ड के फलैट हथियाने में
उनका हाथ हैं. यहां तककि उन्होंने इतनी हिम्मत भी नही दिखाई कि कोई सरकारी अथवा
किसी धार्मिक ट्स्ट की भूमि का ही अतिक्रमण कर लेते. अब मैं अपने मित्रों को कैसे मुंह
दिखाउंगा ? कैसे उनके बीच उठ-बैठ करूंगा ?
उसका यह भी कहना था कि पिताश्री ने कुछ तो सोचा होता. घर में षादी विवाह
होने है. समाज में रूतबा बनाना हैं. लडके का विचार है कि डैड अब भी अपनी आदतों में
सुधार करले तो रही सही उनकी और हमारी जिन्दगी सुधर जायेगी. चुप-चाप किसी इस या
उस राजनीतिक दल में घुसपैठ करके या तो भूमाफिया से जुड जाय या स्मगलिंग का धन्धा
पकडले या कोई घोटाला करके तिहाड हो आए, और कुछ नही तो जुगाड बैठाकर सरकारी
खर्चखातें पर अपना बुत ही खडा करवाले तब जाकर कोई बात बनेगी वरना सब मुझे ही
कहेंगे कि
‘तू ने हीरा जनम गवायों रे ,
मानष, बिन तिहाड जायके’
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333

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