शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

फूल तो बहुत देखे अब तक



फूल तो बहुत देखे
अब तक
पर तुम्हारी सी
महक नहीं थी उनमें
साज़ तो बहुत सुने
तुम्हारी आवाज़ सी
खनक नहीं थी उनमें
चेहरे भी बहुत देखे
पर तुम्हारी सी
खूबसूरती नहीं थी उनमें
दिल बहुतों से लगाया
पर मन भरा नहीं उनसे
निरंतर भटकता रहा
पर मुकाम मिला नहीं
अब तक
जब से तुम्हें देखा
मंजिल
नज़र आ गयी मुझे
अब तुम्हारे बिना
सुकून
मिलेगा नहीं मुझे

अजीब हालात हैं

अजीब हालात हैं
सामने लोग
वाह वाह करते
पीठ पीछे हाय हाय
करते
दिल में नफरत का
अम्बार
लगा कर रखते
निरंतर
चेहरे को मुस्कारहट
से सजा कर रखते
मन में रोते रहते
ज़िन्दगी बर्बाद करते
रहते

नजाकत

उनकी
नजाकत का
अंदाज़ तो देखिए
उन्होंने
एक तितली को
छू लिया
हाथ में ज़ख्म
हो गया
निरंतर
मुस्काराता चेहरा
गम में डूब गया

दिल कभी ना मिलेंगे

मैं आप नहीं हूँ
आप मैं नहीं हैं
मैं
मैं रहना चाहता हूँ
आप
आप रहना चाहते हैं
यही तो समस्या है
जब तक
"मैं" आप नहीं
बनूंगा
आप "मैं" नहीं
बनेंगे
दिल कभी ना मिलेंगे
समस्या
समस्या ही रहेगी

वक़्त इतना

बेरहम क्यूं हो गया
क्यूं ठहर गया
खुदा जाने
दुआ भी करता हूँ ,
इबादत भी करता हूँ
फिर क्यों नहीं सुनता
खुदा जाने
कब तक करेगा हैरान
मर मर कर जिलाएगा
खुदा जाने
कब तक रुलाएगा
कब चेहरे पर मुस्कान
लाएगा
खुदा जाने
निरंतर सब्र रख रहा हूँ
सब्र का सिला देगा या नहीं
खुदा जाने
कब तक इम्तहान लेगा
यकीं उस पर बरकरार रखेगा
खुदा जाने
कब तक मेरी नियत ना
समझेगा
मुझे ना पहचानेगा
पहचानेगा ज़रूर एक दिन
कब पहचानेगा ये भी
खुदा जाने


कभी हम खुद को ही बहला लिया करते

कभी हम खुद को ही
बहला लिया करते
शीशे में
अपना अक्स देख कर
खूब मुस्कराया करते
अपने
खूबसूरत चेहरे पर
इतराया करते
जो खुले आम नहीं
कह पाते
निरंतर अकेले में
कह लिया करते
खुद की नादानियों पर
खुद को
डांट दिया करते
चाहने वालों को
ख़्वाबों में देख लिया
करते
दिल के अरमान
ख़त में लिख कर
खुद ही पढ़ लिया करते
कभी हम खुद को ही
बहला लिया करते

गर तूँ बेदिल होता

निरंतर
तेरा ये हाल
ना होता
गर तूँ बेदिल होता
तेरा दिल किसी को
देख कर ना धड़कता
ना किसी पर जाँ
निसार करता
ना बेकरार रहता
ना यादों में खोता
ना रातों को जागता
ना दिल से दिल
लगाता
ना बार बार टूटता
बिना मोहब्बत करे
जीता रहता
ज़िन्दगी का मकसद
भूल जाता
खुशकिस्मत समझ
खुद को
तूँ मोहब्बत की कीमत
समझता

मेरी कुंठा

मेरी कुंठा
बदहजमी करती
उल्टी सी
बाहर निकलने को
मचलती रहती
तड़पती रहती
कलम के जरिये
कह सुन कर
प्रेम से,क्रोध से
सोचे,बिना सोचे
मेरी भी कोशिश
निरंतर चलती रहती
पर क्या करूँ ?
बामुश्किल
एक निकलती
दूसरी घर बनाती
ख़त्म होने का नाम
ना लेती
मेरे व्यक्तित्व को
तार तार करती
मुझे उलझाए
रखती
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
Mobile:09352007181

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