बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

केसर की बर्फी

दिवाली के दिनों की बात थी. यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई
कि षहर के पडाव इलाके में केषर की बर्फी पचास रू. किलो मिल रही है, जो
कोई सुनता आष्चर्य प्रकट करता और बरबस उसके मुंह से निकलता अरे !
केषर की बर्फी, वह भी पचास रू. किलो ?
कई लोग एकाएक इस बात को मानने के लिए तैयार ही नही हुए. उनका
कहना था कि ऐसा कैसे हो सकता है ?
कुछ लोग जो हर बात में बाल की खाल निकालते रहते थे उनका कहना
था कि राजनीति की तरह मिठाइयों के भाव इतने नीचे नही गिर सकते कि
केषर की बर्फी पचास रू. किलो बिक जायें. उनका यह भी कहना था कि जब
बाजार में षक्कर ही चालीस-पचास के आसपास मंडरा रही है तो केषर की
बर्फी पचास कैसे मिल सकती है ? कुछ लोग इसे राजनीतिक रंग देने लगेउनका
कहना था कि यह सब वोटों की राजनीति है. सरकार लोगों की
सदभावना प्राप्त करने की कोषिष कर रही है, तो कुछ लोगों का कहना था कि
जब वह घाटा खाकर रेल और बसें चला सकती है, नुकसान उठाकर दो रू.
किलो गेंहू ओैर तीन रू. किलो चावल बेच सकती है तो दिवाली के पवित्र
त्यौहार पर लागों को पचास रू. किलो केसर की बर्फी भी बेच सकती है,
‘लोकप्रिय’ सरकार के लिए सब कुछ सम्भव हैंपहले
यह चर्चा पान एवं नाई की दुकानों, चाय की थडियों, होटलों तथा
विभिन्न हथाइयों पर हुई फिर धीरे धीरे सारे षहर में फैल गई. जो भी सुनता
पहले तो अविष्वास प्रकट करता लेकिन फिर मन ही मन ललचाता कि कही यह
खबर सही ही ना हो ? जल्दी से घर चलकर मुन्ने की मां को बताते है देखें वह
क्या आर्डर देती है क्योंकि बर्फी लाने या ना लाने का फाईनल तो उसे ही करना
हैअब
घर घर में चर्चा होने लगी. षर्माजी की पत्नि ने पडौस की मिसेज
वर्मा को अपनी उॅची आवाज के बल पर खिडकी से ही बेतार का संदेष भेजा ‘
अरी ! सुनती हो, पडाव में केषर की बर्फी पचास रू. किलो मिल रही बताईहमारे
‘यह’ अभी अभी दिलीप नाई की दुकान से सुनकर आए है. तुम भी चाहो
तो वर्माजी को इनके साथ भेज दो, दोनो दो दो किलो ले आएंगे. कहां पडी है
इतनी सस्ती केषर की बर्फी ?
मिसेज वर्मा घर के आंगन में दिवाली के मांडनें रंगोली मांड रही थी
अचकचाकर खिडकी पर आगई औेर आष्चर्य से मिसेज वर्मा की बात सुनने
लगी. बात खत्म होते ही अखबार पढ रहे वर्माजी का अखबार छीनते हुए उन्हें
थैला पकडाकर कहा कि षर्माजी के साथ पडाव जाकर दो किलो केषर की बर्फी
ले आओ, पचास रू. किलो मिल रही हैवर्माजी
अपनी पत्नि की बात सुनकर अवाक रह गए. उन्होने पत्नि को
घूरते हुए कहा कि केषर की बर्फी और पचास रू. किलो ? कही तुम्हारा दिमाग
तो खराब नही हो गया है ? तब मिसेज वर्मा ने उन्हे बताया कि षर्माजी नाई
की दुकान पर बाल कटवाने गए थे वही से सुनकर आए है. अब आप जल्दी
करें कही ऐसा ना हो कि बर्फी खत्म हो जाए.
हर घर में यही चर्चा थी. सेल्स टैक्स ऑफीसर प्यारे मोहन की पत्नि ने
भी अपने पति को ललकारा कि आप घर बैठे बैठे क्या कर रहे है ? पडाव में
केषर की बर्फी पचास रू. किलो मिल रही है औेर आप घर में बैठे है, जाकर
दो एक किलो बर्फी तो ले आओ.
प्यारे मोहनजी ने अपनी असमर्थता जताते हुए कहा कि अपनी सरकारी
गाडी का ड्ाईवर अभीतक आया नही है. आज त्यौहार है षायद देर से आए
और अपनी मारूती में छः महीनें से पेट्ोल नही डलवाया है. पैदल चलते मुझे
षर्म आती हेै मैं बाजार कैसे जाउं ?
उनका यह भी कहना था कि जब हमें दुकानदार मिठाई एवं मेवों के इतने
गिफट दे गए है तो अब और मिठाई की क्या आवष्यकता है ? परन्तु साहब की
पत्नि का कहना था कि जब केसर की बर्फी इतनी सस्ती मिल रही है तो ऐसा
मौका हाथ से क्यों जाने दिया जाय ? जब प्यारे मोहनजी ने उसे समझाया कि
बर्फी मिल नही रही हेै बल्कि बिक रही है औेर उसके लिए पैसे देने पडेंगे तब
कही जाकर उनकी पत्नि ने केषर की बर्फी खरीदने का ईरादा बदलाइस
तरह की हलचल पूरे षहर में थी और कई लोग हाथों में थैला
लटकाये स्कूटर, लूना साइकिल इत्यादि पर पडाव की तरफ भागे चले जा रहे थेसभी
की जुबान पर एक ही बात थी अरे ! इतनी सस्ती बर्फी !
पडाव पहुंचने पर लोगों ने देखा कि चारों तरफ भीड थी और यातायात
व्यवस्था का नामोनिषान तक नही था. चिल्लपों भी मची हुई थी और आस पास
के नाले से गंदगी भी सडक पर आगई थी जिस पर पहले से ही बडे बडे गढढें
थे. इसी सडक के किनारे कई ठेलें खोमचें वाले खडे थे जो कि दिवाली के
अवसर पर अपना अपना सामान बेच रहे थे. उन्ही के बीच एक ठेले पर
षक्कर की बनी रंगीन बर्फियांे का केषर बाई का ठेला भी था जिस पर एक
गत्तें के बोर्ड पर लिखा था ‘बर्फी पचास रू. किलो-मालिक केसरबाई’.
पास जाने पर पता लगा कि वहां पहुंचे ग्राहक षरमा षरमी में उसके ठेले
से बर्फी खरीद रहे थे जबकि पडौस के ठेले पर भुगडामल उसी तरह की बर्फी
के थाल पर बैठी मक्खियों को बार बार उडा रहा था, उसे कोई पूछने वाला तक
न था
षिवषंकर गोयल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें