वैसे तो भूतपूर्वकाल में राजनीतिक जागरूकता में यह नगर कभी भी किसी से पीछे नही रहा, लेकिन कालांतर में दोनों ही प्रमुख दलों के चुने हुए नेताओं की निष्क्रियता की वजह से यह क्षेत्र पिछड़ गया। पहले प्रान्त की राजधानी का दर्जा गया, कोटा-अजमेर, अजमेर-मेड़ता रेलवे की योजनाएं समय से काफी पिछड़ गईं, एचएमटी एवं रेलवे के कारखानों का महत्व कम हुआ और अब एक-एक करके आईआईटी, ऐम्स और आईआईएम हाथ से निकल गए। हालांकि चुनाव आयोग ने इस नगर को फिरकी की तरह पूर्व-पश्चिम से उत्तर-दक्षिण घुमा दिया, लेकिन राजनीतिज्ञों की मानसिकता सिन्धी-मारवाड़ी, गूर्जर-रावत अथवा बनिया-ब्राह्मण से आगे नही बढ पाई है। नतीजतन लोग सीकर, उदयपुर से ही नहीं दिल्ली तक से आकर चुनाव लड़ कर चले जाते हैं। इन सब से छला जाकर भी यह नगर चुनाव के दिनों में भी अपनी विनोदप्रियता से बाज नही आता।
सन् 1947 से लेकर आज तक अधिकांश समय राज करने वाले दल, जिसे यह गलतफहमी है कि सिर्फ उसी ने देश को आजादी दिलाई है, ने पहले बैलों की जोड़ी फिर गाय बछड़े एवं फिर हाथ के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडा। इस दल के अधिकांश नेता चुनाव के दिनों में भी आम जनता की समस्याओं को चुटकी बजाते ही किस तरह सुलझाते हैं, इसका एक वाकया देखिए-
एक बार नगर की कच्ची बस्ती वालों ने बड़े उत्साह और उमंग से इस दल के नेताओं को अपनी बस्ती में आमंत्रित किया। वहां लोगों ने उम्मीदवार नेताजी का स्वागत करते हुए उन्हें अपने आवास की समस्या बताई। नेताजी ने अपने भाषण में कहा कि समस्या का हल निकालने के लिए आपको उसकी बुनियाद में जाना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि रहने की समस्या का सबसे अच्छा हल है कि हम ईंट-पत्थर के घरों की चिंता छोड़ कर परस्पर एक-दूसरे के दिलों में रहें, इससे आपस में प्यार बढ़ेगा, भाईचारा बढ़ेगा आदि आदि। इस बात पर आमसभा में आगे बैठे हुए बच्चों ने खूब देर तक तालियां बजाईं। इसी दौरान कुछ छुटभैया नेताओं ने भारतमाता की जय और कुछ ने जवाहरलाल नेहरू की जय के नारे भी लगवाये।
चुनाव के दिनों में ही एक बार इसी पार्टी के एक नेताजी सुबह पहले ही जयपुर से चलकर अजमेर पधारे। औपचारिकतावष मेजबान ने उन्हें चाय-पानी के लिए आंमत्रित करते हुए राजस्थानी में कहा, 'नाश्तो करल्योÓ तो मेहमान ने भी बेबाक ढंग़ से जवाब देते हुए उत्तर दिया 'जयपुर में करके आया हूं।Ó इस संवाद को जब वहां खड़े कार्यकर्ताओं ने सुना तो कुछ मुस्कराए, जबकि कुछ अचंभित हुए क्योंकि पिछली रात ही जयपुर में उनके दल के मुख्यालय में टिकट बंटवारे को लेकर मारपीट तक हो गई थी।
आम चुनाव के दिनों की ही बात है। हिन्दू संस्कृति का अकेले दम भरने वाली पार्टी के पंजाब के एक नेता की नया बाजार, मुखर्जी चौक, पर पब्लिक मिटिंग थी। उन्होंने अपने भाषण में शासक दल की नीतियों की मुखालफत करते हुए भाखड़ा नंगल योजना का विरोध किया। उन्होंने लोगों को बताया कि जिस तरह दूध का दही बना कर उसमें से मक्खन निकाल लिया जाता है वैसे ही बांध का पानी जब नंगल बिजलीघर की मशीनों, टरबाइन से निकलेगा तो बिजली बनाने में उसका सारा सत्व सोख लिया जायगा और इसके बाद जो बचा हुआ पानी बाहर निकलेगा वह छाछ के समान होगा, जो किसानों के खेतों को नुकसान पहुंचायेगा। इस रहस्योद्घाटन पर सभा में आए लोगों ने उनको खूब सराहा और उनके ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
एक बार एक बड़े नेताजी का दिल्ली से आना हुआ। वह धर्म-कर्म में ज्यादा ही विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। जब वह स्टेशन से मेजबान के घर आए तो शिष्टाचारवश अपनी चप्पलें घर के बाहर ही खोलने का उपक्रम करते हुए उन्होंने मेजबान से पूछा 'क्या जूते-चप्पल चलेंगे?Ó तो मेजबान ने उन्हें जवाब दिया कि 'अभी नही, शाम को जब मीटिंग होगी तब चलेंगे।Ó
तीसरा चुनाव-सन् 1962-आते आते नीले ध्वज पर तारे को लेकर एक और पार्टी का उदय हुआ था। इस पार्टी में अधिकांशत: राजा-महाराजा होने के कारण सब करीब-करीब स्वतंत्र ही थे। इन्हें अपने किले, महल, राजपाट एवं प्रिवीपर्स को बनाये रखने की स्वतंत्रता चाहिए थी। उन्हें जब लगा कि उनके हितों पर आंच आने वाली है तो वे पार्टी बना कर आ गए और जनता को नारा दिया कि लोकतंत्र खतरे में है।
चुनाव के दिनों की ही बात है। मदारगेट पर आयोजित शासकदल के एक नेताजी विरोधी दल पर प्रहार कर रहे थे। उन्होंने बताया कि यह पार्टी हर चुनाव में अपना मुद्दा बदल देती है। कभी वह हिन्दी भाषा का मुद्दा पकड़ती है, कभी गाय का। इस विषय में उन्होंने एक पैरोडी की निम्न लाइनें भी सुनाईं-
'जब भी चुनाव आता है,
गाय इनकी माता है,
वरना सालभर, गलियों में,
कौन क्या खाता है,
खाने दो, इनका क्या जाता है ?
गाय इनकी माता है !Ó
आगे उन्होंने बताया कि जहां तक हमारा सवाल है, हम कभी अपने सिद्धांत नही बदलते। हमने अपने घोषणापत्र में वर्षों पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया था, हम आज भी उस पर कायम है और आगे भी कायम रहेंगे।
प्रंात के मुख्य 2 दलों के नेता चुनाव के दिनों में कई इलाकों का दौरा करते रहते थे। एक बार शासक दल के एक नेताजी जीप में सवार होकर बीहड़ से निकल रहे थे। रास्ते में डाकुओं के एक दल ने उन्हें रोक लिया, परन्तु नेताजी ने डाकुओं द्वारा 'हैन्ड्स अपÓ कहते ही तुरन्त जवाब दिया और कहा 'स्टाफÓ, जिसका तात्पर्य था कि हम भी आपके ही आदमी हैं। यह सुनते ही डाकुओं ने उन्हें जाने दिया।
'कौन बनेगा करोड़पतिÓ के नवीनतम कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन एक प्रश्न पूछते हैं कि निम्नलिखित चारों में क्या समानता है? 1.जयललिता, 2. मायावती, 3. ममता बनर्जी एवं 4.नवीन पटनायक, तो प्रतियोगी ने सही उत्तर देते हुए कहा कि इनमें से किसी ने भी शादी नहीं की है। जैसे कि आप जानते हैं कि हमारे देश की संस्कृति में शादी न करने वाली महिला के नाम के आगे 'सुश्रीÓ लगाया जाता है। ऐसे में एक बार एक राजनीतिक पार्टी की एक नेता अजमेर पधारने वाली थीं। उनके स्वागत हेतु नगरा में आमसभा का आयोजन किया गया था। मंच पर उद्घोषक बार-बार जो घोषणा कर रहा था, वह आप भी सुनिए- 'सुसरी....जी पधारने ही वाली हैं। कृपया आप अपना स्थान ग्रहण कीजिये।
ऐसा नहीं कि सिर्फ दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार ही चुनाव में खड़े होते रहे हैं। एक बार एक निर्दलीय भी खड़ा हुआ, जिसका चुनावचिन्ह साईकिल था। एक रोज वह अपने समर्थकों के साथ अपना चुनाव प्रचार करता करता एक घर में गया। वहा बड़े से आंगन में एक वृद्धा मां बैठी कुछ काम कर रही थी। उम्मीदवार ने उसे कहा अम्मा, साईकिल का ख्याल रखना। इस पर वृद्धा बोली-बेटा ! कहां खडी की है ? ताला लगाा कर यहां अंदर आंगन में खड़ी कर दे, बाहर से तो कोई ले जायेगा। इस बात पर सभी मुस्कराने लगे और उम्मीदवार झेंप गया।
एक बार जब ब्यावर से प्रसिद्ध क्रंतिकारी नेता स्वामी कुमारानंदजी कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने तो प्रदेष के झुंझुनूं निवासी राजस्थानी के प्रसिद्ध कवि विमलेशजी ने एक कवि सम्मेलन में 'भाग्य कम्युनिस्टां का जाग्या, बीनणी वोट देबां चालीÓ सुना कर श्रोताओं को लोट-पोट कर दिया था।
चुनाव की तैयारियां दोनों तरफ से चलती रहती हैं। चुनाव लडऩे वालों की भी और चुनाव लड़ाने वालों यानि चुनाव आयोग की भी। अब आप दूसरी तरफ की दास्तान सुनिये। एक बार एक सरकारी अधिकारी के नाम जोनल मैजिस्ट्ेट नियुक्त होने के दो-दो ऑर्डर आ गए। एक एम.एल. शर्मा के नाम से और दूसरा मांगीलाल शर्मा के नाम से, और मजे की बात यह कि दोनों में ही उसे वैधानिक चेतावनी दी गई थी कि अगर वह चुनावी डयूटी पर नहीं आया तो उसके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जायेगी।
बहुधा सिविल अधिकारियों को कानूनी एवं पुलिसिया शब्दावली इत्यादि का पूरा ज्ञान नहीं होता। एक बार की बात है कि एक जॉनल मैजिस्ट्ेट बना ऐसा अधिकारी अपने साथ के पुलिस दल को अस्थायी मुख्यालय पर ठहरा कर चुनाव बूथ के दौरे पर था कि उसे डिप्टी कलेक्टर साहब मिल गए। उन्होंने उसे रोक कर पूछा कि जाब्ता कहां है? उस अधिकारी ने जवाब दिया कि उसने अभी तक किसी का कुछ भी जब्त नही किया है। यह सुन कर डिप्टी कलेक्टर साहब को गुस्सा तो आया लेकिन फिर वह मुस्कराते हुए बोले कि जाब्ता यानि आपके साथ के पुलिस दल के बारे में पूछ रहा हूं, तब कहीं जाकर उसने उन्हें बताया।
कई बार अति उत्साह में बड़े अधिकारी ऐसी बात कर बैठते हैं कि स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। एक बार की बात है कि एक जोनल मैजिस्ट्ेट पॉलिंग पार्टियों के रवानगी स्थल, पटेल मैदान, अजमेर से उन्हें रवाना कराके उनके गंतव्य स्थान पुष्कर तक छोड़ कर मुख्यालय लौट रहे थे कि रास्ते में एसडीएम साहब मिल गए। एसडीएम साहब ने उन्हें पूछा कि क्या सभी पॉलिंग पार्टियां रवाना हो चुकी हैं, तो जॉनल मैजिस्ट्ेट साहब ने उन्हें बताया कि सर! सब पार्टियां रवाना होकर अपने अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच चुकी है। इस पर एसडीएम साहब ने फिर पूछा कि क्या वह रीजनल कॉलेज के चौराहे, पुष्कर एवं अजमेर के बीच की जगह से गुजर चुकी हैं, तो उन्होंने फिर जवाब दिया कि सर! सब पार्टियां अपने-अपने निर्धारित स्थानों पर पहुंच गई है, लेकिन फिर भी एसडीएम साहब यही कहते रहे कि वे पार्टियां रीजनल कॉलेज के चौराहे से गुजरी या नहीं, यह बताया जाए।
चुनाव के दिनों में ही नगर में मुख्यमंत्री का आगमन था, इसलिए मदारगेट पर सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा था। मंच पर उद्घोषक स्थानीय कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर साहब थे। मुख्यमंत्री जी को मालाएं पहनाने के पूर्व प्रोफेसर साहब ने अपने शुद्ध हिन्दी के लहजे में कहा, 'आदरणीय मुख्यमंत्री जी यह हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे नगर में पधारे हैं. अब आप हार स्वीकार कीजिए। उनके इतना कहते ही सभी लोग आश्चर्य से प्रोफेसर साहब की तरफ देखने लगे, लेकिन तब भी उनके समझ में यह नहीं आया कि उन्होंने क्या कह दिया है।
एक बार कांग्रेस के टिकट पर एक वकील साहब ने चुनाव लड़ा। सभी तरह के हथकंडे आजमाने के बावजूद वे हार गए। एक दिन उन्होंने बार रूम में अपने संगी साथियों को उलाहना दिया और कहा कि आपने मुझे वोट नहीं दिया तो उनके मित्रों ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि आपने स्वयं ने ही अपने हैंड बिल में छपवाया था कि 'आगामी विधानसभा चुनाव में श्री...... को मत देंÓ, हम आपका हुकम कैसे टालतें?
गनीमत है कि इस क्षेत्र में वैसा वाकया कभी नहीं हुआ, जो एक बार जयपुर के दूदू विधानसभा क्षेत्र में हुआ था। चुनाव से दो रोज पहले एक पोलिंग पार्टी जयपुर से चली और अपने बूथ पर पहुंची। सांयकाल जोनल मैजिस्ट्रेट साहब भी चैकिंग हेतु उस गांव में पहुंचे तो क्या देखते हैं कि एक पियोन को छोड़ कर सभी लोग नदारद हैं। हालांकि वह भी पीए हुए था लेकिन पूछने पर उसने सच सच बता दिया कि सभी लोग पास के रैडलाइट एरिया बांदरासिंदरी गए हैं। जोनल मैजिस्टे्रट साहब जीप में वहां पहुंचे। सभी ने पी रखी थी। किसी तरह पकड़ कर उन्हें वापस उसी गांव में लाए और हिदायत देकर आगे बढ़ गए। दो तीन घंटे बाद मैजिस्टे्रट साहब को लगा कि एक बार और देख लेते हैं कि गोया वह लोग गांव में ही हैं या नहीं। वे वहां पहुंचे तो क्या देखते हैं कि उसी पियोन के अलावा सभी फिर से गायब हैं। वे फिर बांदरा सिंदरी गए तो पूरी पार्टी वहीं अपनी स्वयं की डयूटी पर मिल गई। फिर तो जो होना था वही हुआ।
एक बूथ पर दो पार्टियों के ऐजेंटों के बीच कुछ कहासुनी बढ़ते- बढ़ते झगड़े में बदल गई। हंगामा होते देख पोलिंग पार्टी के पीठासीन अधिकारी वहां से भाग गए। कुछ देर बाद जब शांति स्थापित हुई तो लोगों ने उन्हें पूछा कि आप पीठ दिखा कर क्यों भाग गए थे तो उन्होंने उत्तर दिया कि मैं पीठासीन अधिकारी हूं, इसलिए पीठ दिखा कर भागा था।
इतना सब होने के बावजूद यहां न तो एक बार भी हरियाणा के विधायकों द्वारा किए गए 'आयाराम गयारामÓ जैसा खेल हुआ न ही उत्तरप्रदेश अथवा बिहार के कतिपय हिस्सों में चुनाव बूथों को लूटने की जैसी घटनाएं हुई हैं, तभी तो प्रसिद्ध कवि श्री सूर्यकुमार पांडेय ने अपनी एक कविता में अपने उद्गार निम्न प्रकार से प्रकट किए हैं-
'कतहुं सुरक्षा-चक्र न टूटा,
गुन्डा एकहु बूथ न लूटा.
शातिरवान, पड़ा भय-पटटा,
धरे रह गए लाठी कट्टा.
झींकत रहे सकल भगवंता,
हाय! न बोगस वोट पडंता
अजब गजब परिणाम न आवे,
लीडर देवी देव मनावे.
आश्रम, बाबा, औलियां, पंडित पीर मजार,
दर दर पर सर टेकता, प्रत्याशी बेजारÓ.
-ई. शिव शंकर गोयल,
फ्लैट न. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी,
प्लाट न. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75.
मो. 9873706333
आपने ने बहुत अच्छ जानकारी दिया है. आप मेरे मार्गदर्शक हैं. आपको देखकर मैं ब्लॉगिंग शुरू किया है. आपके लेख से प्रभावित होकर मैंने किन्नर से संबंधित एक लेख लिखा है. कृपया मेरे वेबसाइट विजिट करें. कोई कमी हो तो कमेंट करके जरूर बताइएगा.
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