सोमवार, 12 सितंबर 2011

खुद को औकात से ज्यादा समझने लगा था


ख्यालों की
दुनिया में खोने लगा था
हवाई किले बनाने
लगा था
नामुमकिन को मुमकिन
बनाने चला था
खुद ही कयास लगाने
लगा था
खुद को सबसे बेहतर
समझने लगा था
निरंतर रात को दिन
समझने लगा था
हर चाल पर मात खाने
लगा था
रंजो गम में जीने
लगा था
आइना देखना भूल
गया था
खुद को औकात से
ज्यादा समझने
लगा था
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
(डा. राजेंद्र तेला निरंतर पेशे से दन्त चिकित्सक हैं। कॉमन कॉज सोसाइटी, अजमेर के अध्यक्ष एवं कई अन्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। समाज और व्यक्तियों में व्याप्त दोहरेपन ने हमेशा से उन्हें कचोटा है । अपने विचारों, अनुभवों और जीवन को करीब से देखने से उत्पन्न मिश्रण को कलम द्वारा कागज पर उकेरने का प्रयास करते हैं। गत 1 अगस्त 2010 से लिखना प्रारंभ किया है।) उनका संपर्क सूत्र है:-
rajtelav@gmail.com
www.nirantarajmer.com
www.nirantarkahraha.blogspot.com

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