मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

एक फोटो फ्रेम के मुख से

कमरे के कौने में ,
मेज पर पड़े चांदी के
रत्न जडित फोटो फ्रेम
पर दृष्टी पडी
जिसमें मेरे पर दादा की
तस्वीर लगी हुयी थी
मुझे से रहा ना गया
उसे हाथ मैं उठा कर
देखने लगा
ऐसा प्रतीत हुआ मानों
कह रहा हो
मैं सामान्य फोटो फ्रेम
नहीं हूँ
कई दशकों से इस कमरे में
होने वाले
हर कार्य कलाप का गवाह हूँ
चंचल बचपन ,
जोश से भरी
जवानी और थके हुए
झुर्रियां लिए बूढ़े चेहरों की
तसवीरें मैंने ह्रदय से
लगा कर रखी हैं
जो संसार से चले गए
उन्हें भी प्रेम से संजोया है
मेरा स्थान बदलता रहा ,
पर कमरा नहीं बदला
मैंने खामोशी से घर के
लोगों को
बचपन से बुढापे तक
संसार में आते जाते देखा
घर में किसी ने जन्म लिया
या फिर कोई सदा के लिए
चला गया
मुझे भी भरपूर खुशी और
दुःख हुआ
घर के लोगों को हँसते ,
रोते देखा
लड़ते झगड़ते देखा
प्यार मोहब्बत में जीते देखा
जीवन के हर रंग को
समीप से देखा
पता नहीं कब तक देखना है
जब तक
घर में सम्पन्नता है
मुझे पूरी आशा है
कोई मुझे कुछ रूपये
के लिए
अपने से दूर नहीं करेगा
मैं हँस बोल
नहीं सकता तो क्या ?
इस घर को अपना
मानता हूँ
सदा घर की समृद्धी के लिए
परमात्मा से निरंतर प्रार्थना
करता हूँ
किसी और जगह जा कर
मुझे खुशी नहीं मिलेगी
उसकी ह्रदय से
निकली प्यार भरी
बातों ने
मुझे भाव विहल कर दिया
फोटो फ्रेम को मैंने
सीने से लगा दिया


तेरी शादी किसी गधे से कर दूंगा (हास्य कविता)

हँसमुखजी ने
बड़े शौक से गधा पाला
थोड़े दिनों तक तो बहुत
प्यार से रखा
फिर धीरे धीरे उससे
मोह कम हो गया
निरंतर उसे मारने
पीटने लगे
खाने को भी कम देते ,
घर से बाहर निकाल देते
गधा भी ढीठ था
प्रताड़ित होता रहता
भूखा रहता
पर जाने का नाम
ना लेता
पड़ोसी के घोड़े से
देखा ना गया
एक दिन
उसने गधे से कहा
क्यों निरंतर मार खाते हो ?
यहाँ से कहीं चले क्यों
नहीं जाते ?
गधा बोला मन तो
मेरा भी करता है
यहाँ से चला जाऊं
पर हँसमुखजी दिल के
बहुत अच्छे इंसान हैं
क्रोध तो
अपनी लडकी पर भी
करते हैं
उसे कहते हैं
तेरी शादी किसी गधे से
कर दूंगा
बस किसी दिन ज्यादा
भड़क जाएँ
क्रोध में मुझ से
अपनी लडकी की शादी
करवा दें
इसी इंतज़ार में
जाते जाते रुक जाता हूँ


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मेरा जूता एक दिन बोला मुझ से
मेरा जूता
एक दिन बोला मुझ से
कब तक घिसोगे मुझको
मेरी प्रार्थना सुन लो
मेरे कष्ट थोड़े कम कर दो
सहने के लिए एक
साथी दे दो
जूते की एक और जोड़ी
खरीद लो
चलते चलते थक गया हूँ
कीचड,गोबर में
सनते,सनते उकता गया हूँ
धूल,मिट्टी से भरता हूँ
उफ़ करे बिना
पथरीले सफ़र पर
चलता हूँ
सर्दी,गर्मी,बरसात में
निरंतर मुझे घसीटते हो
कभी क्रोध दिखाने के लिए
नेताओं पर उछालते हो
कोई झगडा करे तो
निकाल कर मारते हो
मुझे खुश करने के लिए
थोड़ी सी पोलिश
लगाते हो
बदबूदार मोज़े सूंघते
सूंघते
आत्म ह्त्या का मन
करता
मेरी छाती जैसा तला
गम में फट ना जाए
उससे पहले थोड़ा सा
रहम कर दो
जूते की एक और जोड़ी
खरीद लो
सहने के लिए एक
साथी दे दो



नेता सफ़ेद कपडे ही क्यों पहनते (हास्य कविता)
हँसमुखजी
बहुत परेशान थे
समझ नहीं पा रहे थे
उनके देश में नेता सफ़ेद
कपडे ही क्यों पहनते
अपनी परेशानी का ज़िक्र
अपने नेता मित्र से किया
नेता मित्र ने
हँसते हुए जवाब दिया
बड़े भोले हो
इतना भी नहीं समझते
कॉमन सैंस काम में लो
कारण जान लो
हमारे दिल काले,धंधे काले
कारनामे काले,इरादे काले
ज़िन्दगी में
कोई और रंग भी होना
चाहिए
इसलिए कपडे सफ़ेद पहनते
अपने कालेपन को
निरंतर सफ़ेद कपड़ों से
छुपाने की कोशिश
करते



सिर्फ गधे क्यों रेंक रहे हैं
पशु मेले का उदघाटन
करने नेताजी पधारे
उनके आते ही सारे गधे
ढेंचू ढेंचू करने लगे
नेताजी चकरा गए
चमचे से पूछने लगे
बाकी जानवर चुप हैं
सिर्फ गधे क्यों रेंक
रहे हैं
चमचे ने अपने ज्ञान का
परिचय दिया
खुशी खुशी बताने लगा
हुज़ूर गधे
बिरादरी का रिवाज़
निभा रहे हैं
कोई भी जाति भाई
दिखता है
तो स्वागत में निरंतर
रेंक कर अपनत्व का
परिचय देते हैं
खुशी में रेंकते हैं

हँसमुखजी ने प्रेमपत्र लिखा (हास्य कविता)
हँसमुखजी का
हाथ हिंदी में तंग था
फिर भी प्रेमिका को
हिंदी में प्रेम पत्र लिख दिया
तुम मेरी दिल लगी हो
स्वर्गवासी अप्सरा सी
लगती हो
तुम्हारे लिए चाँद तारे
तोड़ कर ला सकता हूँ
कोई नज़रें उठा कर
तुमको देखे ले तो
यमराज की तरह
जान भी ले सकता हूँ
प्रेमिका ने भी प्रेमपत्र का
जवाब प्रेम से दिया
ओ मेरे दिल के चौकीदार
मुझे पाना है तो
तुम्हें भी स्वर्गवासी होना
पडेगा
चाँद तारों को तोड़ने से
पहले
उन्हें छोटा कर पेड़ पर
लटकाना होगा
किसी की जान लेने से पहले
यमराज सा दिखना होगा
विवाह के लिए
भैंसे पर बैठ कर आना
पडेगा
अगला प्रेम पत्र लिखो
उसके पहले हिंदी को
सुधारना होगा


हँसमुखजी का निशाना (हास्य कविता)
हँसमुखजी पोते के साथ
क्रिकेट खेल रहे थे
गेंदबाजी कर रहे थे
गेंद कभी विकेट के
तीन फीट दायें
कभी तीन फीट बायें से
निकल रही थी
पोता परेशान हो गया
कहने लगा
दादाजी आप झूठ
बोलते हैं
एक भी गेंद विकेट पर
सीधे ड़ाल नहीं सकते
लेकिन डींग हांकते हो
आपने जवानी में कई शेर
सटीक निशाने से मारे
हँसमुखजी बोले
तुम आधा गलत
आधा ठीक कहते हो
शेर तो मैंने ही मारे
पर निशाना तब भी
ऐसा ही था
डर नहीं लगे इसलिए
शिकार पर जाने से पहले
जम कर शराब पीता था
नशे में
शेर होता कहीं और था
दिखता कहीं और था
दिखता तीन फीट बायें
होता तीन फीट दायें
शेर को निशाना लगाता
गोली सीधी शेर को
जाकर लगती
तीन फीट का हिसाब
अभी भी चल रहा है
पीना छोड़ दिया है
इसलिए
लाख कोशिशों के बाद भी
गेंद विकेट पर नहीं
लगती

डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
"GULMOHAR"
H-1,Sagar Vihar
Vaishali Nagar,AJMER-305004
Mobile:09352007181

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