सोमवार, 2 मई 2011

पेड़ बनाम कूलर/ए.सी.

धीरे-धीरे पूरे विश्व में गर्मी बढ़ती जा रही है जिसे सब लोग ग्लोबल वार्मिंग के नाम से जानते हैं। जिस तेजी से जंगल व पेड़ कटते जा रहे हैं, उसी तेजी से छोटे-बड़े मकान, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, कॉम्प्लेक्स व मॉल्स आदि धरती पर उगते जा रहे हैं। इस तरह पेड़-पौधों के जंगल की जगह सीमेंट-कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। इसके फलस्वरूप वातावरण की गर्मी बढ़ती जा रही है। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलती जा रही है जिससे बहने वाले पानी से समुद्रों का जल स्तर बढ़ता जा रहा है।
इंसान गर्मी से बचने के लिए कूलर, पंखे व ए.सी., फ्रिज जैसे साधनों का उपयोग करता है। वर्तमान में बढ़ती गर्मी के कारण इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है। ये साधन अप्रत्यक्ष रूप से वातावरण की गर्मी को और अधिक गर्म करने के कारण बन रहे हैं।
पहले मकानों में नीम, आम जैसे बड़े-बड़े पेड़ उगाये जाते थे जो छाया के साथ-साथ ठंडक भी प्रदान करते थे। घर के बड़े उनकी छाया में अपना समय गुजारते थे, बच्चे उनकी छांव में खेलते थे। आजकल जनसंख्या वृद्धि के कारण घरों का आकार छोटा होता जा रहा है जिनमें बड़े पेड़ों के स्थान पर गमलों में पौधे उगाये जाते हैं। बड़े मकानों में लॉन तैयार किये जाते हैं, जिनके लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। लॉन से मकान को छाया नहीं मिलती, जबकि बड़े व ऊँचे पेड़ों से छाया व ठंडक दोनों मिलती है। पेडों से हमारा पर्यावरण संतुलन में रहता है। वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा सही बनी रहती है जो सभी जीवों के लिए अति आवश्यक है। पेड़ों के कटते जाने से यह संतुलन असंतुलित होता जा रहा है जिसका प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सबके सामने है।
वर्तमान में गर्मी से निपटने के लिए लोग फ्रिज, कूलर व ए.सी. का सहारा लेते हैं। ये साधन सामने की ओर तो ठंडक देते हैं परंतु पीछे की ओर गर्मी छोड़ते हैं जिससे वातावरण की गर्मी और बढ़ती है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में इनका भी हाथ है। यदि मकानों में बड़े पेड़ लगाये जायें, तो मकानों को इन बड़े पेड़ों की छाया भी प्राप्त होगी और मकान भी कम गर्म होंगे। गर्मी कम होगी तो कूलर या ए.सी. की जरूरत कम महसूस होगी। दिन में कूलर की ठंडी हवा में बैठने की बजाय पेड़ की ठंडी छांव में बैठना बेहतर होगा क्योंकि पेड़ खुद एक प्राकृतिक कूलर होता है। कूलर की ठंडी हवा खाने के लिए उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी डालने की आवश्यकता होती है। यदि यही पानी किसी और कार्य में इस्तेमाल किया जाये तो ज्यादा अच्छा होगा। लॉन को हरा बनाये रखने के लिए उसमें भी काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। इससे भी पानी अनावश्यक खपत होती है। इसकी अपेक्षा पेड़ों को कम पानी की आवश्यकता होती है। कूलर या ए.सी. चलाने के लिए बिजली भी आवश्यक है। इससे बिजली की अनावश्यक खपत भी बढ़ती है जबकि पेड़ों से ठंडी हवा प्राप्त करने के लिए बिजली की कतई आवश्यकता नहीं होती है।
वहीं दूसरी ओर पानी की कमी व वर्षा की अनियमितता की वजह से किसान पर्याप्त फसल नहीं उगा पा रहे हैं। वे अपने खेतों को बेचकर दूसरे धंधों की ओर भाग रहे हैं। वहीं दूसरे लोग खेत खरीदकर उस पर मैरिज गार्डन बनाने लग गये हैं, जिसमें घास उगाई जाती है। यदि किसान को पानी व बिजली की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो जाती तो वह उस खेत पर फसल उगाता, जिससे खुद का भी पेट भरता तथा औरों के लिए भी खाद्यान्न उत्पन्न होता, जिससे देश की खाद्यान्न को कमी का सामना नहीं करना पड़ता, लेकिन आज मैरिज गार्डन में बदल चुके खेतों पर सिर्फ घास उगती है, जिससे किसी को कोई खाद्यान्न प्राप्त नहीं होता, सिर्फ गार्डन मालिक को लाभ होता है।
अत: शहर के लोगों को प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर अपनी सुविधाओं पर लगाम लगानी चाहिए ताकि दूसरे लोगों को भी असुविधा न हो। बड़े-बड़े लॉन में बहुत सारा पानी खपाने की बजाय यह पानी खेतों को मिलना चाहिए ताकि भरपूर फसल प्राप्त हो सके जिससे किसान के साथ-साथ दूसरों का भी पेट भर सके। इसी प्रकार शहरों में घरेलू बिजली की अनावश्यक खपत रोककर उसे गांवों में भेजा जाये ताकि गांवों का भी विकास हो सके। गाँवों के विकास होगा तो देश का विकास होगा क्योंकि भारत गाँवों में बसता है। पेड़ लगाकर हम शहरों में हो रही पानी व बिजली की अनावश्यक खपत को रोक सकते हैं साथ ही पर्यावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा सकते हैं।
आइये हम सब मिलकर यह प्रण करें कि हर एक घर में एक पेड़ अवश्य लगायेंगे और उसकी पूरी देखभाल करेंगे जिससे समय पर अच्छी वर्षा हो सके और पर्यावरण संतुलन असंतुलित न हो। हम सभी को मिलकर पर्यावरण की गर्मी को कम करने का प्रयास करना होगा ताकि वर्तमान व भावी पीढ़ी चैन की सांस ले सके।
यह लेख कम्प्यूटर टीचर व डिजाइनर श्री प्रवीण कुमार ने भेजा है

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