शनिवार, 19 नवंबर 2011
नज़्म......यादें ..
सुबह-सुबह ही
तेरी याद ने दस्तक देकर
मेरी आँखों मैं
एक सुर्ख ख़्वाब घोला है ,
कुछ किरची हुई यादों ने
अपने होने की निशानी देकर
गुज़रा वक़्त
याद दिलाने की खातिर
मेरी पलकों के किनारे से
मझधार तलक ,
कुछ चुभते हुए आंसुओं की
कतारें फेकीं |
उन्ही आंसुओं के समुन्दर में
डूबकर मैने
कितनी बेजार-सी ,
नामुमकिन-सी
चाह दरकिनार की है |
और.........
यादों के सिरे से जुडकर
कई यादो के सिरे,
यादें बस आती ही रही
और बस आती रही...........
कुछ कल्पनाओं में पगी -सी
यादों ने मुझे नाहक ही रुलाया
बड़ी देर तलक .......
जो हकीक़त नहीं है
फिर भी ......
हकीक़त की तरह
याद आया मुझे और बस
फिर याद आता रहा...........
कुछेक पल जो ख़यालों में,
ख़यालों की तरह ,
बिताये मैने तुम्हारे संग ,
तुम्हारे ही लिए,
अनकहे संवादों में हंसकर,रोकर,
रूठकर और कभी सिसकियों में |
जाने क्यों या रब ............
इन बेवजह-सी यादों के
बेवजह सिलसिले
चले आते हैं ?
अक्सर.............
सिसकते हुए,
तडपते हुए
अपनी ही आँखों से
देखे अपने ही
पास से गुज़रते हुए
ज़नाज़े की तरह |
रजनी मोरवाल
अहमदाबाद
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