गुरुवार, 18 अगस्त 2011

बलंग्या

बलंग्या, हां यही नाम था स्कूल के हमारे उस सहपाठी का। सब उसे इसी उपनाम से पुकारते थे, लेकिन यहां आपको इतना बताना जरूरी है कि वर्तमान लंकाई क्रिकेट टीम के खिलाडी मलिंगा से कोई लेना-देना नही है। बलंग्या के परिचय के बगैर अजमेर की तत्कालीन हस्तियों का वर्णन अधूरा ही रह जाता इसलिए भी बलंग्या के बारे में आपको बताना जरूरी समझा गया। और बातों के अलावा उसकी एक खासियत यह भी थी कि शारीरिक कद-काठी में तो वह औरों से उन्नीस ही बैठता था, लेकिन शरारतों में उसका नाम काफी ऊपर था।
कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं। यही बात बलंग्या पर लागू होती थी। एक ही दृष्टान्त से आप सब कुछ समझ जायेंगे। उसके बचपन में एक बार उसको साथ लेकर उसके मां-बाप किसी सामाजिक समारोह में गए। वहां भीड-भाड़ में वह उनसे बिछुड़ गया। कुछ देर बाद कार्यकर्ता उसको लेकर मंच पर पहुंचे। माइक थामे उद्घोषक ने उसका पता ठिकाना जानने के लिए उससे कई सवाल पूछे, लेकिन क्या मजाल जो बलंग्या ने पूछने वाले को उसके कोई काम की बात बताई हो?
संवाद आप भी देखिये:-
...तुम्हारा क्या नाम है बेटा! उदघोषक ने पूछा।
...बलंग्या. इनका जवाब था।
...तुम्हारे पिताजी का क्या नाम है ?
...पापा।
...तुम कहां रहते हो?
...मम्मी के पास।
...तुम्हारे पिताजी क्या काम करते हैं?
...जो मम्मी कहती है वह करते हैं।
देखा आपने? कहते हैं कि कुछ जानकार लोगों ने तो तब ही कह दिया था कि बडा होकर ऐसा ही आदमी सरकारी प्रवक्ता बन सकता है। सब कुछ बता दिया और कुछ भी नहीं बताया। वरना आजकल तो बड़े बडे राजनीतिक दलों के अधिकांश प्रवक्ता वातावरण में कड़वाहट घोलते रहते हैं। स्पष्ट है कि जब सामाजिक मंच पर हुई इस खुली पूछताछ का कोई नतीजा नहीं निकला तो मंच से ही फिर ऐलान किया गया कि एक बच्चा खो गया है जो अपना नाम बलंग्या बताता है। जिनका बच्चा है वह आकर ले जाए। थोड़ी देर बाद इनके पिताजी मंच पर आए और उद्घोषक से झगडऩे लगे कि आपने मुझे 'जिनÓ कैसे कहा। सभी इनके पिताजी को समझाने लगे कि आपको जिन नही कहा है। इनका आशय तो यह था कि जिस किसी का भी बच्चा हो वह यहां आकर ले जाए। बडी मुश्किल से वह माने।
बचपन में इनको रामलीलाओं का भी बहुत शौक था। वहां इनको लीलाओं में कम और शैतानियों में ज्यादा मजा आता था। एक बार स्थानीय नया बाजार घास कटला में लीला चल रही थी। एक ब्रेक के दौरान बलंग्या पर्दे के पीछे गया और असमय ही पर्दा उठाने की रस्सी खींच दी। उस समय कलाकार रिलैक्स कर रहे थे। अचानक उठे पर्दे से दर्शक यह देख कर भौंचके रह गए कि रावण और सीता बने पात्र 'शेयरÓ करके बीड़ी पी रहे थे। हालांकि उन दिनों शेयरों के बारे में लोग कम ही समझते थे। खैर, एक जोरदार ठहाका लगा. किसी तरह लाइट बंद करके आयोजकों ने स्थिति को संभाला।
लगे हाथ ही आपको एक घटना और बता दूं। आज लोग भले ही कुछ भी दावा करें लेकिन यह ऐतिहासिक घटना भी हमारे यहां की राम लीला की है। उपरोक्त राम लीला के रावण बनने वाले पात्र को अचानक ही बुलन्दशहर-उत्तर प्रदेश अपने गांव जाना पड़ गया। उस रोज रामायण का रावण-अंगद संवाद होना था। आयोजकों के सामने बड़ी समस्या थी, अब क्या किया जाय? किसी तरह ढंूढ़ कर, समझा-बुझा कर शहर के बाल्या हलवाई को तैयार किया गया। जब लीला चालू हुई तो इस सीन का अवसर भी आया। एक जगह जब रावण-अंगद में परम्परागत संवाद की सीमा लांघते हुए ज्यादा ही गर्मागर्मी होने लगी और रावण ने अंगद से उसका परिचय पूछा तो अंगद ने भी रावण को पूछ लिया कि तुम कौन हो? तो रावण बना पात्र घबड़ा गया और उसने कहा कि 'मैं तो बाल्या हलवाई हूंÓ, इस बात पर जो ठहाका लगा वैसा ठहाका तो आज तक कभी देखने-सुनने में नही आया।
स्थानीय डिग्गी बाजार स्थित रामायण मंडल में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर कृष्ण जन्म का नाटक दिखाया जाता था। उसमें कलाकार रोबिन मास्टर कंस बना करता था। एक बार की बात है कि नाटक में कंस का दरबार लगा हुआ था और एक राक्षस गाना गा रहा था 'काले कव्वे से भी बढ़ कर, काला मेरा रंग, देखने वाले चहका जाए, अद्भुत मेरा ढंग, कहिये कहिये हुजूर, क्यों कर बुलाया दरबार में जरूर...Ó इतने में ही दर्शकों में बैठा बलंग्या उठा और बोला कि इस कंस को पूछो कि इसने इस राक्षस को यहां क्यों बुलाया है? यह सुनकर सब हंसने लगे।
हर साल नृसिंह चतुर्दशी को स्थानीय नया बाजार में काल्या-लाल्या का मेला भरता आया है। बहुत पहले की बात है, जब प्रहलाद पान वाले को हरिण्यकश्यप बनाया जाता था। उस साल भी यही हुआ। इस लीला में नृसिंह अवतार से पहले हरिण्यकश्यप को तीन-चार व्यक्तियों द्वारा पीछे से पकड़ कर मंच पर कूद-फांद कराई जाती है जो उसके निरकुंश शासन एवं मनमानी का प्रतीक है। हालांकि अब भी कहीं कहीं उसी निरंकुशता की झलक मिलती है, परन्तु अब मंत्रियों को सरे आम कुदाया नहीं जाता। खैर, एक बार कुदाने वालों का रोल बलंग्या को मिल गया। बस फिर क्या था। उसने प्रहलाद पान वाले को जरूरत से ज्यादा ऊचा उछाल दिया। वह तो गनीमत थी कि बाकी लोगों ने वक्त पर उस ऑवर हाईजम्प को संभाल लिया वर्ना उस रोज हरिण्यकश्यप के लिए नृसिंह अवतार की अलग से जरूरत ही नहीं पड़ती।
एक बार हाई स्कूल में हमारी पढ़ाई के दौरान छात्रों की हड़ताल हुई। हममें से अधिकांश को यह पता ही नहीं था कि हड़ताल किस विषय को लेकर है, परन्तु चाहे अनचाहे सभी उसमें शामिल थे। मास्टर भी अंदर ही अंदर खुश थे, परन्तु किसी को कह नहीं रहे थे। अपनी स्कूल की छुट्टी कराने के बाद हम लोगों ने दूसरी स्कूल का रुख किया। इस अभियान में बलंग्या का दो सूत्री कार्यक्रम था। 1. स्कूल पहुंच कर वहां की घंटी बजा देना. 2. स्कूल के समस्त गमलों को तोडऩा और अपने इस अभियान में वह शत-प्रतिशत सफल रहा था। उन्ही दिनों हमारे स्कूल की गोल्डन जुबली मनाई गई। उसमें हॉकी, फुटबॉल, कबड्डी के टूर्नामेन्ट हुए। क्लास कम्पीटीशन हेतु हमारी क्लास की फुटबॉल टीम का चयन होना था। हम सभी इच्छुक लड़के मैदान में पहुंचे। बलंग्या भी उनमें था। हमें बारी-बारी पैनल्टी किक से बॉल गोल में पहुंचानी थी। जब बलंग्या की बारी आई तो उसने अपनी भरपूर शक्ति बॉल में किक लगाई, लेकिन बॉल गोल में पहुंचने की बजाय उसका जूता गोल में पहुंचा और बॉल वहीं पड़ी रही। हालांकि इसे गोल नहीं माना गया फिर भी घटना पर सभी ने ताली बजाई, लेकिन इतना जरूर हुआ कि बलंग्या ने टीम में शामिल होने की फिर जिद्द नहीं की।
ऐसे ही एक और मौके पर हैमर थ्रो (लोहे के एक ठोस गोले को चेन के माध्यम से, घेरे की परिधि में रहते हुए, घुमा कर फेंकना होता है) का ट्रायल चल रहा था। बलंग्या ने भी अपना भाग्य आजमाना चाहा। उसने हैमर उठा कर उसे घुमाया लेकिन उसी दौरान हैमर उसके हाथ से छूट गया और वह वहीं घेरे में गिर गया, लेकिन बलंग्या छिटक कर घेरे से दूर जा पड़ा।
हमारा स्कूल वैसे तो हाई स्कूल था, लेकिन वहां फीस के अलावा कुछ भी 'हाईÓ नहीं था। इंगलिश हमें छठी क्लास से पढ़ाई जाती थी और वह विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, पढ़ाने वालें मास्टरों के लिए भी जानलेवा थी। जब कभी कोई कोई मास्टर कहीं अटक जाता तो हमें कहता कि इसे छोड़ दो, यह इम्पोरटैन्ट नही हैं या कहते यह एक्जाम में नहीं आयेगा इत्यादि। यह सुन कर हम सब खुश हो जाते।
एक बार हमारी कक्षा में मास्Óसाब ने आनासागर झील पर दस लाइनें लिख कर लाने का हॉम वर्क दिया। मुझे अच्छी तरह याद है जब मास्Óसाब ने क्लास में बलंग्या की कॉपी खोल कर सबको बताया, जिसमें लिखा था 'ही इज ए बिग लेकÓ, उसका आशय होगा कि वह एक बड़ी झील है। एक बार हमारे इंगलिश के टीचर हमें पढ़ाई के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी दे रहे थे। उसी समय उन्होंने बलंग्या से पूछा कि किसी को यहां बुलाना हो तो कैसे बुलाओगे? तो उसने कहा 'कम हेयरÓ, अब मास्Óसाब ने पूछा कि अगर यह कहना हो कि वहां जाओ तो क्या बोलोगे, तो बलंग्या स्वयं कुछ दूर चला गया और वहां जाकर उसने पुकारा 'कम हेयरÓ।
एक बार की बात है कि टीचर की अनुपस्थिति में बलंग्या क्लास में कोई शैतानी कर रहा था। कुछ देर बाद जब मास्Óसाब आए तो किसी के शिकायत करने पर उन्होंने उसे खूब डांटा। थोडी देर बाद मास्Óसाब जब किसी काम से हैडमास्टर साहब के कमरे में गए तो किसी और वजह से उन्होंने मास्Óसाब से कहा कि बलंग्या को मेरे पास भेजना। मास्Óसाब ने क्लास में आकर बलंग्या को कहा 'यू गो एन्ड रिपोर्ट टू एच एमÓ परन्तु बलंग्या गया ही नहीं। दूसरे रोज एचएम ने मास्Óसाब को दुबारा कहा तो मास्Óसाब ने बलंग्या से पूछा कि तुम्हें मैंने एचएम को जाकर रिपोर्ट करने को कहा था लेकिन तुम गए नहीं। इस पर बलंग्या ने जवाब दिया कि मैं आपकी एचएम से क्या रिपोर्ट करता? मेरी कौन सुनता?
कक्षा सात की भूगोल विषय की क्लास की बात है। एक बार हमारे मास्Óसाब ने बलंग्या से पूछा कि पृथ्वी गोल है, इसके प्रमाण बताओ, तो बलंग्या ने कहा कि साब! मेरे पास एक जासूसी उपन्यास था। एक रोज मेरा एक जिगरी दोस्त मांग कर उसे पढऩे ले गया। देते वक्त मैंने उसे किसी और को देने से मना किया था, लेकिन उसने उस उपन्यास को अपने किसी खास मित्र को पढऩे हेतु दे दिया और कहा कि इसे किसी को मत देना। इसके बावजूद उस लड़के ने उसे किसी और को दे दिया। इस तरह वह किताब घूमते-घूमते फिर मेरे पास आ गई। तभी मैं समझ गया था कि पृथ्वी गोल है। वैसे इसके पहले भी मैंने कई बार देखा कि भक्त लोग मंगलवार को हनुमानजी के मंदिर के बाहर खड़े ठेले वालों से प्रसाद खरीद कर मंदिर में चढ़ाते थे तो कुछ प्रसाद घूम फिर कर वापस ठेलेवालों के पास आ जाया करता था।
ऐसा विक्टोरिया हास्पीटल में भी कई बार हुआ। लोग-बाग मरीज के लिए दवाइयां-इन्जैक्शन-ग्लूकोज इत्यादि खरीद कर ऑपरेशन थियेटर में देकर आते उन्हीं में से कुछ वापस मेडीकल स्टोर पर बिकने हेतु आ जाती थी। इन बातों से सिद्ध होता है कि पृथ्वी गोल है। यह सुनकर मास्Óसाब ने वह चुप्पी साधी कि पीरियड की घन्टी पर ही उनकी चुप्पी टूटी।
एक बार और इन्ही मास्Óसाब ने बलंग्या को क्लास में पूछा कि अच्छा बताओ पृथ्वी से चांद कितना दूर है, तो बलंग्या ने तत्काल सीधा-सपाट जवाब दिया कि जितनी चांद से पृ्थ्वी दूर है उतना ही पृथ्वी से चांद दूर है।
एक रोज इतिहास की क्लास में मास्Óसाब ऐतिहासिक महत्व की इमारतों के बारे में पढ़ा रहे थे। तभी उन्होंने बलंग्या से पूछा कि कुतुबमीनार कहां है? बलंग्या चुपचाप खड़ा रहा। इस पर मास्Óसाब ने फिर कहा कि मैं पूछता हूं कुतुबमीनार कहां है, लेकिन बलंग्या को पता हो तो बताए, वह चुपचाप ही खड़ा रहा तो मास्Óसाब ने कुछ गुस्से में उसे कहा कि तुम घर पर किताब खोल कर नहीं देखते। कल अपने पिताजी को अपने साथ लेकर आना तुम्हारी शिकायत करूंगा। रुआंसा बलंग्या घर आया। घर पर उसके पिताजी अपने एक मित्र के साथ बैठे गप्पें लगा रहे थे। उसके पिताजी ने जब उसे देखा तो उससे पूछा कि क्या बात है तो बलंग्या ने उनको क्लास में घटित सारी बात बताई जिसे सुनकर उन्होंने उल्टा बलंग्या को ही डांटा और कहा कि तू ने कुतुबमीनार को कहां छिपा रखा हैं, बताता क्यों नहीं? लेकिन यहां भी बलंग्या ने यही कहा कि कुतुबमीनार मेरे पास नहीं है, आप चाहो तो किसी को पूछ लो। बलंग्या का जवाब सुनकर उसके पिताजी और भी गुस्सा हुए और उसे कहा कि चल तेरी जेबें दिखा। इस पर उसने अपने हाफपेंट की दोनों जेबें उलट कर दिखाई कि वाकई कुतुबमीनार उसके पास नहीं है। यह देखकर उसके पिताजी के मित्र ने दखल देते हुए कहा कि यार! इसके स्कूल के बस्ते में देखो, कहीं इसने कुतुबमीनार वहीं न छिपा रखा हो। इस पर बलंग्या के पिताजी ने उसके बस्ते को उलट कर देखा लेकिन वहां भी उनको कुतुबमीनार नहीं मिली। अब तो सभी को चिंता होने लगी। पिताजी ने कहा कि ऐसे चीजें गायब होने लगीं तो तुम क्या पढ़ाई करोगे? पिताजी के मित्र की तो यह भी सलाह थी कि कुतुबमीनार के गुमने की रिपोर्ट पुलिस में करवा देनी चाहिए ताकि क्लाक टॉवर थाने के हवाले से 'गुमशुदा की तलाशÓ के अन्तर्गत टीवी चैनल पर विज्ञापित हो सके। स्थानीय अखबारों में भी विज्ञापन निकलवा देना चाहिए कि कुतुबमीनार खो गई है, जिस किसी को भी मिले वह निम्न पते पर पहुंचा दे। उसे आने-जाने के खर्च के अलावा उचित इनाम दिया जायगा। इतनी देर बलंग्या गुमसुम बैठा यह सब देखता रहा। इतने में उसकी मां इधर की तरफ निकली और जब उसे पता पड़ा कि बच्चें से कुतुबमीनार खो गई है तो वह बलंग्या से बोली कि कोई बात नहीं, अगली बार जब तू इनके साथ रावण के मेले में जायेगा तो यह तेरे को दूसरी कुतुबमीनार दिला देंगे। अभी तो चलकर रोटी खाले।
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333

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