मैं ईश्वर को हाजिर-नाजिर मान कर और अपने सिर पर हाथ रख कर कहता हूं कि जो कुछ भी कहूंगा सच-सच ही कहूंगा और सच के सिवाय कुछ नहीं कहूंगा। जब सन् 1991 के आम चुनाव में मुझे जोनल मैजिस्टे्ट बना कर पुष्कर भेजा गया तो पूरे पांच दिन वहां के थाने में मेरा मुख्यालय बना कर मुझे वहां रहने को कहा गया। ऐसा मुझे थानों में 'मेरे योग्य सेवाÓ की लगने वाली तख्ती को मद्देनजर रखते हुए कहा गया या इसका कोई और रहस्य था। यह मुझे आज तक पता नहीं पड़ा। वैसे भी किसी शरीफ आदमी का पांच रोज थाने में रहना बहुत बड़ी बात है। आप चाहें तो किसी को पूछ कर देख लें।
जहां तक मेरा सवाल है थानों अथवा कोतवाली में बलात्कार एवं पूछताछ में मौतों की शोहरत तथा उनके बाहर रखी तोपों, जिनका मुंह अक्सर ही आम जनता की तरफ होता है, को देख कर मेरे मन में ऐसी दहशत बैठी हुई है कि अमूमन मेरी उधर देखने की हिम्मत ही नहीं होती। यह तो अच्छा हुआ कि सरकार यानि मेरे बॉस को किसी ने बताया नहीं कि मै पूरे पांच रोज पुष्कर पुलिस थाने में बिता कर आया हूं वर्ना सरकारी कायदे-कानून के मुताबिक मैं सस्पैन्ड यानि मुअत्तिल हो गया होता।
सच कह रहा हूं आपसे! जब पहले पहल मैंने सुना कि मुझे पांच रोज पुलिस थाने में रहना पड़ेगा, तो मेरे होश फाख्ता हो गए। या अल्लाह! मुझे किस पाप की सजा दे रहा है? लम्बी उम्र हो उन दुश्मनों की, जिन्होंने मुझे ऐसी स्थिति में ला पटका कि एक-दो नहीं, पूरे पांच रोज पुलिस थाने में रहना पड़ा, लेकिन अब पछताये होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत!
पर मेरी असली समस्या तो घर में है। पांच दिन थाने में रहने के कारण अब घर वाली घर में नहीं घुसने दे रही है। सारी रात बीत गई, बोरिये बिस्तर सहित घर के बाहर पड़ा हूं। पांच दिन थाने में रहने के कारण बीबी घर में घुसने ही नहीं दे रही है, जैसे कि एक पिक्चर में चरणदास को पीने की आदत के कारण घर के बाहर रात गुजारनी पड़ी थी। प्रौढ़ व्यक्तियों ने तब यह गाना जरूर सुना होगा:- 'ऐ जी! चरणदास को पीने की जो आदत ना होती, आदत ना होती, तो आज मियां बाहर, बीबी अंदर ना सोती ...Ó
खैर, यह जो हुआ वह तो हुआ, लेकिन आगे न जाने क्या-क्या कहर टूटने
वाला है? मुझे यह भी बात सता रही है कि अब मैं ऊपर जा कर क्या मुंह दिखाऊंगा? उपर से आप मेरा मतलब समझ गए हैं ना? जब वहां डिलिंग असिसटैन्ट चित्रगुप्त के इजलास में पेशी होगी और आवाज पड़ेगी तो क्या जवाब दूंगा? माना कि मुझे वहां-आप समझ तो गए ना कि कहां की बात कर रहा हूं, वकील करने में कोई दिक्कत नहीं आयेगी, लेकिन कौन मेरी बात मानेगा कि मैं तो बेगुनाह था। फकत सरकारी आदेश की वजह से चुनाव के सिलसिले में पांच रोज थाने में रहना पड़ा था और तो और क्या यहां, मृत्युलोक, वाले मुझे छोड़ देंगे? सबसे पहले तो रिश्तेदार, मित्र एवं समाज के लोग ही उंगली उठायेंगे और कहेंगे कि इसने जरूर कुछ किया होगा वर्ना इसे थाने में क्यों रखते। इसकी बात मानने लायक ही नहीं है। मोहल्ले, पास-पड़ौस वाले जीना दुर्भर कर देंगे। कोई पास बैठायेगा नहीं। किसी के घर जाने पर चाय तो क्या पानी तक के लिए पूछेगा नहीं। मैं आगे से इसी पहचान से जाना जाऊंगा 'अरे! वही गोयल साहब, जो सन् 1991 में थाने में पांच रोज रह कर आए थे।Ó बस, एक बार इस तरह के परिचय का लेबल लग गया तो वह जिन्दगी भर की कमाई हो जायेगी।
या अल्लाह! रहम कर और मेरे दामन से यह दाग छुड़ा दे, हालांकि निन्दकों के इस समुद्र में कुछ हितैषी भी हैं, उन्होंने सुझाया था कि जब पुष्कर से वापस आने लगो तो सरोवर में स्नान कर लेना ताकि सारे पाप धुल जाएं, लेकिन मेरा मन नहीं मानता। मैं सोचता हूं अभी तक जितना पाप लोगबाग पुष्कर में स्नान करके छोड़ गए है। उसे भले आदमी टै्रक्टर ट्रालियों में भर कर ले जाते ले जाते थक गए है। अब मैं ही उनका बोझ और क्यों बढ़ाऊं?
यह व्यंग्य लेख सेवानिवृत्त इंजीनियर श्री शिवशंकर गोयल ने भेजा है। उनका संपर्क सूत्र है -फ्लेट नं. 1201, आई आई टी इंजीनियर्स सोसायटी, प्लाट नं. 12, सैक्टर न.10, द्वारका, दिल्ली- 75, मोबाइल नंबर: 9873706333
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